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चतुर्थ नवरात्र की देवी - मां कुष्मांडा जी

Blog, 11/04/2024

नवरात्रि के नौ दिनों में देवी के अलग-अलग नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है, जिसे नवदुर्गा का स्वरूप कहा जाता है। नवरात्रि पर्व माँ आदिशक्ति भगवती को समर्पित है। नवरात्र के यह नौ दिन और रातें माता के भक्तों के लिए बहुत ख़ास होते हैं। 12 अप्रैल 2024 को नवरात्रि के चौथे दिन यानि चतुर्थी तिथि को मां कुष्मांडा जी की पूजा की जायेगी। माँ के हर स्वरूप से एक अद्भुत आशीर्वाद  प्राप्त होता है। पारस परिवार के मुखिया महंत श्री पारस भाई जी ने बताया कि नवरात्रि के वातावरण से तमस का अंत होता है और नकारात्मक माहौल की समाप्ति होती है। आज इस आर्टिकल में जानते हैं नवरात्र के चौथे दिन का क्या है महत्व और पूजा विधि।

 

माँ कुष्मांडा जी की पूजा विधि

  • सबसे पहले स्नान करें। फिर चौकी को साफ करके गंगाजल छिड़कें।
  • माता की आराधना करें और माँ को कुमकुम का तिलक लगाएं।
  • इसके साथ ही कलश, घट आदि को भी हल्दी-कुमकुम से तिलक करें।
  • धूप-दीप जलाकर माँ का ध्यान करें और साथ ही पुष्प अर्पित करें।
  • ॐ देवी कूष्माण्डायै नमः मन्त्र का जाप कर माँ का आह्वान करें।
  • भोग के रूप में माँ को मिठाई या फल अर्पित करें।
  • इसके बाद दुर्गा सप्तशती और माँ कुष्मांडा की आरती करें।
  • पूजा के समापन के बाद सबको प्रसाद वितरित करें।

 

माँ कुष्मांडा जी का प्रिय भोग

नवरात्रि के चौथे दिन माँ दुर्गा के कुष्मांडा स्वरूप की पूजा की जाती है। इस दिन मालपुए का भोग लगाया जाता है और यदि आप मालपुए का भोग नहीं लगा पाते हैं तो तब आप माँ कुष्मांडा को गुड़ का भोग भी लगा सकते हैं।

 

मां कुष्मांडा मंत्र :

  • सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च। दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदाऽस्तु मे ॥
  • ऐं ह्री देव्यै नम:।
  • ऐं ह्री देव्यै नम: वन्दे वांछित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम्। सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्विनीम्॥
  • ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं कुष्मांडा नम: 
  • या देवी सर्वभूतेषु मां कूष्मांडा रूपेण प्रतिष्ठितता। नमस्‍तस्‍यै नमस्‍तस्‍यै: नमस्तस्यै नमो नम: 

 

माँ कुष्मांडा जी की पूजा से क्या फायदे हैं ?

नवरात्र के चौथे दिन माँ कुष्मांडा की पूजा से आपके सभी रोगों का नाश हो जाता है। माँ कुष्मांडा की आराधना से वैभव, आयु, यश, बल आरोग्य और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है इसलिए खुशी, स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए माँ का आशीर्वाद मांगा जाता है। यह मान्यता है कि माँ का आशीर्वाद आपके जीवन की सभी बाधाओं और चुनौतियों का अंत कर सकता है।

साथ ही आप अपने लक्ष्यों को आसानी से प्राप्त कर सकते हैं। माँ के चारों ओर की दीप्तिमान आभा सकारात्मकता और प्रकाश बिखेरने की उनकी क्षमता का प्रतीक है। महंत श्री पारस भाई जी के अनुसार 
सुखी और सफल जीवन के लिए और मां कुष्मांडा की दिव्य कृपा प्राप्त करने के लिए नवरात्रि का यह चौथा दिन एक शुभ अवसर माना जाता है।

चैत्र नवरात्रि के चौथे दिन मां कुष्मांडा की पूजा करने के लिए पीले वस्त्र पहनने की सलाह दी जाती है और पूजा के दौरान मां को पीला चंदन, कुमकुम, मौली और अक्षत चढ़ाना चाहिए।

 

माँ कुष्मांडा जी की कथा और स्वरुप


माँ दुर्गा जी के इस चौथे स्वरूप का नाम कैसे पड़ा, माँ कुष्मांडा जानते हैं- मान्यताओं के अनुसार जिस समय सृष्टि का निर्माण नहीं हुआ था तब देवी कुष्मांडा ने ही  ब्रह्मांड की सरंचना की। अपनी मधुर मुस्कान से इस ब्रह्मांड का निर्माण करने के कारण ही इन्हें माँ कुष्मांडा के नाम से जाना जाता है।

ऐसा माना जाता है कि जीवन की रचना के बाद, माँ ने तीन देवियों की रचना की। जिन्हें क्रमशः मां लक्ष्मी, मां सरस्वती और मां काली के नाम से जाना जाता है। उन्होंने अपनी दाहिनी आंख से मां सरस्वती, अपने माथे पर स्थित नेत्र से महालक्ष्मी और बायीं आँख से महाकाली को उत्पन्न किया।

देवी कुष्मांडा की अष्ट भुजाएं हैं यही वजह है कि उन्हें अष्टभुजा देवी भी कहा जाता है। माँ कुष्मांडा के हाथों में कमंडल, धनुष, बाण, शंख, कमल पुष्प, अमृत पूर्ण कलश, चक्र तथा गदा सुशोभित हैं। देवी कुष्मांडा के आठवें हाथ में सिद्धियों को प्रदान करने वाली जप माला भी धारण है। देवी कुष्मांडा का प्रिय वाहन सिंह है, जो निर्भयता और शक्ति का प्रतीक है।


महंत श्री पारस भाई जी कहते हैं सूर्यमंडल में निवास करने की शक्ति सिर्फ देवी कुष्मांडा के पास है। इस ब्रह्मांड का एक-एक कण देवी कुष्मांडा की शक्ति का प्रतीक माना जाता है। इस ब्रह्मांड का हर प्राणी इन्हीं के तेज से चमकता है। इनका तेज़ सर्वशक्तिमान है। 

इनकी दिव्यता संपूर्ण लोकों में फैली हुई है। इनकी कांति और इनका ओज अलौकिक और अद्भुत है। इसलिए स्वच्छ और पवित्र मन से माँ कुष्मांडा की पूजा-अर्चना करने से तेज़, ओज और शक्ति प्राप्त होती है और आपकी सभी मनोकामनायें पूर्ण होती हैं।

 

नवरात्रि के चौथे दिन देवी कुष्मांडा का महत्व

शारदीय नवरात्रि का चौथा दिन या चौथा स्वरूप माँ कुष्मांडा जी को समर्पित है। सफलता, समृद्धि और निरोगी रहने के लिए मां कुष्मांडा का आशीष प्राप्त करने के लिए यह दिन बहुत शुभ माना जाता है। जो लोग नियमित रूप से और सच्ची श्रद्धा से उनकी पूजा करते हैं उन्हें शक्ति, भाग्य, सफलता और सौभाग्य प्राप्त होता है। 

मां कुष्मांडा को ऊर्जा की देवी कहा जाता है। देवी कुष्मांडा के शरीर की चमक और ऊर्जा सूर्य के समान तेज है। वह ओजस्वी हैं दरसअल देवी कुष्मांडा के पास वो शक्ति है, जिससे वह सूर्य के केंद्र में निवास कर सकती हैं।

मां दुर्गा के इस स्वरुप माता कुष्मांडा का नाम तीन शब्दों से मिलकर बना है- ‘कु’ यानी छोटा सा, ‘उष्मा’ यानी ऊर्जा और ‘अंडा’ यानी एक गोला। यानि मां कुष्मांडा के नाम का अर्थ है- ऊर्जा का एक छोटा सा गोला। पौराणिक कथाओं के अनुसार माना जाता है कि मां कुष्मांडा ने एक छोटे ब्रह्मांडीय अंडे का उत्पादन करके ब्रह्मांड का निर्माण किया, जिससे ब्रह्मांड प्रकट हुआ। जब चारों ओर अंधकार फैला था तब मां दुर्गा इस स्वरूप में प्रकट हुई थी और तब मां ने हर तरफ उजाला कर इस ब्रह्मांड की रचना की थी। 

 

पारस परिवार चाहता है कि मां कुष्मांडा जी आपको सुख-शांति, समृद्धि और बेहतर स्वास्थ्य प्रदान करें। मां कुष्मांडा आप और आपके परिवार पर हमेशा अपना आशीर्वाद बनाए रखें।

 

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