हमारे हिंदू धर्म में पितरों को बहुत सम्मान दिया जाता है, उनकी पूजा की जाती है और उनको समय-समय पर याद किया जाता है। सनातन धर्म में पितृ पक्ष की एक विशेष अवधि होती है, जिसे श्राद्ध पक्ष भी कहते हैं। ये अवधि पितरों के लिए समर्पित है। पितृ पक्ष में अर्यमा देव की पूजा की जाती है। आपको बता दें कि अर्यमा पितरों के देवता माने जाते हैं।
पितृ पक्ष में अयर्मा देव की पूजा का विधान है। इनकी उपासना करने से पितरों को मुक्ति मिलती है। आइये विस्तार से जानते हैं आखिर कौन हैं ये अर्यमा देवता और क्यों की जाती है इनकी पूजा ?
सनातन धर्म में पितृ पक्ष की अवधि पितरों के लिए समर्पित है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि पितरों की आत्मा की शांति के लिए अर्यमा देव की पूजा क्यों की जाती है। कौन हैं अर्यमा देव जिन्हें पितरों के देव के रूप में भी जाना जाता है। तो आपको बता दें कि हिंदू धर्म में अर्यमा को पितरों के देवता के रूप में जाना जाता है। इनकी पूजा से पितरों को मुक्ति मिलती है। अर्यमा देव, ऋषि कश्यप और देवमाता अदिति के 12 पुत्रों में से एक हैं।
सनातन धर्म में प्रात: और रात्रि के चक्र पर अयर्मा देव का अधिकार माना गया है। अर्यमा चंद्रमंडल में स्थित पितृलोक के सभी पितरों के अधिपति भी नियुक्त किए गए हैं। महंत श्री पारस भाई जी ने कहा कि अर्यमा देव का वर्णन शास्त्रों में भी मिलता है जो इस प्रकार है –
ॐ अर्यमा न त्रिप्य्ताम इदं तिलोदकं तस्मै स्वधा नमः। ॐ मृत्योर्मा अमृतं गमय।।
इस श्लोक का मतलब है कि पितरों में अर्यमा सर्वश्रेष्ठ हैं। अर्यमा पितरों के देव हैं। अर्यमा को प्रणाम। हे पिता, पितामह और प्रपितामह तथा हे माता, मातामह और प्रमातामह, आपको भी बारम्बार प्रणाम। आप हमें मृत्यु से अमृत की ओर ले चलें।
अदिति के तीसरे पुत्र और आदित्य नामक सौर-देवताओं में से एक अर्यमन या अर्यमा को पितरों का देवता कहा जाता है। वे जानते हैं कि कौन सा पितृ किस कुल और परिवार से है। अर्यमा पितरों के देव हैं। इनके प्रसन्न होने पर ही पितरों की तृप्ति होती है। श्राद्ध के समय इनके नाम से जलदान दिया जाता है।
कहा जाता है कि वैदिक देवता अर्यमा, अदिति के पुत्र, पितरों या पितरों में सबसे प्रमुख हैं। भगवत गीता के 10वें अध्याय में भगवान वासुदेव ने भी कहा है-
अनंतश्चास्मि नागानां वरुणो यादसामहम्।
पिताॄनामर्यमा चास्मि यमः संयमतामहम्॥
मैं नागों में अनन्त और जल के देवताओं में वरुण हूँ। पितरों में मैं अर्यमा हूँ और कानून और व्यवस्था बनाए रखने वालों में मैं यम (मृत्यु का राजा) हूं।
‘पितृ’ से अर्थ ‘ पिता, पितर या पूर्वज’ आदि होता है, धार्मिक मान्यताओं में जब पितृपक्ष या पितरों की बात आती है तो इसका अर्थ उन मृत परिजनों से लगाया जाता है जिन्हें मृत्यु के पश्चात किसी विशेष मनोकामना की पूर्ति न होने के कारण मोक्ष नहीं मिलता। इसलिए पितरों के लिए पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध कर्म आदि किए जाते हैं जिससे व्यक्ति को उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है।
पितरों के लिए श्रद्धा से किए गए मुक्ति कर्म को श्राद्ध कहते हैं तथा तृप्त करने की क्रिया या पितरों को तिल मिश्रित जल अर्पित करने की क्रिया को तर्पण कहते हैं। अर्यमन या अर्यमा आदित्य नामक सौर-देवताओं में से एक हैं। आकाश में आकाशगंगा उन्हीं के मार्ग का सूचक माना जाता है। अर्यमा या अर्यमान प्राचीन हिन्दू धर्म के एक देवता हैं जिनका उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है।
ऋषि कश्यप की पत्नीं अदिति के 12 पुत्रों में से एक अर्यमन थे। ये बारह हैं:- अंशुमान, इंद्र, अर्यमन, त्वष्टा, धातु, पर्जन्य, पूषा, भग, मित्र, वरुण, विवस्वान और त्रिविक्रम (वामन)।
महंत श्री पारस भाई जी ने कहा कि श्राद्ध की महिमा एवं विधि का वर्णन ब्रह्म, गरूड़, विष्णु, वायु, वराह, मत्स्य आदि पुराणों एवं महाभारत, मनुस्मृति आदि शास्त्रों में भी किया गया है। यमराज की गणना भी पितरों में होती है। अर्यमा को पितरों का प्रधान माना गया है और यमराज को न्यायाधीश। काव्यवाडनल, सोम, अर्यमा और यम- ये चार इस जमात के मुख्य गण प्रधान हैं।
पितृ पक्ष में तीन पीढ़ियों तक के पिता पक्ष के तथा तीन पीढ़ियों तक के माता पक्ष के पूर्वजों के लिए तर्पण किया जाता है। इन्हीं को पितर कहते हैं। पितर चाहे किसी भी योनि में हों वे अपने पुत्र, पुत्रियों एवं पौत्रों के द्वारा किया गया श्राद्ध का अंश जरूर स्वीकार करते हैं। ऐसा करने से पितृ प्रसन्न होते हैं और ऐसा माना जाता है कि उन्हें नीच योनियों से मुक्ति भी मिलती है।
मान्यता है कि जो लोग श्राद्ध नहीं करते, उनके पितृ उनके दरवाजे से वापस दुखी होकर चले जाते हैं और इस तरह आप सुख से नहीं रह पाते हैं। कुल मिलाकर कहने का मतलब है कि पितरों को दुखी करके कोई भी सुखी नहीं रह सकता है फिर चाहे आप कुछ भी कर लो।
आपके पितर या पूर्वज आपके वर्तमान जीवन से जुड़े होते हैं। पितर अर्थात मृत परिजन आपसे सीधे बात नहीं कर सकते लेकिन आपके जीवन में होने वाली अच्छी या बुरी घटनाओं के द्वारा अपने भाव प्रकट करते हैं। महंत श्री पारस भाई जी का मानना है कि पितरों की प्रसन्नता से आपको खुशहाली, सम्मान और सफलता मिलती है, वहीं दूसरी ओर इनकी अप्रसन्नता से जीवन में अनावश्यक ही समस्याएं आने लगती हैं।
आपको हर ओर से परेशानियां घेर लेती हैं। पारिवारिक समस्याओं से लेकर आर्थिक नुकसान, कॅरियर में परेशानियां आदि आने लगती हैं। पितरों की प्रसन्नता और मुक्ति के लिए दान, श्राद्ध कर्म किया जाता है, जिससे पितरों को मुक्ति मिलती है और वे प्रसन्न होकर आपको आशीर्वाद देते हैं।
"Mata Rani's grace is like a gentle breeze, touching every heart that seeks refuge in her love."