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पुराण क्या हैं और कितने हैं ?

Blog, 18/01/2024

हमारे सनातन धर्म में सभी धार्मिक ग्रंथों में से पुराण का विशेष महत्व है तथा ये प्राचीनतम ग्रंथों में से एक है। पुराण का अर्थ है प्राचीन रचना और इन पुराणों में लिखी बातें या बताई बातें और ज्ञान आज भी सच साबित हो रहे हैं। हम सब इस बात से अच्छी तरह वाकिफ हैं कि हमारे पुराणों में लिखी बातें, हमारी हिंदू संस्कृति का प्रतिनिधित्व करती हैं। आइये इस आर्टिकल में जानते हैं पुराण क्या हैं और कितने हैं ?
 

पुराण क्या हैं ?


पुराणों में देवी देवताओं से जुड़ी कई बातें हैं जिसमें पाप-पुण्य और धर्म-अधर्म के बारे में बताया गया है। पुराण में व्यक्ति के जन्म-मृत्यु और मृत्यु के बाद स्वर्ग या नरक तक की यात्रा के बारे में भी विस्तार से बताया गया है। सांस्कृतिक अर्थ में हिन्दू संस्कृति के वे धर्मग्रन्थ जिनमें सृष्टि से लेकर प्रलय तक का इतिहास है। 

यानि कुछ पुराणों में इस सृष्टि की रचना से लेकर अंत तक का विवरण है। ‘पुराण’ का शाब्दिक अर्थ है, प्राचीन या पुराना। पुराण, हिन्दुओं के धर्म-सम्बन्धी आख्यान ग्रन्थ हैं, जिनमें संसार, ऋषियों, राजाओं के वृत्तान्त आदि हैं। पुराण मनुष्य को धर्म, सदाचार और नीति के अनुसार जीवन व्यतीत करने की शिक्षा देते हैं। इसके अलावा पुराण मनुष्य के कर्मों का विश्लेषण कर उन्हें दुष्कर्म करने से रोकते हैं।
 

पुराण कितने हैं ?


हिन्दू धर्म में कुल 18 पुराण हैं, जो निम्न हैं –

ब्रह्म पुराण, पद्म पुराण, विष्णु पुराण, वायु पुराण, भागवत पुराण, नारद पुराण, मार्कण्डेय पुराण, अग्नि पुराण, भविष्य पुराण, ब्रह्म वैवर्त पुराण, लिङ्ग पुराण, वाराह पुराण, स्कन्द पुराण, वामन पुराण, कूर्म पुराण, मत्स्य पुराण, गरुड़ पुराण, ब्रह्माण्ड पुराण।

ब्रह्म पुराण Brahma Puran

18 पुराणों में ब्रह्म पुराण सबसे पहला और पुराना पुराण है। ब्रह्मपुराण के रचयिता महर्षि वेद व्यास जी हैं और इसे संस्कृत भाषा में लिखा गया है। इस पुराण को महापुराण भी कहते हैं। इस पुराण में ब्रह्मा जी के अलावा सृष्टि की उत्पत्ति, गंगा अवतरण आदि कथायें हैं। इस पुराण में कलयुग का भी विवरण दिया गया है। ब्रह्म देव को आदि देव भी कहा जाता है इसलिए यह पुराण आदि पुराण के नाम से भी जाना जाता है।

पद्म पुराण Padma Puran

पद्म पुराण के रचयिता महर्षि वेद व्यास जी हैं। पद्म का अर्थ है कमल का फूल। पद्म पुराण में बताया गया है कि ब्रह्मदेव श्री नारायण जी के नाभि कमल से उत्पन्न हुए थे और उन्होंने सृष्टि की रचना की। इस पुराण के 5 खंडो में श्रुष्टि खंड, भूमि खंड, स्वर्ग खंड, पाताल खंड और उत्तर खंड में भगवान विष्णु की महिमा, तीर्थों के बारे में, श्री कृष्ण और श्री राम की लीलाओं और तुलसी महिमा का अलौकिक वर्णन किया गया है।

विष्णु पुराण Vishnu Puran

विष्णु पुराण में भगवान विष्णु जी की महिमा का अद्भुत वर्णन किया गया है। विष्णु पुराण के रचयिता पराशर ऋषि हैं और यह पुराण संस्कृत भाषा में लिखा गया है। इस पुराण में भक्त प्रह्लाद की कथा, ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति, गृह नक्षत्र, पृथ्वी, ज्योतिष, समुद्र मंथन, कृष्ण, रामकथा, विष्णु जी और लक्ष्मी माँ की महिमा, वर्णव्यवस्था, देवी देवताओं की उत्पत्ति आदि के बारे में बताया गया है।

वायु पुराण Vayu Puran

वायु पुराण को के रचयिता श्री वेद व्यास जी हैं। वायु पुराण को शैव पुराण भी कहते हैं। वायु पुराण में खगोल, भूगोल, सृष्टिक्रम, तीर्थ,  शिव भक्ति, युग, श्राद्ध, पितरों, ऋषि वंश, राजवंश, संगीत शास्त्र, आदि का विस्तारपूर्वक विवरण दिया गया है। इस पुराण में शिव जी की महिमा का वर्णन है इसलिए इसे शिव पुराण भी कहा जाता है।

भागवत ( श्रीमद्भागवत ) पुराण Bhagavata Purana

भागवत पुराण के रचयिता वेद व्यास जी हैं और भागवत पुराण 18 पुराणों में से पांचवा पुराण है। इसे श्रीमद्भागवतम् के नाम से भी जाना जाता है। इस पुराण को संस्कृत में लिखा गया है। भागवत पुराण आत्मा की मुक्ति का मार्ग बताता है। इस पुराण में श्री कृष्ण के बारे में बताया गया है, इसमें उनके जन्म, प्रेम और कई लीलाओं का विवरण दिया गया है।  इसमें महाभारत युद्ध और कृष्ण की भूमिका के बारे में भी बताया गया है।

नारद पुराण Narad Puran

नारद पुराण के रचयिता महर्षि वेद व्यास जी हैं। नारद पुराण को नारदीय पुराण भी कहा जाता है। महर्षि वेद व्यास जी ने इस पुराण को संस्कृत भाषा में लिखा था। इस पुराण में ज्योतिष,  शिक्षा,  ईश्वर की आराधना, व्याकरण, गणित आदि के बारे में विस्तारपूर्वक बताया गया है। साथ ही इसमें कलियुग में होने वाले परिवर्तनों के बारे में भी बताया गया है।

मार्कण्डेय पुराण Markandey Puran

मार्कण्डेय पुराण 18 पुराणों में से 7 वां पुराण है। यह पुराण अन्य पुराणों से छोटा है। महर्षि मार्कण्डेय द्वारा कहे जाने के कारण इसे मार्कण्डेय पुराण कहा जाता है। इस पुराण में मानव कल्याण के लिए भौतिक, सामाजिक, आध्यात्मिक आदि विषयों के बारे में बताया है। यह पुराण दुर्गा चरित्र की व्याख्या के लिए जाना जाता है।

अग्नि पुराण Agni Puran

अग्नि पुराण 18 पुराणों में से 8वां पुराण है और इस पुराण के रचयिता वेद व्यास जी हैं और वेद व्यास जी ने इसे संस्कृत भाषा में लिखा है। इस पुराण का नाम अग्नि पुराण इसलिए पड़ा दरसअल इसे अग्नि देव ने गुरु वशिष्ठ को सुनाया था। इस पुराण में त्रिदेवों ब्रह्म देव, विष्णु देव और शिव जी का वर्णन है। साथ ही महाभारत और रामायण का भी विवरण है।

भविष्य पुराण Bhavishya Puran

भविष्य पुराण 18 पुराणों में से 9 वां पुराण है और इसके रचयिता महर्षि वेद व्यास जी हैं। महर्षि वेद व्यास जी ने इसे संस्कृत भाषा में लिखा था। भविष्य पुराण में नीति, सदाचार, धर्म,  व्रत, दान, आयुर्वेद आदि का विवरण है।  इस पुराण में सूर्य देव का भी विवरण है। इस पुराण में कई भविष्यवाणियाँ की गई जो सही साबित हुई। इसमें हर्षवर्धन महाराज, शिवाजी महाराज, पृथ्वीराज चौहान आदि कई वीर हिन्दू राजाओं और अलाउद्दीन, बाबर, रानी विक्टोरिया, अकबर आदि के बारे में बताया गया है।

ब्रह्म वैवर्त पुराण Brahma Vaivarta Purana

ब्रह्म वैवर्त पुराण 18 पुराणों में 10वां पुराण है और इसके रचयिता वेद व्यास जी हैं। इसे उन्होंने संस्कृत भाषा में लिखा है। इस पुराण में अनेक स्त्रोत हैं। इसमें यह भी बताया गया है कि कृष्ण से ही शिवजी, विष्णु जी, ब्रह्म देव और इस प्रकृति का जन्म हुआ। इस पुराण में कृष्ण को ही परब्रह्म माना गया है।

लिङ्ग पुराण Ling Puran

लिङ्ग पुराण 18 पुराणों में से 11वां पुराण है तथा इसके रचयिता वेद व्यास जी हैं। इस पुराण में भोलेनाथ के 28 अवतारों के बारे में बताया गया है और इसमें रुद्रावतार और लिंगोद्भव की कथा का भी विवरण है। साथ ही इसमें भोलेनाथ द्वारा ज्योर्तिलिंग के रूप में प्रकट होने की घटना के बारे में भी बताया गया है।

वराह पुराण Varah Puran

वराह पुराण 18 पुराणों में से 12 वां पुराण है और इसके रचयिता महर्षि वेद व्यास जी हैं। वराह पुराण संस्कृत भाषा में लिखा गया है। इस पुराण में विष्णु जी के वराह अवतार का उल्लेख है। माना जाता है कि विष्णु जी धरती के उद्धार के लिए वराह रूप में अवतरित हुए थे। इसमें वराह कथा, माँ पार्वती और शिवजी की कथा, व्रत, तीर्थ, दान आदि का वर्णन है।

स्कन्द पुराण Skand Puran

स्कन्द पुराण 18 पुराणों में से 13 वां पुराण है और इसकी रचना वेद व्यास जी ने संस्कृत भाषा में की थी। इस पुराण में शिव पुत्र कार्तिकेय जिनका दूसरा नाम स्कन्द भी है उनके बारे में बताया गया है। इसमें नर्मदा, गंगा, सरस्वती नदियों के उद्गम के बारे में कथाएँ हैं और साथ ही इसमें व्रतों का भी विवरण दिया गया है। इसमें योग, धर्म, सदाचार, भक्ति और ज्ञान के बारे में सुन्दर वर्णन किया गया है।

वामन पुराण Vaman Puran

वामन पुराण 18 पुराणों में से 14 वां पुराण है और इसके रचयिता है वेद व्यास और इसे उन्होंने संस्कृत भाषा में लिखा। इस पुराण में भगवान विष्णु के वामन अवतार के बारे में लिखा गया है। इसमें शिव लिंग की पूजा विधि, शिव पार्वती विवाह, गणेश पूजन, भगवती दुर्गा, भक्त प्रह्लाद आदि का विवरण दिया गया है।

कूर्म पुराण Kurma Puran

कूर्म पुराण 18 पुराणों में 15 वां पुराण है तथा इसके रचयिता वेदव्यास जी हैं। यह संस्कृत भाषा में लिखा गया है। इस पुराण में पाप का नाश करने वाले व्रतों के बारे में बताया गया है। साथ ही इसमें विष्णु का सुंदर विवरण, शिवलिंग की महिमा, वामन अवतार आदि के बारे में बताया गया है।

मत्स्य पुराण Matsya Puran

मत्स्य पुराण 18 पुराणों में से 16वां पुराण है और इसके रचयिता वेदव्यास जी हैं। इस पुराण के श्लोकों में विष्णु जी के मत्स्य अवतार का  विवरण दिया गया है। दरअसल विष्णु जी ने अपने मत्स्य अवतार में सप्त ऋषियों और राजा वैवश्वत मनु को जो उपदेश दिए थे यह पुराण उसी पर आधारित है। इस पुराण में नव गृह, तीनों युगों, तारकासुर वध कथा, नरसिंह अवतार आदि का विवरण दिया गया है।

गरुड़ पुराण Garuda Puran

गरुड़ पुराण 18 पुराणों में से 17 वां पुराण है। इस पुराण के रचयिता वेद व्यास जी हैं और उन्होंने इसे संस्कृत में लिखा है। यह पुराण विष्णु भक्ति पर आधारित है। हमारे हिंदू धर्म में किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद इस पुराण को जरूर पढ़ा जाता है। क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस पुराण को पढ़ने से मृतक की आत्मा को मुक्ति मिलती है। इसमें दान, सदाचार, शुभ कर्म, तीर्थ, आदि के बारे में विवरण दिया गया है।

ब्रह्माण्ड पुराण Brahmanda Puran

ब्रह्माण्ड पुराण 18 पुराणों में से आखिरी पुराण है और ब्राह्माण पुराण के रचयिता वेदव्यास जी हैं। यह पुराण वैज्ञानिक दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण है। इस पुराण को खगोल शास्त्र भी कहते हैं। इसमें समस्त ग्रहों का विस्तृत वर्णन है।

महंत श्री पारस भाई जी के अनुसार जो व्यक्ति जीवन में इन सभी 18 पुराणों के नाम और उसमें लिखित बातों का श्रवण करता है या पाठ करता है। वह इन 18 पुराणों से मिलने वाले पुण्य को पा लेता है।


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