संस्कार का अर्थ उन कार्यों से है जो किसी व्यक्ति को योग्य और चरित्रवान बनाकर उसके शरीर, मन और मस्तिष्क को पवित्र करते हैं। कुल मिलाकर संस्कार मनुष्य को सभ्य बनाते हैं। मनुष्य को सही क्या है गलत क्या है उसके बारे में बताते हैं। महंत श्री पारस भाई जी का कहना है कि श्रेष्ठ संस्कारवान मानव का निर्माण ही संस्कारों का मुख्य उद्देश्य है। संस्कारों के द्वारा ही मनुष्य में शिष्टाचरण एवं सभ्य आचरण की प्रवृत्ति का विकास होता है। इस ब्लॉग में आइये विस्तार से जानते हैं क्या होते हैं संस्कार ?
संस्कार का अर्थ है किसी कार्य की छाप या उसका प्रभाव, जो हम उसके लक्ष्यों के प्रति पूर्ण जागरूकता के साथ करते हैं। दुनिया की हर चीज़ की तरह, हमारे सकारात्मक एवं नकारात्मक संस्कार और हमारे जीवन पर उनका प्रभाव निरंतर प्रवाह में रहता है। संस्कार शब्द का अर्थ है, शुद्धिकरण। संस्कार का अभिप्राय उन धार्मिक कृत्यों से था जो किसी व्यक्ति को पूर्ण रुप से योग्य सदस्य बनाने के उद्देश्य से उसके शरीर, मन और मस्तिष्क को पवित्र करने के लिए किए जाते थे।
हिंदू संस्कारों का उद्देश्य व्यक्ति में अभीष्ट गुणों को जन्म देना है। महंत श्री पारस भाई जी की दृष्टि में संस्कार का अर्थ यह है कि,समाज या व्यक्ति जिन विशेष गुणों के कारण जाना जाता है वे गुण उस समाज और व्यक्ति के संस्कार कहलाते हैं। मानव जीवन में संस्कारों का अत्यधिक महत्व है। संस्कारों की सर्वाधिक महत्ता मानवीय चित्त की शुद्धि के लिए है। संस्कारों से ही मनुष्य का चरित्र निर्मित होता है और चरित्र, जिस पर मनुष्य का जीवन सुख और मान-सम्मान को प्राप्त करता है।
संस्कारों का उद्देश्य मनुष्य में बुरी आदतों को दूरकर मानवता में परिवर्तित करना था। प्राचीन काल में मनुष्य के जीवन में धर्म का विशेष महत्व था। संस्कारों का उद्देश्य मनुष्य के व्यक्तित्व को इस प्रकार विकसित करना है कि वह संपूर्ण विश्व में सद्बुद्धि और शक्तियों के साथ आगे बढ़े।
महंत श्री पारस भाई जी के अनुसार संस्कारवान व्यक्ति की शक्ति और ऊर्जा समाज और विश्व के कल्याण के लिए कार्य करती है और वहीं असंस्कारित व्यक्ति की शक्ति और ऊर्जा विश्व और समाज के विध्वंस के लिए कार्य करती है। यही वजह है कि संस्कारवान होना अत्यंत आवश्यक है। संस्कारवान वह है जो परिवार, समाज, देश एवं विश्व के कल्याण के लिए कार्य करे।
ऐसा माना जाता है कि जन्म से लेकर 21 वर्ष तक मुख्य रूप से संस्कारों का निर्माण हो जाता है। दरअसल इस उम्र में पड़ी हुई आदतें ही आगे चलकर संस्कार का रूप ले लेती हैं। बच्चों में अच्छी आदतों का निर्माण बचपन में ही शुरू हो जाता है। हर माता-पिता को चाहिए कि अपने बच्चों में अच्छी आदतों का निर्माण करें। क्योंकि बच्चे कोरे
कागज की तरह हैं। उन्हें आप जैसे बनाओगे वो वैसे ही उभर कर आएंगे। बच्चों के ऊपर माता-पिता के संस्कारों का बहुत बड़ा प्रभाव पड़ता है। अपने बच्चों में खान-पान से लेकर, दूसरों का सम्मान, गुरु की इज्जत करना, प्रेम और पूजा-अर्चना आदि हर छोटी बड़ी बातों का महत्व जरूर समझायें।
संस्कृत में संस्कार का अर्थ संस्कृति या उत्तम बनाना है। हिंदू धर्म में संस्कार व्यक्ति के जीवन में बहुत महत्व रखते हैं। महंत श्री पारस भाई जी का कहना है कि संस्कार आपको सद्कर्मों की ओर ले जाते हैं। संस्कार आपको पापों से दूर रखते हैं। अच्छे संस्कार के लक्षण हैं, शुद्धता, पवित्रता एवं धार्मिकता। अच्छे कर्म सकारात्मक संस्कार बनाते हैं, वहीं बुरे कर्म नकारात्मक संस्कार पैदा करते हैं।
संस्कारों की बात करें तो गर्भावस्था में गर्भाधान, पुंसवन और सीमंतोन्नयन तीन संस्कार होते हैं। इन तीनों का उद्देश्य माता-पिता की जीवनचर्या इस प्रकार बनाना है कि बालक अच्छे संस्कारों को लेकर जन्म ले। इसलिए जात- कर्म, नामकरण, निष्क्रमण, अन्न प्राशन, मुंडन, कर्ण बेध, ये छः संस्कार पाँच वर्ष की आयु में समाप्त हो जाते हैं। बाल्यकाल में ही मनुष्य की आदतें बनती हैं, अतः ये संस्कार बहुत जल्दी- जल्दी रखे गये हैं।
ऐसे ही गर्भस्थ शिशु से लेकर मृत्युपर्यंत तक संस्कार चलते हैं। व्यक्ति की मृत्यु के बाद भी हिंदू धर्म में संस्कार किये जाते हैं। हिंदू धर्म में सोलह संस्कारों का बहुत महत्व है। अत: गर्भस्थ शिशु से लेकर मृत्युपर्यंत तक क्रियाओं को संस्कार कहा जाता है। जो मंत्रों के द्वारा किये जाते हैं।
देखा जाये तो संस्कार हमारे ही सही या गलत विचारों का हमारे मन, दिल दिमाग पर होने वाला प्रक्षेपण होता है। संस्कार मनुष्य के जीने के तरीके को प्रदर्शित करता है। महंत श्री पारस भाई जी ने बताया कि संस्कार आपके जीवन की दिशा को निश्चित करते हैं। इसलिए जीवन में संस्कार बहुत महत्वपूर्ण है।
संस्कार, अच्छे भी होते हैं और बुरे भी यानि जिन संस्कारों से व्यक्ति का जीवन बुराइयों से हटकर, धर्म की राह पर चलता है, सद्मार्ग पर चलता है और अच्छे कर्म करता है वह संस्कारी कहलाता है। वहीं दूसरी ओर जिन संस्कारों से व्यक्ति का जीवन बुराइयों के साथ, कुमार्ग पर चलता है, अधर्म की राह पर चलता है, बुरे कर्म करता है, वह कुसंस्कारी कहलाता है।
संस्कार शब्द का अर्थ होता है ‘सज्जन बनाना’ अथवा ‘निर्माण करना’। संस्कार एक बच्चे को सद्भावपूर्ण और सभ्य नागरिक बनाते हैं। संस्कारों के द्वारा ही एक बच्चा सामाजिक और नैतिक मूल्यों को सीखता है, यह कहना है महंत श्री पारस भाई जी का। यह जरुरी भी है क्योंकि एक बच्चे को जीवन में आगे बढ़ने के लिए, सफलता और सुख की प्राप्ति के लिए अच्छे संस्कारों का ज्ञान होना जरुरी है।
संस्कार ही एक बच्चे को व्यक्तिगत और सामाजिक सफलता की ओर ले जाते हैं और एक सद्भावपूर्ण, सशक्त और सुदृढ़ समाज के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। बच्चे को कैसी शिक्षा दी जा रही है यह भी बहुत जरुरी है। क्योंकि शिक्षा भी संस्कारों के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
शिक्षा द्वारा ही सोचने की क्षमता और सही गलत की जांच करने की क्षमता का विकास होता है और साथ ही दूसरों के प्रति सम्मान करने की क्षमता विकसित होती है। कुल मिलाकर परिवार, स्कूल, मित्रों, शिक्षकों और सामाजिक घटनाओं द्वारा प्रभावित होकर एक बच्चे के व्यक्तित्व में संस्कारों का निर्माण होता है।
"Mata Rani's grace is like a gentle breeze, touching every heart that seeks refuge in her love."