Back to privious Page


आखिर अर्जुन के गुणों किन गुणों के कारण श्रीकृष्ण बने थे उनके सारथी ?

Blog, 31/01/2024

यदि महाभारत की बात करें तो सबसे शक्तिशाली अर्जुन ही नजर आते हैं। भगवान श्री कृष्ण जी ने महाभारत की लड़ाई में अर्जुन के सारथी के रूप में भाग लिया था। महंत श्री पारस भाई जी ने बताया कि अपने दिव्य सुदर्शन चक्र से सारी सृष्टि को पल भर में समाप्त कर देने की सामर्थ्य रखने वाले सर्वशक्तिशाली भगवान श्री कृष्ण जी ने महाभारत में अपने प्यारे मित्र अर्जुन के रथ का संचालक बनना स्वीकार किया था। स्वयं अर्जुन को भी प्रभु श्री कृष्ण जी का ये निर्णय बहुत ही अधिक आश्चर्यचकित करने वाला लगा था।

महाभारत के युद्ध में भगवान श्रीकृष्ण ने अस्त्र तो नहीं उठाया लेकिन उन्होंने स्वयं अर्जुन के रथ का सारथी बनने का फैसला किया और अर्जुन को गीता का ज्ञान भी दिया। लेकिन क्या आप जानते हैं आखिर क्यों भगवान श्री कृष्ण अर्जुन के सारथी बने थे और क्या था इसका कारण ? श्रीकृष्ण चाहते तो किसी और योद्धा को भी चुन सकते थे लेकिन सिर्फ अर्जुन ही क्यों? आखिर अर्जुन में ऐसे कौन से गुण थे जिसकी वजह से श्रीकृष्ण बने थे उनके सारथी।

क्यों पांच पांडवों में से सिर्फ अर्जुन ही श्रीकृष्ण को सही पात्र लगे यह सवाल हर किसी के मन में जरूर आता होगा ? आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इसका कारण था अर्जुन के अंदर समाहित ऐसे कुछ गुण, जो अर्जुन को पांडवों से या अन्य लोगों से अलग बनाते थे। चलिए जानते हैं किन गुणों के कारण श्रीकृष्ण ने सिर्फ अर्जुन को चुना था।

अर्जुन का तेज


भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन में जो पहला गुण देखा वह था अर्जुन का तेज। अर्जुन अत्यंत बुद्धिमान थे और इस बात को भगवान श्रीकृष्ण अच्छी तरह जानते थे।  महंत श्री पारस भाई जी कहते हैं कि उनकी बुद्धिमानी और उनका स्वभाव सबसे अनोखा था। अर्जुन की हर बात में बुद्धिमता छिपी होती थी। कुल मिलाकर अर्जुन के व्यक्तित्व में जो प्रचंड तेज था, वो तेज अन्य किसी भी पांडव में नहीं था। उनकी हर एक बात आकर्षक थी।

शारीरिक और मानसिक बल


महाभारत की पूरी कथा में ऐसी कई बातें हैं, जो अर्जुन के शारीरिक बल के साथ-साथ मानसिक बल यानि उनकी बुद्धि का प्रदर्शन करते हैं। अर्जुन अपनी बुद्धि क्षमता की बदौलत चतुर नीतियां बना कर, शत्रुओं का नाश कर देते थे। अर्जुन बहुत ही ताकतवर और बुद्धिमान होने के साथ-साथ भगवान श्रीकृष्ण के सबसे प्रिय भी थे।

कुशल धनुर्धर और स्फूर्ति


अर्जुन एक कुशल धनुर्धर थे, इस बात को तो हर कोई जानता है लेकिन वो एक कुशल धनुर्धर बने थे अपने हाथों की स्फूर्ति के कारण। जितनी स्फूर्ति से अर्जुन धनुष से बाण चलाते थे, उतनी स्फूर्ति और किसी के हाथों में नहीं थी। महंत श्री पारस भाई जी ने कहा कि अर्जुन का यही गुण तो उन्हें सर्वश्रेष्ठ धर्नुधारी बनाता था। इस स्फूर्ति को श्रीकृष्ण ने बखूबी पहचाना और जाना। यह भी एक कारण है कि महाभारत के युद्ध के मैदान में भगवान श्रीकृष्ण, अर्जुन के सारथी बने।

प्रभावशाली व्यक्तित्व


अर्जुन अपने पराक्रम और तेज बुद्धि के लिए तो प्रसिद्ध थे ही साथ ही अपने प्रभावशाली व्यक्तित्व के लिए भी प्रसिद्ध थे। अर्जुन के व्यक्तित्व की बात की जाये तो उनके चेहरे पर एक अलग ही तेज था जो सबको अपनी ओर आकर्षित करता था।

विषादहीनता का गुण


विषादहीनता का मतलब होता है किसी भी बात से दुखी ना होना। दरअसल जब युद्ध के मैदान में अपने ही भाईयों को शत्रु के रूप में देखकर अर्जुन ने हथियार त्याग दिए थे। वो उनसे युद्ध नहीं लड़ना चाहते थे क्योंकि उनमें अपनों से लड़ने की हिम्मत नहीं थी। जब भगवान श्रीकृष्ण ने यह देखा तो तब उन्होंने अर्जुन को यह ज्ञान दिया कि यह अपनों की नहीं बल्कि धर्म की लड़ाई है। 

भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को  गीता का उपदेश देते हुए समझाया कि यदि तुमने आज हथियार त्याग दिए तो अधर्म हो जाएगा और अंत में अधर्म की जीत हो जाएगी। बस तब से अर्जुन के भीतर विषादहीनता का गुण आ गया।

पराक्रमी


श्रीकृष्ण के अनुसार अर्जुन हर रूप में सक्षम थे। वह चुनौतियों से नहीं भागते थे, फिर परिस्थिति चाहे कैसी भी हो उसका डटकर सामना करते थे। अर्जुन ने अपने पराक्रम को दर्शाने में कभी कोई कमी नहीं छोड़ी। वह हमेशा निर्भीक बने रहे।

सही समय और तेजी से काम करने की क्षमता


अर्जुन के अंदर हर काम को करने की प्रबल क्षमता थी। महाभारत के सभी पात्रों में से केवल अर्जुन ही एकमात्र ऐसे योद्धा थे, जो कि किसी भी परेशानी का सामना करने में समर्थ थे। वह हर काम को सही समय पर करना जानते थे। उनमें तेजी से काम करने की क्षमता थी।

महाभारत के ऐसे कई प्रसंग हैं जिनसे पता चलता है कि अर्जुन के सामने चाहे जो भी समस्या आई, उसका हल उन्होंने सही समय पर बड़ी ही आसानी से दिया। अर्जुन का मानना था कि यदि सही समय आ गया है तो उस कार्य को करने में एक पल की भी देरी नहीं करनी चाहिए। उसे जितनी जल्दी किया जा सके कर लेना चाहिए।

धैर्य का गुण


ऐसा माना जाता है कि पांच पांडव में से सबसे अधिक धैर्य यदि किसी में था तो वह अर्जुन में था। महंत श्री पारस भाई जी के अनुसार जिस मनुष्य में धैर्य की भावना नहीं है, वह जीवन में कभी आगे नहीं बढ़ सकता है। जीवन में सफल होने के लिए धैर्य का होना अत्यंत आवश्यक है।

इन्हीं सभी गुणों के कारण श्रीकृष्ण ने युद्ध के दौरान उनका सारथी बनना पसंद किया था और ये सारे गुण ही अर्जुन की जीत के कारण भी थे। भगवान श्री कृष्ण जी ने अर्जुन को दिव्य शस्त्र नही बल्कि दिव्य शास्त्र दिया था। वो दिव्य शास्त्र थाश्री मद्भगवद्गीता जो कि आज भी उतना ही प्रभावी है जितना तब था। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जीवन का मार्ग बताया था।


  Back to privious Page

About us

Personalized astrology guidance by Parasparivaar.org team is available in all important areas of life i.e. Business, Career, Education, Fianance, Love & Marriage, Health Matters.

Paras Parivaar

355, 3rd Floor, Aggarwal Millennium Tower-1, Netaji Subhas Place, Pitam Pura, New Delhi - 110034.

   011-42688888
  parasparivaarteam@gmail.com
  +91 8882580006