आत्ममंथन आपको अपनी कमजोरी, ताकत, अवसरों और चुनौतियों की पहचान करने में मदद करता है। यानि आत्म-चिंतन करके आप आत्मविश्वासी और अधिक प्रभावी बन सकते हैं। आत्ममंथन करने के बाद जब मनुष्य अपने गुणों और कमियों को जान लेता है तब वह अपने व्यक्तित्व का निर्माण सही ढंग से कर पाता है। इसी कड़ी में आइये जानते हैं क्या है आत्ममंथन और क्यों करना चाहिए आत्ममंथन।
‘आत्ममंथन’ शब्द का मतलब है- स्व-विश्लेषण करना या फिर किसी विषय पर गहनता से विचार करना। महंत श्री पारस भाई जी ने बताया कि आत्मा आपका सबसे गहरा हिस्सा है जो आपको उस परमात्मा, ब्रह्मांड और दिव्यता से जोड़ती है। आत्ममंथन करते समय आत्मज्ञान से मिलना जरुरी है। अपने आत्मा के ज्ञान को प्राप्त करना आत्ममंथन कहलाता हैl
आत्मा के ज्ञान से परमात्मा की प्राप्ति ही आत्ममंथन है l सच्चा ज्ञानी वही होता है जो पहले आत्ममंथन करता है फिर उसके बाद उस पर विचार कर अमल करता है। महंत श्री पारस भाई जी के अनुसार हर इंसान को स्वयं का आंकलन करना बहुत जरुरी है। उनका मानना है कि जब तक आप खुद को नहीं समझेंगे, तब तक आप स्वयं से जुड़ा कोई भी सही निर्णय नहीं ले सकेंगे।
जब जीवन में कोई लक्ष्य पाना है, दुःख से निकलना है, साथ ही परिवार, देश और समाज के लिए कुछ अच्छा करना है या इसके अलावा जब लगे मैं भटक गया हूँ, कहीं खो सा गया हूँ तब आत्म मंथन की आवश्कता पड़ती है। आत्म मंथन व्यक्ति को सही गलत का निर्णय करने में मदद करता है, यह कहना है महंत श्री पारस भाई जी का। इसलिए कुछ समय अकेले रह कर आत्ममंथन जरूर करें। आत्ममंथन इसलिए जरुरी है-
महंत श्री पारस भाई जी कहते हैं कि जिस तरह समुद्र मंथन के दौरान अच्छी चीजों में अमृत और बुरी चीजों में विष निकला था। ठीक वैसे ही मनुष्य को भी समय-समय पर अपना भी आत्ममंथन करना चाहिए। ऐसा करने से आप वास्तव में जीवन क्या है उसको समझ पायेंगे और जीवन की समस्याओं से दूर रहेंगे। दरअसल आप कई बार कुछ चीज़ों में उलझ कर रह जाते हैं और जीवन की सच्चाई को नहीं समझ पाते हैं।
इसलिए अपने अंदर छुपी हुई बुराईयों को आप पहचान नहीं पाते हैं। ये बुराईयां आपके अंदर विष के समान होती हैं और इन बुराइयों को जड़ से खत्म करना बेहद जरुरी होता है। यह सिर्फ और सिर्फ आत्ममंथन के द्वारा ही संभव हो सकता है।
महंत श्री पारस भाई जी कहते हैं कि यदि आप अपनी आत्मा से जुड़ते हैं तो आपको अपने जीवन से संबंधित कई सवालों के जवाब मिल जाते हैं। आप कहाँ गलत हो कहाँ सही, आपको सब समझ में आने लगता है। आपको ऐसी चीज़ें समझ में आने लगती हैं जो आपका दिमाग और दिल आपको नहीं दे सकता है। श्रीमद्भागवत गीता के अनुसार हर मनुष्य को आत्ममंथन जरूर करना चाहिए। आत्मज्ञान के जरिए ही व्यक्ति को अपने गुण और अवगुण के बारे में पता चलता है।
आत्म मंथन आज के समय में बहुत ही जरूरी है क्योंकि आज हर व्यक्ति अनेक प्रकार की चिंताओं से घिरा हुआ है। इसका एक ही कारण है, खुद को ये शरीर समझना जबकि यह एक आत्मा है। अब समय आ गया है खुद को जानने का। आत्मा जिसका स्वरूप शांत है बस हम उसका स्वरूप पहचानें तो दुःख, समस्याएं, चिंता और अन्य सभी बातें जीवन से समाप्त हो जायेंगी। आत्ममंथन, आत्मा का मंथन अपने स्वरूप की जानकारी प्राप्त करना है। हम कौन हैं, क्या है और कैसे हैं इन्हीं जिज्ञासाओं को शांत करने के लिए किए गए विचार को आत्ममंथन कहते हैं l
आत्ममंथन में शांत रूप से बैठकर अपने स्वरूप का विचार कर ध्यान की अवस्था को प्राप्त करें l यदि हम ऐसा करते हैं तो हम अपने आप को हल्का महसूस करेंगे। अपने स्वरूप को पहचानना ही भगवान को पहचानना है l महंत श्री पारस भाई जी के अनुसार परमात्मा कहीं नहीं है वह हमारे अपने स्वरूप में ही स्थित हैं, वह हमारे अंतर्मन में हैंl सिर्फ हमें अपनी आत्मा के ज्ञान का एहसास करना है। महंत श्री पारस भाई जी का मानना है कि जिस दिन हमें अपनी आत्मा का ज्ञान हो जायेगा बस उस दिन हम परमात्मा में मिल जाएंगे, यही तो है आत्ममंथन l
"Mata Rani's grace is like a gentle breeze, touching every heart that seeks refuge in her love."