महंत श्री पारस भाई जी ने कहा कि हिंदू धर्म में पूजा-पाठ और शुभ-मांगलिक कार्यों में पंच यानी 5 अंक को शुभ माना जाता है। यानि हिंदू धर्म में पांच की संख्या शुभ होती है। फिर चाहे वे पंचदेव हों, पंचगव्य हो या पंचोपचार पूजा।
हिंदू धर्म में पूजा-पाठ से जुड़े कई नियम और महत्व होते हैं। इनका पालन करना अत्यंत ज़रूरी होता है। हिंदू धर्म में होने वाले पूजा-पाठ या शुभ-मांगलिक कार्यों में पंच मतलब पांच अंक का सनातन धर्म में विशेष महत्व है। जैसे पंचामृत, पंचदेव, पंचगव्य, पंचपल्लव, पंचपुष्प, पंचांग, पंचोपचार पूजा आदि। आखिर क्यों पांच अंक को पूजा-पाठ या धार्मिक कार्यों में शुभ माना गया है। चलिए जानते हैं इसका कारण कि हिंदू धर्म में पांच अंक यानि पंच का क्या है धार्मिक महत्व ?
पंचोपचार पूजा पद्धति में किसी भी देवी-देवता की पूजा करने के लिए 5 तरह की मुद्राओं को बताया गया है। यह माना जाता है कि इस मुद्रा में पूजन करने से देवी-देवता पूजा सामग्री को ग्रहण करते हैं। ये पांच मुद्राएं हैं गंध मुद्रा, पुष्प मुद्रा, धूप मुद्रा, दीप मुद्रा और नैवेद्य मुद्रा।
पंचोपचार अर्थात देवता को गंध (चंदन) लगाना, पुष्प अर्पित करना, धूप दिखाना (अथवा अगरबत्ती से आरती उतारना), दीप-आरती करना तथा नैवेद्य निवेदित करना। यानि पंचोपचार पूजन विधि में पांच विधियों से पूजा की जाती है, जिसमें गंध, फूल, धूप, दीप और नैवेद्य शामिल होता है। सबसे पहले भगवान को गंध यानि चंदन, हल्दी या कुमकुम का तिलक लगाया जाता है। इसके बाद ताजे पुष्प अर्पित करें। फिर धूप या अगरबत्ती से आरती उतारना। इसके बाद दीपक प्रज्जवलित करें और आखिर में नैवेद्य निवेदित करें।
महंत श्री पारस भाई जी के अनुसार पूजा करते समय परम भक्ति और भाव समान रूप से महत्वपूर्ण है। यदि पूजा विधि करते समय भगवान के प्रति प्रेम और भक्ति की कमी होती है, तो वह पूजा उन तक नहीं पहुँचती है। महंत श्री पारस भाई जी कहते हैं कि भगवान भाव के लिए तरसते हैं। यदि हम भगवान की पूजा उचित तरीके से करते हैं तो भगवान हम पर प्रसन्न होते हैं और हम पर अपनी कृपा बरसाते हैं।
हिंदू धर्म में किसी भी तरह की पूजा में पंच पल्लव यानी पांच पवित्र वृक्षों के पत्तों को रखना अत्यंत शुभ माना जाता है। पांच वृक्षों के पत्तों को पञ्चपल्लव कहते हैं, जो हमारे धार्मिक कार्यों के लिए विशेष रूप से उपयोग किए जाते हैं। उनके नाम हैं- आम, पीपल, वरगद, पाकड़, ऊमर (गूलर) यह पूजा में कलशों में लगाने और द्वार सजाने के लिये उपयोग किये जाते हैं। महंत श्री पारस भाई जी द्वारा बताया गया कि पांच पल्लव आम, पीपल, बरगद, पाकड़ और गूलर इन वृक्षों का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है।
इसलिए इनके पत्तों को पूजा में शामिल किया जाता है। आम में सकारात्मक शक्ति होती है इसलिए इसे पूजा के आसपास लगाया जाता है जिससे पूजा का फल मिलता है। आम के पत्ते को शुद्ध माना जाता है। आम की समिधा इसलिए बनाई जाती है दरअसल किसी भी हवन के समय आम की लकड़ी जलने पर ऑक्सीजन पैदा करती है इसलिए आम की लकड़ी का प्रयोग करते हैं।
आम का फल ही नहीं बल्कि इसकी लकड़ियां और पत्ते भी हर मांगलिक कार्यों में शामिल होते हैं। आम का पेड़ मंगल का कारक माना जाता है। आम के वृक्ष को मेष राशि का द्योतक माना गया है, इसीलिए मांगलिक कार्यों में आम के पत्तों का इस्तेमाल किया जाता है और बिना आम पत्तों के पूजा संपन्न नहीं मानी जाती।
वहीं प्रमुख पेड़ पाकड़ मानव शरीर के साथ पर्यावरण के लिए औषधि का काम करता है। सैकड़ों साल तक जीवित रहने और किसी भी परिस्थिति में पनपने की क्षमता, सबसे कम पतझड़ काल और सर्वाधिक पत्तियों के कारण पाकड़ बढ़ती उम्र के साथ आक्सीजन उत्सर्जन बढ़ाता है। घर के उत्तर में पाकड़ का पेड़ लगाना ज्योतिषीय दृष्टि से शुभ माना जाता है। महंत श्री पारस भाई जी के अनुसार पाकड़ जुझारू पेड़ होता है। इसकी शाखा भी पनप जाती है। इसका पेड़ घना होकर शीतल छाया देता है।
हिंदू धर्म में कई ऐसे पेड़ पौधे हैं जो बहुत ही महत्वपूर्ण और पूजनीय माने जाते हैं। पीपल के पत्तों में औषधीय गुण समाए हुए हैं। पीपल के पत्तों में कई पोषक तत्व मौजूद होते हैं, जो कई गंभीर बीमारियों से बचने में मदद करते हैं। पीपल के पत्तों में कैल्शियम, मैग्नीज, कॉपर, आयरन जैसे मिनरल्स और प्रोटीन, फाइबर जैसे न्यूट्रिएंट्स पाए जाते हैं। जो सेहत से जुड़ी कई बीमारियों को दूर रखने में मदद करते हैं। इसी तरह वरगद और गूलर के पत्तों का भी काफी महत्व है।
किसी भी पूजा में पंचामृत का भोग ज़रूरी होता है। पंचामृत को प्रसाद के रूप में बाँटा जाता है। पांच तरह की चीज़ों को मिलाकर पंचामृत का निर्माण किया जाता है। वे चीजें हैं – दूध, दही, मधु, शक्कर और घी। वैसे तो अलग अलग तरह से पंचामृत देवी देवताओं को अर्पित करने की परंपरा है लेकिन श्री हरि की पूजा में इसका अत्यंत महत्व होता है। बिना पंचामृत के श्री हरि की पूजा पूर्ण नहीं मानी जाती है।
पंचामृत में पड़ने वाली हर चीज का अपना महत्व होता है। जैसे दूध शरीर को मजबूती देता है। इसके अलावा दूध तनाव दूर करता है और मन को शांत करता है। शहद की बात करें तो शहद शरीर में जमा हुए फैट को कम करता है और धर्म के प्रति झुकाव को बढ़ाता है। वहीं दही से एकाग्र शक्ति बढ़ती है और पाचन तंत्र मजबूत होता है। घी हड्डियों को मजबूत बनाता है और शरीर को बलवान बनाता है। शक्कर ऊर्जा का स्रोत है, शक्कर एनर्जी बनाये रखता है, वाणी को मधुर करता है और साथ ही आलस्य को कम करता है। पंचामृत दोनों हाथों से ग्रहण करें और इसको भूमि पर न गिरने दें।
महंत श्री पारस भाई जी ने बताया कि पंचामृत दो शब्दों, पंच (पांच) और अमृत (देवताओं का दिव्य अमृत) से मिलकर बना है। हिंदू धर्म के अनुसार किसी भी पूजा के लिए पंचामृत अनिवार्य माना जाता है। यह देवताओं को दिया जाने वाला दिव्य प्रसाद है और इसका उपयोग अभिषेक के दौरान भी किया जाता है।
हिंदू धर्म में पंचदेव की पूजा के बिना कोई भी शुभ कार्य पूरा नहीं माना जाता है। पंचदेव में जीवन के लिए सर्वप्रथम जल की आवश्यकता होती है। इसलिए प्रथम पूज्य गणेश जल के देवता हैं। जल तत्व की प्रधानता से जीवन में सुख-समृद्धि-वैभव में सतत वृद्धि होती रहती है। जल तत्व के द्वारा ही हमें ज्ञान की प्राप्ति होती है और साथ ही मन की शांति भी इसी तत्व से मिलती है। वायु साक्षात् विष्णु देवता से संबंधित तत्व है।
भगवान सूर्य आकाश तत्व, श्रीगणेश जल तत्व, मां दुर्गा अग्नि तत्व, शिवजी पृथ्वी तत्व और भगवान विष्णु वायु तत्व का प्रतिनिधित्व करते हैं। इसलिए इन पांचों देवी-देवताओं की पूजा के बाद ही किसी भी कार्य को पूर्ण माना जाता है। यानि पंचदेव की पूजा का सनातन धर्म में विशेष महत्व है। किसी भी शुभ कार्य की शुरूआत और पूर्णता के लिए इनकी पूजा करना अनिवार्य माना गया है। इन पंच देवी-देवताओं की विधिवत पूजा करने से कार्य निर्विघ्न पूर्ण हो जाता है।
जिस धार्मिक पुस्तक या तालिका में नक्षत्र, करण, वार, तिथि और योग आदि होते हैं, उसे पंचांग कहा जाता है। पंचांग का भी हिंदू धर्म में बहुत महत्व है। पंचांग भारतीय कालदर्शक है जिसमें समय के हिन्दू ईकाइयों (वार, तिथि, नक्षत्र, करण, योग आदि) का उपयोग होता है। इसमें सारणी या तालिका के रूप में महत्वपूर्ण सूचनाएँ अंकित होतीं हैं जिनकी अपनी गणना पद्धति है। यानि पंचांग से दिशाशूल, सूर्योदय, चंद्रोदय, सूर्यास्त, चंद्रास्त आदि के बारे में भी जानकारी मिलती है। किस दिन कौन सी तिथि, नक्षत्र, करण आदि है, यह भी पता किया जा सकता है।
शुभ मुहूर्त को जानने के लिए पंचांग की मदद लेते हैं। पंचांगों के अध्ययन में राशि फल भी शामिल है, जैसे किस व्यक्ति पर राशि चक्र के संकेतों का क्या प्रभाव है। ज्योतिषी, शादियों या किसी भी शुभ कार्य की गतिविधियों के लिए शुभ तिथियां निर्धारित करने के लिए पंचांग की सलाह लेते हैं। हिंदू जीवन में सभी महत्वपूर्ण चीजों के लिए पंचांग का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है।
पंचांग का हर पूजा और शुभ काम में खास महत्व होता है। पंचांग देखे बिना कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है। मान्यता है कि किसी भी शुभ कार्य से पहले पंचांग जरूर देखना चाहिए। प्राचीन हिन्दू कैलेंडर को पंचांग कहा जाता है। पंचांग पांच अंगों से मिलकर बना है तभी इसे पंचांग कहते हैं।
पूजा में पंचगव्य का भी महत्व होता है। पंचगव्य में पांच प्रकार के गाय से जुड़ी पांच चीजें शामिल होती है। पंचगव्य के प्रयोग से व्यक्ति को धार्मिक कार्यों का पूर्ण फल मिलता है। महंत श्री पारस भाई जी ने बताया कि पंचगव्य के प्रयोग से भगवान भी शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं। हिंदू धर्म में गाय को पवित्र माना जाता है और गाय की पूजा से लेकर उसकी सेवा तक को बहुत महत्व दिया जाता है। गाय के दूध, दही, घी, गोबर और गौमूत्र को पंचगव्य कहा जाता है। गाय के दूध को बहुत ही पवित्र माना जाता है और इसका प्रयोग पूजा-पाठ में पंचामृत के लिए भी किया जाता है।
शिवलिंग के अभिषेक के लिए गाय के दूध के साथ साथ दही भी प्रयोग में लाया जाता है। जन्माष्टमी पर श्री कृष्ण के अभिषेक में भी दही का इस्तेमाल होता है। वहीं यदि गाय के गोबर की बात की जाये तो गाय का गोबर न सिर्फ पवित्र होता है बल्कि इसकी पूजा का भी विधान है। गाय के गोबर के कंडों को हवन में इस्तेमाल किया जाता है।
गोवर्धन पूजा के समय गोबर से ही भगवान गोवर्धन की प्रतिमा बनाकर उनकी पूजा की जाती है। साथ ही पूजा स्थान को भी गोबर से लीपा जाता है। दूसरी तरफ गोमूत्र का प्रयोग अनेक तरह से किया जाता है। घर को शुद्ध करने से लेकर शरीर को शुद्ध करने में भी गोमूत्र का प्रयोग किया जाता है।
महंत श्री पारस भाई जी ने बताया कि गौमूत्र घर में रखने से घर की नकारात्मकता भी दूर होती है और सकारात्मकता का संचार होता है। गोमूत्र पीने से शरीर की सभी बीमारियां दूर होती हैं और साथ ही दोषों का नाश होता है। यदि गंगाजल घर में न हो तो उसके स्थान पर गौमूत्र रख सकते हैं। पंचगव्य के प्रयोग से ही पूजा पूर्ण मानी जाती है। पंचगव्य के प्रयोग से पूजा-पाठ और हवन आदि के समय शुद्धता बनी रहती है। कुल मिलाकर गाय के साथ-साथ गाय से जुड़ी हर एक वस्तु भी अहम स्थान रखती है।
पंच मेवा पांच सूखे मेवों का मिश्रण होता है। ‘पंच’ शब्द का अर्थ है पांच और ‘मेवा’ का अर्थ है सूखे मेवे। हिन्दू धर्म में पूजा के दौरान पांच प्रकार के सूखे मेवों का जरूर इस्तेमाल किया जाता है। मान्यता है कि इनका संबंध सूरज, चंद्रमा, जल, अग्नि और वायु जैसे पंच तत्वों से भी है। पंच मेवा में मुख्य रूप से बादाम, किशमिश, सूखा नारियल, मखाना और छुहारे शामिल हैं। इन्हें हवन या पूजा में प्रयोग किया जाता है। पंच मेवा आपके स्वास्थ्य के लिए भी हितकारी होते हैं। इनसे हमारे शरीर को अत्यधिक ऊर्जा मिलती है।
जैसे बादाम एंटी-ऑक्सीडेंट से भरपूर होते हैं और रक्त शर्करा में भी सहायता करते हैं क्योंकि बादाम में स्वस्थ वसा, फाइबर और प्रोटीन अधिक होता है। अब मखाना की बात करें तो यह व्रत के भोजन में तो खाया जाता है। साथ ही इसके बहुत फायदे हैं। यह प्रोटीन, फाइबर, मैग्नीशियम, पोटेशियम, आयरन और जिंक का संपूर्ण स्रोत है। मधुमेह के रोगियों के लिए भी मखाना बेहतर माना जाता है।
खजूर में भरपूर मात्रा में फाइबर मौजूद होता है जो हमें कब्ज से बचाता है। सूखा नारियल, यह मस्तिष्क को बेहतर ढंग से कार्य करने में मदद करता है और एनीमिया से भी बचाता है। वहीं किशमिश विटामिन बी, कार्बोहाइड्रेट, आयरन और पोटेशियम से भरपूर होती है।
महंत श्री पारस भाई जी ने बताया कि सूखे मेवों को धरती पर सबसे शुद्ध मेवा भी माना जाता है, इसीलिए ये आध्यात्मिक रूप से भी जुड़े हुए हैं। यानि पंच मेवा के आध्यात्मिक महत्व के साथ-साथ वैज्ञानिक कारण भी हैं।
"Mata Rani's grace is like a gentle breeze, touching every heart that seeks refuge in her love."