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क्या है ॐ और क्या है इसका रहस्य ?

Blog, 19/02/2024

हम सभी अक्सर सोचते हैं कि आखिर ओम शब्द को क्यों इतना महत्व दिया जाता है और क्या है इसका रहस्य। माना जाता है कि के बिना सारी सृष्टि, सारा ब्रह्मांड अधूरा है। ॐ की ध्वनि स्वंय में शाश्वत है इसके बिना सारी सृष्टि, संपूर्ण ब्रह्मांड अधूरा है। सनातन धर्म की मुख्य पहचान भी ॐ शब्द या मंत्र से ही होती है। तो आइये आज विस्तार से जानते हैं क्या है ओम और कहाँ से हुई ॐ की उत्पत्ति?


 

ॐ भगवान शिव का पर्याय

 

महंत श्री पारस भाई जी का मानना है कि ॐ की ध्वनि स्वंय में सत्य, शाश्वत है। यदि मंत्रो का उच्चारण करते हुए ॐ की ध्वनि उच्चारित न की जाए तो मंत्रोच्चारण अधूरा रहता है। ॐ भगवान शिव का पर्याय है, उनका प्रतीक है। ॐ मंत्र भी है और एक शब्द भी। ॐ में संपूर्ण मानव जीवन का सार छिपा हुआ है। हिंदू धर्म या सनातन धर्म की मुख्य पहचान ॐ शब्द या मंत्र से ही होती है।


 

ॐ का अर्थ

 

ॐ का उच्चारण तीन ध्वनियों से मिलकर बना है। अ,उ एवं म इन तीन शब्दों से मिलकर बना है ॐ। ॐ शब्द ओम या अऊम से मिलकर बना है। महंत श्री पारस भाई जी के अनुसार ये तीनों अक्षर तीनों देवों से संबंधित हैं। अ, ब्रह्मा का बोध कराता है, उं पालनकर्ता श्री हरि विष्णु का वाचक है। म,रुद्र यानि शिव का वाचक है। इसमें से पहले दो अक्षर अ व ऊ मिलकर ओ बन जाते हैं। इस तरह से इसे ओम भी लिखा जाता है। ॐ का उच्चारण करते समय अ की ध्वनि का त्याग हृदय में, उ की ध्वनि का त्याग कंठ में और म की ध्वनि का त्याग तालुमध्य में किया जाता है। ॐ को मंत्र भी बोल दिया जाता है और यह एक शब्द भी है।


 

ओम क्या है और जानिए इसका रहस्य ?

 

ओम वो शब्द है जिसका पूरा रहस्य क्या है, हर कोई जानना चाहता है। ॐ शिव का सूचक है और किसी भी मनुष्य में इतनी शक्ति नहीं है कि वह शिव को सम्पूर्ण रूप में पा सके या उन्हें जान सके। इसलिए ॐ की शक्ति को जानना भी सबके लिए आसान नहीं है। यह सबके लिए किसी रहस्य से कम नहीं है। इस ब्रह्मांड में एक शब्द हमेशा गूंजता है, वह शब्द है ॐ। यह ॐ शब्द हमें आत्मा को परमात्मा से जोड़ने का कार्य करता है और हमें ब्रह्मज्ञान देता है। इतना ही नहीं, यह हमें जीवन का सार दिखाता है।

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ॐ को हम एक अक्षर के संदर्भ में भी देख सकते हैं। वैसे तो यह तीन शब्दों के मेल से बना है लेकिन इसे एक अक्षर के रूप में लिखना हो तो इसे ॐ के रूप में लिखा जाता है। वेदों, उपनिषदों में भी ॐ को इसी तरह से ही लिखा गया है। ॐ सिर्फ अक्षर या शब्द ही नहीं है बल्कि यह अपने आप में एक संपूर्ण मंत्र भी है और इसे सर्वोच्च मंत्र माना जाता है। ॐ की ध्वनि शांत भी है और तीव्र भी है। यदि शांत मन से ॐ की ध्वनि को सुना जाए तो उसे सुनने पर आत्मिक सुकून की अनुभूति होती है। इस ब्रह्माण्ड में आपको हर जगह ॐ की ध्वनि सुनाई देगी। ओम शब्द इस ब्रह्मांड में हमेशा गूंजने वाली ध्वनि है और यह ब्रह्मांड की शुरुआत का प्रथम शब्द भी है। इसलिए इसे प्रणव ध्वनि या प्रथम शब्द भी कहा जाता है।


 

ॐ की उत्पत्ति कहां से हुई?

 

आखिर कहाँ से हुई ॐ की उत्पत्ति यह सवाल हर किसी के मन में आता है। दरअसल ॐ की उत्पत्ति ब्रह्मांड की उत्पत्ति के साथ ही शुरू हो गयी थी। यानि ॐ ब्रह्माण्ड में हमेशा से था और आने वाले समय में भी रहेगा। महंत श्री पारस भाई जी का मानना है कि ॐ ब्रह्मांड में गूंजने वाली एक ऐसी ध्वनि या आवाज है जो शुरुआत से अंत तक रहने वाली है।

 

इसके अलावा कई मान्यताओं के आधार पर यह भी माना जाता है कि सबसे पहले ॐ शब्द का उच्चारण भगवान शिव ने किया था। इसलिए ॐ की उत्पत्ति भगवान शिव के मुख से भी मान सकते हैं। जो भी व्यक्ति प्रतिदिन कम से कम 10 से 15 मिनट के लिए ॐ मंत्र का जाप करता है, उन्हें संपूर्ण जीवन का मतलब पता चल जाता है। 


 

ॐ का आध्यात्मिक महत्व

 

ओ, उ और म, तीन अक्षरों से बने ॐ की अपार महिमा है। यह एकाक्षर मंत्र है, ॐ ही महामंत्र है, यह अनादि, अनंत, निर्वाण और मोक्ष सभी का प्रतीक है। ॐ का उच्चारण मोक्ष की ओर ले जा सकता है। इसके उच्चारण से नाभि, हृदय और आज्ञा चक्र जागृत हो जाता है। यह तीनों देवों, ब्रह्मा, विष्णु, महेश के साथ तीनों लोकों का भी प्रतीक है। शास्त्रों में ॐ की ध्वनि के सौ से भी अधिक अर्थ बताए गए हैं। पहले शिक्षा की शुरुआत भी इसी ॐ मंत्र के साथ ही की जाती थी। 

 

जब बालक का उपनयन संस्कार किया जाता है तब गुरु द्वारा सबसे पहले उसे ॐ मंत्र का महत्व ही बताया जाता है। इसी के साथ ही इस ॐ मंत्र को किसी अन्य मंत्र की शुरुआत या अंत में भी बोला जा सकता है। आज के समय में ॐ सभी मंत्रों में सर्वोच्च व ब्रह्माण्ड की ध्वनि के रूप में जाना जाता है। जब व्यक्ति ध्यान की अवस्था में शून्य की ओर चला जाता है, तब उस चरम सीमा पर पहुंचने पर व्यक्ति को ॐ की ध्वनि स्वयं ही सुनाई देने लगती है। ॐ की महत्ता इतनी है कि एक गूंगा व्यक्ति भी ओम आसानी से बोल सकता है। इस तरह से ॐ एक ऐसा शब्द है जो संपूर्ण ब्रह्मांड की आवाज है।


 

सृष्टि का आदि भी ॐ और अंत भी ॐ

 

ॐ से ही समस्त सृष्टि की उत्पत्ति है तो ॐ के नाद में सृष्टि के अंत की क्षमता भी है, इसकी ध्वनि में प्रलय को आमंत्रित करने की भी क्षमता है। ॐ समस्त ब्रह्मांड के विनाश की क्षमता रखता है, इसकी ध्वनि ब्रह्मांड में सबसे अधिक प्रभावशाली है। यह ध्वनि जहाँ एक ओर सूक्ष्म हो सकती है तो वहीं यह ध्वनि खतरनाक भी हो सकती है। माना जाता है कि जिस दिन सूर्य की ऊर्जा भी समाप्त हो जाएगी। उस दिन भी केवल ॐ की ध्वनि और प्रकाश ही उपस्थित होगा।

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ॐ का नाद सभी से अलग है, जब आप ध्यान की चरम अवस्था में पहुंचते हैं तब आपको ॐ की ध्वनि स्वयं सुनाई देने लगती है। यह ध्वनि संपूर्ण ब्रह्मांड में है। यही वजह है कि ॐ की ध्वनि को ईश्वर के समानार्थ बताया गया है। महंत श्री पारस भाई जी ने बताया कि पुराणों में कहा गया है कि ॐ की ध्वनि और प्रकाश के मिलन से ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई है।


 

शिशु का प्रथम शब्द भी ओम

 

आपने देखा होगा कि जब बच्चा जन्म लेता है तो जन्म लेने के कुछ दिन के बाद ही कुछ अक्षर बोलने लगता है। वो अक्षर हैं अ, ऊ व म और इन्हीं तीनो को मिलाकर ओम शब्द बनता है। यानि जिस बच्चे को शब्दों का ज्ञान तक नहीं होता है, उस शिशु के मुख से भी ॐ ही निकलता है। 


 

ओम का वर्णन उपनिषद में

 

हिंदू धर्म में हर धार्मिक कार्य और अनुष्ठान में ॐ मंत्र का जाप प्रमुख रूप से किया जाता है। ॐ मंत्र के महत्व का अंदाजा इस बात से लग जाता है कि इसे किसी भी मंत्र की शुरुआत और अंत में बोला जा सकता है। ॐ का वर्णन चारों वेदों के साथ-साथ हर उपनिषद, ग्रंथ आदि में किया गया है। मांडूक्य उपनिषद  में ॐ शब्द का महत्व बताया गया है।


जब ॐ का जाप किया जाता है तो आप ध्यान की अवस्था में रहते हुए ॐ की ध्वनि का उच्चारण करते हैं। इसके बाद एक समय ऐसा आता है, जब आप ध्यान की चरम सीमा में पहुंच जाते हैं, उस समय आपको उच्चारण करने की आवश्यकता नहीं पड़ती और स्वत: ही आपको यह ध्वनि सुनाई देने लगती है। महंत श्री पारस भाई जी ने कहा कि ॐ का जाप करने से मनुष्य को मानसिक शांति का अनुभव होता है, साथ ही ज्ञान की प्राप्ति होती है और शरीर का तेज भी बढ़ता है। ॐ शब्द में इतनी शक्ति है कि आप स्वयं को परमात्मा के साथ जोड़ सकते हैं, आप परमात्मा में पूरी तरह खो सकते हैं।


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