अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को दुर्गा पूजा का आरंभ कल्पारम्भ परंपरा से होता है। दरअसल कल्पारम्भ, पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा अनुष्ठानों के शुभारंभ का प्रतीक है। कल्पारम्भ या जिसे काल प्रारंभ भी कहा जाता है, की क्रिया प्रात: काल में किये जाने का विधान है। प्रात: काल कलश में जल भरकर देवी दुर्गा को समर्पित करते हुए इसकी स्थापना की जाती है। घट स्थापना के बाद ही महासप्तमी, महाअष्टमी और महानवमी, इन तीनों दिन मां दुर्गा की विधिवत पूजा और उपवास आदि का संकल्प लिया जाता है।
इस परंपरा को अकाल बोधन भी कहते हैं। बोधन से तात्पर्य है नींद से जगाना। इस मौके पर मां दुर्गा को नींद से जगाया जाता है। ऐसे में देवी को जागृत कर उनकी पूजा करने का विधान है। हिंदू मान्यता के अनुसार सभी देवी-देवता दक्षिणायान काल में निंद्रा में होते हैं। चूंकि दुर्गा पूजा उत्सव साल के मध्य में दक्षिणायान काल में आता है इसलिए देवी दुर्गा को बोधन के माध्यम से नींद से जगाया जाता है। माना जाता है कि भगवान श्री राम ने सबसे पहले आराधना करके देवी दुर्गा को जगाया था और इसके बाद राक्षस राज रावण का वध किया था।