आमलकी एकादशी व्रत से व्यक्ति जन्म-मरण के बंधन से मुक्त होता है और विष्णु लोक को प्राप्त होता है। इस एकादशी को आंवला एकादशी और रंगभरी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। एकादशी व्रत में कथा के बिना पूजन का फल नहीं मिलता।
महंत श्री पारस भाई जी ने कहा कि इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा का विशेष महत्व है। पौराणिक मान्यता है कि एकादशी पर रात्रि जागरण करने से श्रीहरि बहुत प्रसन्न होते हैं। आमलकी एकादशी वाले दिन स्वयं भगवान विष्णु मां लक्ष्मी के साथ आंवले के वृक्ष पर निवास करते हैं। इसलिए इस दिन आमलकी के वृक्ष का पूजन और परिक्रमा करने से लक्ष्मीनारायण प्रसन्न होते हैं। इस व्रत को रखने से व्यक्ति को धन, ऐश्वर्य, सौभाग्य और आरोग्य की प्राप्ति होती है।
आंवले में कई औषधीय गुण भी होते है और इसलिए इसे स्वास्थ्य के लिए उत्तम माना जाता है। इस दिन आंवले का पूजन करते वक्त आंवले के पेड़ पर जल अर्पित किया जाता है। साथ ही पेड़ पर पुष्प, धूप, नैवेद्य आदि अर्पित किए जाते हैं। इसके बाद आंवले के पेड़ की परिक्रमा की जाती है।