चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को पापमोचिनी एकादशी कहते हैं। एकादशी व्रत में श्रीहरि की पूजा के बाद कथा का जरुर श्रवण करना चाहिए। एकादशी व्रत को सभी व्रतों में सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। महंत श्री पारस भाई जी का मानना है कि एकादशी का नियमित व्रत रखने से मन और तन की शुद्धि होती है। पापमोचिनी एकादशी को सभी पापों को हरने वाली एकादशी भी कहा जाता है। महंत श्री पारस भाई जी के अनुसार पापमोचिनी एकादशी को व्रत रखना बेहद फलदायी माना गया है। मान्यता है कि पापमोचिनी एकादशी का व्रत करने से श्री हरि की कृपा प्राप्त होती है। कहा जाता है कि एकादशी के व्रत से चंद्रमा के हर खराब प्रभाव को भी रोका जा सकता है।
पापमोचिनी एकादशी का व्रत संतान प्राप्ति और प्रायश्चित करने के लिए रखा जाता है। इस दिन पीले आसन पर बैठकर विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें। एकादशी का नियमित व्रत रखने से सभी समस्याएं समाप्त हो जाती हैं। पापमोचिनी एकादशी व्रत के परिणाम स्वरूप व्यक्ति हर तरह के पाप से मुक्त हो जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की चतुर्भुज रूप की पूजा करें। उन्हें पीले वस्र धारण कराएं। उन्हें पीला चंदन और पीला जनेऊ अर्पित करें। भगवान को पीले फल, फूल और पीली मिठाई अर्पित करें। इस व्रत के प्रभाव से धन, आरोग्य और मोक्ष मिलता है।