चैत्र शुक्ल द्वितीया से सिंधी नववर्ष का आरंभ होता है। इसे चेटीचंड के नाम से जाना जाता है। चैत्र मास को सिंधी में चेट कहा जाता है और चांद को चण्डु। इसलिए चेटीचंड का अर्थ हुआ चैत्र का चांद। सिंधियों के लिए, चेटीचंड नए साल की शुरुआत का प्रतीक है। मराठी नव वर्ष में आने वाले गुड़ी पड़वा के समान ही, चेटीचंड सिंधी समुदाय के नववर्ष की शुरूआत माना गया है।
विविधता में एकता का प्रतीक भारत एक अद्भुत जगह है। यहाँ अनगिनत संस्कृतियां एकाकार होती हैं और यहां अनेकों धर्मों और मतों को मानने वाले लोग रहते हैं जो असंख्य त्यौहारों को उत्साह के साथ मनाते हैं। सिंधी समुदाय का त्यौहार चेटीचंड भी एक ऐसा ही त्योहार है।
अन्य पर्वों की तरह इस पर्व के पीछे भी पौराणिक कथा छिपी है। चेटीचंड को अवतारी युगपुरुष भगवान झूलेलाल के जन्म दिवस के रूप में जाना जाता है। भगवान झूलेलाल को उदेरोलाल, घोड़ेवारो, जिन्दपीर, लालसाँई, पल्लेवारो, ज्योतिनवारो, अमरलाल आदि नामों से भी पूजते हैं। भगवान झूलेलालजी को जल और ज्योति का अवतार माना गया है।