नवरात्रि के आखिरी दिन दुर्गा नवमी पर मां सिद्धिदात्री की पूजा करने वालों को समस्त सिद्धियों का ज्ञान प्राप्त होता है। मान्यता है मां सिद्धिदात्री की पूजा करने पर परिवार में सुख-शांति आती है और सौभाग्य में वृद्धि होती है। माता सिद्धिदात्री को पूड़ी, हलवा, चना, खीर और नारियल प्रिय है। इसलिए इन चीजों का भोग लगाने से माँ प्रसन्न होती हैं। मां सिद्धिदात्री को मां दुर्गा का प्रचंड रूप माना जाता है। कहते हैं जिसकी पूजा से मां प्रसन्न हो जाती है उन व्यक्तियों के शत्रु उनके आस पास भी नहीं टिक पाते हैं। मां सिद्धिदात्री केतु ग्रह को नियंत्रित करती हैं और उन्हें दिशा और ऊर्जा प्रदान करती हैं। देवी के इस रूप को देवी का पूर्ण स्वरूप माना जाता है। मान्यता है कि केवल इस दिन मां की उपासना करने से सम्पूर्ण नवरात्रि की उपासना का फल मिल सकता है।
मां महागौरी जी, नारी, शक्ति, ऐश्वर्य और सौन्दर्य की देवी हैं। इनका गौर वर्ण है। माँ महागौरी जी के गोरे रंग की तुलना शंख, चंद्रमा और चमेली के फूलों की सफेदी से की जाती है। इनके नाम में ‘महा’ का अर्थ है महान और ‘गौरी’ का अर्थ सफेद है। अपनी तपस्या से माँ ने गौर वर्ण प्राप्त किया था। मां महागौरी के सभी वस्त्र और आभूषण सफेद रंग के हैं इसलिए माता को श्वेताम्बरधरा भी कहा जाता है।
मां दुर्गा के सातवें स्वरूप मां कालरात्रि को महायोगिनी महायोगिश्वरी भी कहा जाता है। देवी बुरे कर्मों वाले लोगों का नाश करने और तंत्र-मंत्र से परेशान भक्तों का कल्याण करने वाली हैं। देवी की पूजा से रोग का नाश होता है और शत्रुओं पर विजय मिलती है। ग्रह बाधा और भय दूर करने वाली माता की पूजा इस दिन जरूर करनी चाहिए। अपने महा विनाशक गुणों से शत्रु एवं दुष्ट लोगों का संहार करने वाली सातवीं दुर्गा का नाम मां कालरात्रि है। महंत श्री पारस भाई जी के अनुसार कालजयी, शत्रुओं का दमन करने वाली, चंड-मुंड का संहार करने वाली और भक्तों को अभय दान देने वाली मां काली के अधीन पूरा संसार है।
मां कात्यायनी अमोघ फलदायिनी हैं। मां कात्यायनी जी का स्वरूप अत्यंत ही भव्य और दिव्य है। मां कात्यायनी के स्वरूप की बात करें तो इनका वर्ण स्वर्ण के समान चमकीला है और मां, सिंह यानी शेर की सवारी करती हैं। शेर पर सवार मां की चार भुजाएं हैं। इनके बायें हाथ में कमल और तलवार एवं दाहिने हाथों में स्वास्तिक व आशीर्वाद की मुद्रा अंकित है।
नवरात्रि के पांचवें दिन मां दुर्गा के स्कंदमाता स्वरूप की पूजा की जाती है। स्वामी स्कंद अर्थात कार्तिकेय की माँ होने के कारण मां दुर्गा के इस स्वरूप को स्कंदमाता कहा जाता है। कुमार कार्तिकेय को ग्रंथों में सनत-कुमार, स्कंद कुमार के नाम से भी पुकारा गया है। मां दुर्गा के इस पांचवें स्वरूप स्कंदमाता की पूजा करने से बुद्धि का विकास होता है। मां का स्मरण करने से ही असंभव कार्य संभव हो जाते हैं।
नवरात्र के चौथे दिन माँ कुष्मांडा span> की पूजा से आपके सभी रोगों का नाश हो जाता है। माँ कुष्मांडा की आराधना से वैभव, आयु, यश, बल आरोग्य और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है इसलिए खुशी, स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए माँ का आशीर्वाद मांगा जाता है। यह मान्यता है कि माँ का आशीर्वाद आपके जीवन की सभी बाधाओं और चुनौतियों का अंत कर सकता है।
नवरात्र के तीसरे दिन दुर्गाजी के तीसरे रूप चंद्रघंटा देवी के वंदन और पूजन का विधान है। माँ चंद्रघंटा जी के मस्तक पर घंटे के आकार का अर्ध चंद्रमा विराजमान है इसलिए इनका नाम चंद्रघंटा पड़ा। मां चंद्रघंटा इस संसार में न्याय और अनुशासन स्थापित करती हैं। देवी चंद्रघंटा मां पार्वती का विवाहित रूप हैं।
माँ ब्रह्मचारिणी तपस्या, त्याग और दृढ़ निश्चय वाली देवी हैं। माँ ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी और इसी वजह से उनका नाम ब्रह्मचारिणी पड़ गया। इसलिए नवरात्रि के दूसरे दिन देवी के इसी स्वरूप की पूजा होती है। उन्हें तपश्चारिणी भी कहा जाता है। कहते हैं देवी ब्रह्मचारिणी की तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने भी देवी ब्रह्मचारिणी को वरदान दिया था और कहा था कि उनके जैसा कठोर तप आज तक किसी ने भी नहीं किया है।
हिंदू धर्म में माँ के भक्तों के लिए नवरात्रि का विशेष महत्व होता है। इस बार चैत्र नवरात्रि 9 अप्रैल से शुरू होंगे और इसका समापन 17 अप्रैल को महानवमी के साथ होगा। इन नौ दिनों के दौरान मां दुर्गा के अलग-अलग नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। हिंदू पंचांग के आधार पर चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से चैत्र नवरात्रि आरंभ हो जाती है। नवरात्रि के पहले दिन प्रतिपदा तिथि को मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। महंत श्री पारस भाई जी ने बताया कि नवरात्रि के प्रथम दिन कलश स्थापना और मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप माता शैलपुत्री की पूजा का विधान है। इस दिन शुभ मुहूर्त में कलश स्थापना करने से और मां शैलपुत्री की श्रद्धा भाव के साथ पूजा अर्चना करने से साधकों को विशेष लाभ मिलता है।
नवरात्रि की नौ रातों में हर रात एक अलग अवतार या रूप में माँ दुर्गा की पूजा की जाती है। हर रात को एक अलग रूप या स्वरुप में माँ की उपासना करते हुए, भक्तों को शक्ति, सदभावना और दिव्यता की अनुभूति होती है। ये रातें नवरात्रि का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। जिनमें भक्ति और आध्यात्मिकता की भावनाओं को जागृत किया जाता है।
नवरात्रि की नौ रातों में हर रूप का एक अलग अर्थ और महत्व है। महंत श्री पारस भाई जी के अनुसार नवरात्रि के इस समय में माँ के हर रूप से भक्तों को माँ दुर्गा की शक्ति, साहस और दया को जानने का अवसर मिलता है। नवरात्रि में हर रात और हर दिन मंत्रों और भजनों के साथ भक्ति में वृद्धि होती है। जिससे व्यक्ति अपने आंतरिक अस्तित्व को महसूस करता है और उनका धार्मिक एवं मानसिक विकास होता है।
हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है। महंत श्री पारस भाई जी कहते हैं कि एकादशी के दिन व्रत रखने और श्रद्धा-भाव से पूजा-पाठ करने से घर में खुशहाली बनी रहती है। जैसे कि इसके नाम से ही प्रतीत हो रहा है कि पापमोचिनी एकादशी का व्रत रखने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है। यानि इस व्रत के प्रभाव से व्यक्ति के सभी पापों का नाश होता है। इस दिन उपवास रख कर भगवान विष्णु की पूजा की जाती है।
हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व है। फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी विजया एकादशी के नाम से जानी जाती है। उदयातिथि के आधार पर विजया एकादशी का व्रत 6 मार्च बुधवार को है। क्योंकि एकादशी तिथि का सूर्योदय 6 मार्च को होगा इसलिए यह व्रत इसी दिन किया जायेगा। यह व्रत शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए भी किया जाता है।
माघ माह में पूर्णिमा 24 फरवरी को मनाई जायेगी। माघ मास में पड़ने वाली पूर्णिमा को माघी पूर्णिमा कहा जाता है। महंत श्री पारस भाई जी ने कहा कि धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से माघ पूर्णिमा का खास महत्व है। माघ पूर्णिमा के दिन प्रयागराज में माघ मेले का समापन होता है। इस दिन किसी पवित्र नदी में स्नान करने का विशेष धार्मिक महत्व माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन देवतागण स्वर्गलोक से पृथ्वी लोक पर भ्रमण करने के लिए आते हैं इसलिए इस दिन गंगा स्नान और दान करने से देवता प्रसन्न होते हैं और आपकी इच्छा पूरी करते हैं। इस खास अवसर पर जगत के पालनहार भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा और व्रत करने का विधान है।
इस साल षटतिला एकादशी 6 फरवरी 2024, मंगलवार को मनाई जाएगी। षटतिला एकादशी के दिन पूजन में व्रत कथा का पाठ करना चाहिए। पूजन के अंत में भगवान विष्णु की आरती कर पारण के समय तिल का दान करें। मान्यता है कि ऐसा करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और सभी मनोकामनाएं पूर्ति होती है। इस व्रत को रखने से मनुष्यों को अपने बुरे पापों से मुक्ति मिलती है। शास्त्रों में यह भी बताया है कि केवल षटतिला एकादशी का व्रत रखने से वर्षों की तपस्या का फल प्राप्त होता है।
पुत्रदा एकादशी संतान प्राप्ति के लिए बहुत महत्वपूर्ण मानी गई है। महंत श्री पारस भाई जी ने कहा कि इस दिन भगवान विष्णु जी की पूजा से संतान सुख की प्राप्ति होती है। पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत उन सभी विवाहित महिलाओं और पुरुषों को रखना चाहिए, जिनकी कोई संतान नहीं है। इस व्रत को करने से निसंतान दंपत्तियों को स्वस्थ और दीर्घायु संतान की प्राप्ति होती है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, जिन लोगों को पुत्र प्राप्ति की चाहत होती है, उन्हें पौष पुत्रदा एकादशी व्रत करना चाहिए। पौष माह की पुत्रदा एकादशी का व्रत संतान के सुख, शांति, समृद्धि और उसे संकट से बचाने के लिए किया जाता है। शान्ताकारं भुजगशयनं पद्नानाभं सुरेशं। विश्वधारं गगनसद्शं मेघवर्णं शुभाड्गमं। लक्ष्मीकांत कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं। वंदे विष्णु भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्। “पारस परिवार” की ओर से आप सबको पुत्रदा एकादशी की हार्दिक शुभकामनाएं .. भगवान विष्णु आपकी हर मनोकामना को पूरा करें और श्रीहरि विष्णु की कृपा आपके ऊपर हमेशा बनी रहे।