पारस परिवार का आह्वान - महानता के शिखर तक पहुंचने के लिए माँ दुर्गा के द्वितीय स्वरुप मां ब्रह्मचारिणी जी का श्रद्धा पूर्वक ध्यान करें, सत्य का अनुसरण करें, धर्म का आचरण करें और सद्गुणों को अपने अंदर आत्मसात करें।
नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा की पूजा-अर्चना से जीवन के सभी दुख और समस्याएं दूर हो जाती हैं। नवरात्रि के पावन पर्व का हर किसी को इंतजार रहता है। इस साल चैत्र नवरात्रि 9 अप्रैल 2024 से शुरू होंगे और इसका समापन 17 अप्रैल 2024 को महानवमी के साथ होगा। 10 अप्रैल 2024 को माँ दुर्गा जी के द्वितीय स्वरूप मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाएगी। नवरात्रि के नौ दिनों में व्रत भी रखा जाता है और पूरे नियमों और विधि विधान के साथ माँ को याद कर उनकी आराधना की जाती है। इन नौ दिनों के महापर्व में माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों में से आज इस आर्टिकल में हम बात करेंगे माँ दुर्गा जी के द्वितीय स्वरूप मां ब्रह्मचारिणी जी का।
माँ ब्रह्मचारिणी को प्रसन्न करने के लिए नवरात्रि के दूसरे दिन सूर्योदय से पहले उठें और स्नान आदि के उपरांत मांं ब्रह्मचारिणी की प्रतिमा को चौकी में रखकर माँ को वस्त्र, पुष्प, फल, मिठाई आदि अर्पण करें। पूजा के दौरान मां ब्रह्मचारिणी को रोली, लौंग, अक्षत, कमल, इलायची, चंदन और गुड़हल का फूल अर्पित करना चाहिए। इसके उपरांत देवी ब्रह्मचारिणी के मंत्रों का जाप करें और फिर मां की आरती करें।
इस दिन देवी को सफेद वस्तुएं अर्पित करने से भाग्य चमक सकता है। प्रसिद्ध ज्योतिष महंत श्री पारस भाई जी का कहना है कि नवरात्रि में दुर्गा सप्तशती का पाठ जरूर करें। दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से हर मनोकामना पूरी होती है। पाठ करने के बाद सच्चे मन से माता के जयकारे लगाएं। देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा करते समय सबसे पहले हाथों में एक फूल लेकर उनका ध्यान करें और प्रार्थना करें। माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा में विशेष रूप से सिन्दूर और लाल पुष्प जरूर चढ़ायें। मां ब्रह्मचारिणी दुष्टों को सन्मार्ग दिखाने वाली हैं। मां ब्रह्मचारिणी के लिए "ॐ ऐं नमः" का जाप करें।
मां ब्रह्मचारिणी को पीला और सफेद रंग पसंद है। इस दिन आप अपने घर के मंदिर को गेंदे के फूल से सजा सकते हैं। उनके शरीर पर लगे कमल ज्ञान का प्रतीक हैं और सफेद साड़ी पवित्रता का प्रतिनिधित्व करती है। पीले या सफेद रंग के वस्त्र पहन कर पूजा करने से मां ब्रह्मचारिणी जी शीघ्र प्रसन्न होती हैं।
हिंदू धर्म पर पीले रंग को शिक्षा और ज्ञान का रंग माना गया है। उनके दाहिने हाथ में एक जप माला होती है और बाएं हाथ में कमंडल होता है। देवी ब्रह्मचारिणी को शक्कर, मिश्री, दूध और पंचामृत का भोग अति प्रिय है। देवी को इसका भोग लगाने से भक्तों को दीर्घायु का आशीर्वाद मिलता है। माता का यह स्वरूप ज्ञान, बुद्धि और विवेक का बल देने वाला माना जाता है।
मां ब्रह्मचारिणी जी के नाम का अर्थ भी काफी खास है। ब्रह्मा का अर्थ है तपस्या और चारणी का अर्थ है आचरण। यानि ब्रह्मचारिणी तपस्या की देवी हैं। मान्यताओं के मुताबिक सती के आत्मदाह कर लेने के बाद पार्वती का जन्म हुआ। तब माता ने भगवान शंकर से शादी के लिए हजारों साल तक तपस्या की थी। भीषण गर्मी, कड़कड़ाती ठंड और तूफानी बारिश भी इनकी तपस्या का संकल्प नहीं तोड़ पाई थी।
कहते हैं कि देवी ब्रह्मचारिणी केवल फल, फूल और बिल्व पत्र की पत्तियां खाकर ही हजारों साल तक जीवित रही थीं। जब भगवान शिव नहीं मानें तो उन्होंने इन चीजों का भी त्याग कर दिया और बिना भोजन व पानी के अपनी तपस्या को जारी रखा। इसलिए पत्तों को भी खाना छोड़ देने के कारण उनका एक नाम 'अर्पणा' भी पड़ा।
माँ तपस्या, त्याग और दृढ़ निश्चय वाली देवी हैं। माँ ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी और इसी वजह से उनका नाम ब्रह्मचारिणी पड़ गया। इसलिए नवरात्रि के दूसरे दिन देवी के इसी स्वरूप की पूजा होती है। उन्हें तपश्चारिणी भी कहा जाता है। कहते हैं देवी ब्रह्मचारिणी की तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने भी देवी ब्रह्मचारिणी को वरदान दिया था और कहा था कि उनके जैसा कठोर तप आज तक किसी ने भी नहीं किया है।
इसलिए तुम्हारे इस अद्भुत कार्य की चारों ओर सराहना होगी और भगवान शिव तुम्हें पति रूप में जरूर मिलेंगे। इनकी साधना और उपासना से जीवन की हर समस्या और संकट दूर हो जाता है। महंत श्री पारस भाई जी कहते हैं कि विद्यार्थियों के लिए मां ब्रह्मचारिणी की पूजा बहुत ही सुखदायी और फलदायी होती है।
इनकी पूजा से व्यक्ति के अंदर जप-तप की शक्ति बढ़ती है। मां ब्रह्मचारिणी अपने भक्तों को संदेश देती हैं कि परिश्रम से ही सफलता प्राप्त की जा सकती है। कहते हैं आज जो भी व्यक्ति मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करता है, वह जीवन के हर क्षेत्र में जीतने की शक्ति रखता है।
कहते हैं मां ब्रह्मचारिणी की पूजा निराहर रहकर की जाये तो तभी पूजा का फल मिलता है। माँ की पूजा करने पर जीवन के कठिन संघर्षों में भी व्यक्ति अपने कर्तव्य से विचलित नहीं होता और सफलता प्राप्त करता है।
विवाह में आने वाली बाधाओं को करती हैं दूर
मां ब्रह्मचारिणी की आराधना से विवाह में आने वाली हर बाधा दूर होती है। इस दिन उन कन्याओं का पूजन भी होता है जिनका विवाह तय हो गया हो लेकिन शादी नहीं हुई है। इन कन्याओं को नवरात्र के दूसरे दिन घर बुलाकर भोजन कराया जाता है और उन्हें उपहार के रूप में कपड़े , बर्तन आदि भेंट किया जाता है। इस दिन मां की आराधना से माँ की असीम कृपा प्राप्त की जा सकती है।
मां ब्रह्मचारिणी की पूजा से भक्तों को तप, त्याग और सदाचार जैसे गुणों की प्राप्ति होती है। चलिए बताते हैं कि माता की सच्चे मन से माँ की आराधना से क्या-क्या मिलता है।
मां ब्रह्मचारिणी जी की जय…मां ब्रह्मचारिणी जी की जय…
पारस परिवार की ओर से आप सभी को नवरात्रि के पवित्र पर्व की हार्दिक शुभकामनायें !!!
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"Mata Rani's grace is like a gentle breeze, touching every heart that seeks refuge in her love."