बैसाखी भारतीय संस्कृति की मिट्टी की वह सुगंध है जो हर दिल को प्रेम, परिश्रम और पवित्रता से भर देती है। हर साल के अप्रैल महीने में मनाया जाने वाला यह उत्सव फसलों की कटाई का प्रतीक तो है ही, साथ साथ शरीर और आत्मा को ताज़गी से भरकर नए जोश से प्रफुल्लित करने का एक सामाजिक पर्व भी है. पारस परिवार के लिए तो यह समाजक और आध्यात्मिक रूप से भी महत्वपूर्ण है।
बैसाखी मूल रूप से तो पंजाब के किसानों द्वारा मनाया जाने वाल एक परन्तु सांस्कृतिक महत्त्व से ये ह समस्त उत्तर भारत में विशेष पर्व है। खेतों में लहराती फसलें जब सोने जैसी चमकती हैं, तो उसमें किसान की कर्मपूजा दिखाई देती है. किसान अपने खून पसीने की इस दौलत का प्रथम हिस्सा अपने भगवान् को अर्पित करता है।
सन 1699 में बैसाखी के दिन ही सिक्खों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंदसिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी. इस कारण यह दिन सिक्खों के लिए और भी विशेष महत्त्व रखता है. यह दिन सिख अनुयायिओं के लिए धार्मिक दृष्टि के साथ साथ सामाजिक परिवर्तन और आत्मसम्मान का प्रतीक भी है।
पारस परिवार, बैसाखी को केवल खेतों में मनाये जाने वाला उत्सव नहीं बल्कि परिवार के साथ मिलबांट कर खुशियां मनाये जानें वाला एक महत्वपूर्ण अवसर भी मंटा है जिसमें संस्कार, सेवा और समर्पण है और पारस परिवार इन तीन गुणों में विश्वास रखता है —ये आभार एक दुसरे को आभार प्रकट करने वाला।
बैसाखी का यह पर्व हमें सिखाता है किसान के जैसे पूरी निष्ठा से बीज बोकर फसल उगाई जाती है उसी प्रकार हमें भी अपने विचारों से रिश्ते और समाज में भी परिश्रम और धैर्य के साथ अच्छे संस्कार बोने चाहिए।
सुबह की शुरुआत प्रभु भक्ति और आरती के साथ करें। घर में माहौल भक्तिमय बनाकर जाप करें।
परिवार के साथ बैठकर सुख शांतिपूर्वक पारंपरिक भोजन जैसे सरसों का साग, मक्के की रोटी बनाएं साथ में मीठे पकवान भी बनाएं, खाएं खिलाएं।
बच्चों को बैसाखी का महत्व समझाएं—एक छोटी कहानी के ज़रिए उन्हें बताएं कि मेहनत, संयम और आभार कितने ज़रूरी हैं।
कोई त्यौहार भी ख़ुशी का एक अवसर होता है जो सबको मिलनी चाहिए इसलिए हो इस किसी जरूरतमंद की सहायता अवश्य करें जिससे आपका बैसाखी का पर्व अर्थपूर्ण हो.
पारस परिवार के सदस्यों के साथ मिलन का आयोजन करें, ताकि भावमिन भावनाओं का अदन प्रदान हो सके।
बैसाखी याद दिलाती है कि जीवन में हर छोटी छोटी सफलता, संघर्ष और मुस्कान का जश्न मिलकर साथ मनाना चाहिए। पारस परिवार की यह परंपरा रही है कि हम अपने लिए ही नहीं अपने साथ, समाज के लिए भी सोचें, बढ़ें और साथ चलें।
इस बैसाखी पर, आइए एक बीज और बोएं—प्रेम, सेवा और समर्पण का। यही असली फसल है, यही असली पर्व।
"Mata Rani's grace is like a gentle breeze, touching every heart that seeks refuge in her love."