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पांचवें नवरात्र पर माँ की पूजा और करुणा से बंधा पारस परिवार

Blog, 04/04/2025

नवरात्रि का पाँचवाँ दिन स्कंदमाता की उपासना का दिन होता है। मोक्ष के द्वार खोलने वाली माता परम सुखदायी हैं। माँ अपने भक्तों की समस्त इच्छाओं की पूर्ति करती हैं। पारस भाई और पारस भाई जी के नेतृत्व में पारस परिवार हर साल इस दिन को पूरे उत्साह और भक्ति के साथ मनाता है।

स्कंदमाता की पूजा उपासना

 

पारस परिवार चैत्र नवरात्रि के पांचवे दिन स्कंदमाता की पूजा करने के लिए सबसे पहले स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें. इसके बाद घर के मंदिर या पूजा स्थान में चौकी पर स्कंदमाता की तस्वीर या प्रतिमा स्थापित करें. गंगाजल से शुद्धिकरण करें फिर एक कलश में पानी लेकर उसमें कुछ सिक्के डालें और उसे चौकी पर रखें. अब पूजा का संकल्प लें. इसके बाद स्कंदमाता को रोली-कुमकुम लगाकर नैवेद्य अर्पित करें. अब धूप-दीपक से मां की आरती और मंत्र जाप करें. स्कंद माता को सफेद रंग बहुत प्रिय है. इसलिए भक्त सफेद रंग के कपड़े पहनकर मां को केले का भोग लगाएं. मान्यता है कि ऐसा करने से मां सदा निरोगी रहने का आशीर्वाद देती हैं.

देवी स्कंदमाता की कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार, तारकासुर नाम का एक राक्षस था, उसने तपस्या कर ब्रह्मा जी से अमरता का वरदान प्राप्त कर लिया. लेकिन ब्रह्मा जी ने कहा कि जो इस संसार में आया है उसे एक ना एक दिन जाना पड़ता है. ब्रह्मा जी की बात सुनकर तारकासुर ने यह वरदान मांग लिया कि उसका वध सिर्फ भगवान शिव का पुत्र ही कर सकता है. जिसके बाद तारकासुर ने चारों ओर हाहाकार मचा दिया. धीरे- धीरे उसका आतंक बहुत बढ़ गया था. लेकिन तारकासुर का अंत कोई नहीं कर सकता था. क्योंकि भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय के हाथों की उसका अंत संभव था. तब देवताओं के कहने पर भगवान शिव ने साकार रूप धारण कर माता पार्वती से विवाह किया. जिसके बाद मां पार्वती ने अपने पुत्र स्कंद यानी कार्तिकेय को युद्ध के लिए प्रशिक्षित करने के लिए स्कंदमाता का रूप धारण किया. स्कंदमाता से युद्ध का प्रशिक्षण लेने के बाद कार्तिकेय ने तारकासुर का अंत किया.

स्कंदमाता का प्रिय भोग और रंग

धार्मिक मान्यता के अनुसार, देवी स्कंदमाता का प्रिय भोग केला है. स्कंदमाता की पूजा में केले के साथ खीर का भोग लगाना शुभ होता है. इसके अलावा स्कंदमाता की पूजा में पीला और सफेद रंग धारण करना शुभ होता है.

पारस परिवार में मां स्कंदमाता की पूजा की परंपरा

पारस परिवार जो कि सनातन धर्म के मूल्यों का पालन करता है, हर नवरात्रि में विशेष हवन, पूजन और भजन संध्या का आयोजन करता है। पारस भाई और पारस भाई जी के सान्निध्य में इस आयोजन को भव्य तरीके से संपन्न किया जाता है। भक्तगण पूरी श्रद्धा के साथ माता की पूजा करते हैं और उनके चरणों में अपनी आस्था व्यक्त करते हैं।

हवन और भजन संध्या

पारस परिवार विशेष रूप से हवन का आयोजन करता है, जिसमें हिंदू भाई बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं। भजन संध्या में भक्तजन मां के गुणगान करते हैं और वातावरण भक्तिमय हो जाता है। हवन और भजन संध्या से लोगो का मन भक्तिमय होता है और भगवान में लीन होता है.

स्कंदमाता का मंत्र

या देवी सर्वभूतेषु मां स्कन्दमाता रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

मां स्कंदमाता की कृपा से प्राप्त होने वाले लाभ

स्कंदमाता पूजा से मोक्ष का मार्ग सुलभ होता है।

इनकी पूजा से भक्तो की सभी मनोकामनाएँ पूरी होती है।

साहस और आत्मविश्वास की वृद्धि होती है।

पारस परिवार में आपसी सौहार्द और प्रेम बना रहता है।

निष्कर्ष
पारस परिवार में मां स्कंदमाता की पूजा सिर्फ एक परंपरा नहीं, बल्कि आस्था और श्रद्धा का प्रतीक है। पारस भाई और पारस भाई जी के नेतृत्व में इस आयोजन में हिंदू धर्म की समृद्ध परंपराओं का पालन किया जाता है। इस तरह की पूजा से न केवल आध्यात्मिक शांति मिलती है, बल्कि पारस परिवार के सभी सदस्यों को एकजुटता और सकारात्मक ऊर्जा भी प्राप्त होती है। मां स्कंदमाता की कृपा से सभी भक्तों का जीवन सुखमय और समृद्ध बना रहे, यही प्रार्थना है।

 

 

 


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