आज का दिन वह शुभ अवसर है जब संपूर्ण मानवता को सत्य, अहिंसा के साथ आत्म-संयम के पथ पर अग्रसर करने वाले भगवान महावीर स्वामी का जन्म हुआ था। इस पावन अवसर पर पारस परिवार समस्त श्रद्धालुजनों और समाज बंधुओं को महावीर जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं अर्पित करता हैं।
जैन धर्म के 24वें और अंतिम तीर्थंकर, भगवान महावीर ईसा पूर्व 599 में वैशाली राज्य के कुंडलपुर नरेश राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला के घर में जन्मे थे। वे बचपन से ही धैर्यवान, दयालु और विचारशील थे। पारस परिवार में लालन पालन होने के बावजूद उन्होंने 30 वर्ष की अल्पायु में ही घर संसार का मोह त्याग कर आत्म-मंथन की राह अपनायी
12 वर्ष तक कठिन तप करने के पश्चात उन्होंने केवलज्ञान की प्राप्ति की जिस कारण वह “महावीर” कहलाए। अपने ज्ञान के द्वारा समाज को धर्म और मानवता का रास्ता दिखाया।
महावीर स्वामी के तीन रत्न– सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चरित्र, मानव जीवन का मूल आधार जाने जाते हैं । महावीर जी के अनुसार, लोक कल्याण और सामाजिक उद्धार के लिए, अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह जैसे सिद्धांतआवश्यक हैं।
उनके कहा गया श्लोक
“अहिंसा परमो धर्मः”
आज भी उल्लेखनीय है जिसका अर्थ है
अहिंसा ही परम धर्म है।
आज के असहनशील, हिंसक और लालची समाज के लिए महावीर स्वामी की शिक्षा अँधेरे में एक दीपक की तरह मार्गदर्शन करता है। उनका ज्ञान केवल उनके अनुयायी को ही नहीं, समाज के हर उस व्यक्ति के लिए है जो शांति, संयम और समर्पण चाहता है।
सच्चा धर्म वह है जिसमें सबके हिट की बात कही गयी हो, जहां सोच में दया और करुणा हो आचरण शुद्ध हो।
पारस परिवार हमेशा आध्यात्मिक मूल्यों और सामाजिक जागरूकता को प्रोत्साहित करता आया है। ऐसे में भगवान महावीर की शिक्षाएं हमारे अथक प्रयासों की दिशा और दर्शन दोनों तय करने में हमें सहयोग देती है। उनके आदर्शों पर चलते हुए हम हर वर्ग, विचार और जीवन के प्रति सम्मान रखते हुए सेवा और साधना के पथ पर अग्रसारित हैं।
इस महावीर जयंती पर हम सभी एक संकल्प लें –
कि हम महावीर स्वामी के दिखाए मार्ग पर चलते हुए अपने भीतर से हिंसा, अशांति और असहिष्णुता की कलुषित भावना को त्याग देंगे
सदा सत्य बोलें, संयम से जिएं और समाजकल्याण का दीप जलाएं।
"Mata Rani's grace is like a gentle breeze, touching every heart that seeks refuge in her love."