आज हर कोई इस भागदौड़ भरी जिंदगी से ऊब चुका है। ऐसे में इंसान इस भागमभाग जिंदगी से कहीं दूर पहाड़ों में कुछ पल सुकून के बिताना चाहता है और कुछ समय अपने लिए निकालना चाहता है। जहाँ बस शांति हो और जहाँ जाकर आपको लगे कि यह जगह किसी जन्नत से कम नहीं है। यहाँ कुछ समय के लिए आप सब कुछ भूल जाएंगे।
यहाँ आपके आसपास खूबसूरत वादियां होंगी, जिन्हें आप एकटक निहारते रहें। आपके पास कुछ समय ऐसा हो जहां प्रकृति हो, शांति हो और सुकून के पल हों। यदि आप ऐसी जगह जाना चाहते हैं तो आप उत्तराखंड की खूबसूरत वादियों में कुछ समय बिता सकते हैं। दरअसल पहाड़ अपनी ख़ूबसूरती के लिए जाने जाते हैं।
इसी में से उत्तराखंड की एक खूबसूरत जगह है हर्षिल। यदि आप यहाँ जाते हैं तो इसे देखकर आपको स्विट्जरलैंड की याद जरूर आ जाएगी। तो चलिए जानते हैं उत्तराखंड के खूबसूरत पर्यटन स्थल हर्षिल के बारे में।
हर्षिल भारत के उत्तराखण्ड राज्य के उत्तरकाशी जिले में स्थित है। इसे हर्षिल वैली के नाम से भी जाना जाता है। यह हिमालय में भागीरथी नदी के किनारे बसा एक बहुत ही खूबसूरत हिल स्टेशन है, जिसे देखकर आप बस देखते ही रह जाओगे। यह राष्ट्रीय राजमार्ग 34 पर गंगोत्री के हिन्दू तीर्थ स्थल के मार्ग में आता है।
‘हर्षिल’ उत्तरकाशी से 78 किमी और गंगोत्री राष्ट्रीय उद्यान से 30 किमी दूर है। उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में स्थित ‘हर्षिल वैली’ की खूबसूरती आपको दीवाना बना देगी। देहरादून से लगभग 200 किलोमीटर स्थित इस हिल स्टेशन में कई सारी खूबसूरत जगहें हैं, जहाँ जाकर आप वापस आना भूल जायेंगे।
हर्षिल वैली वो जगह है, जिसे उत्तराखंड का स्वर्ग माना गया है। समुद्रतल से इसकी ऊंचाई 2660 मीटर है। हर्षिल भागीरथी नदी के किनारे स्थित घने देवदार के जंगलों के बीच स्थित एक छोटा सा हिल स्टेशन है। यह जगह सिर्फ यहाँ के लोगों के लिए ही नहीं बल्कि बाहर से आये उन लोगों के लिए भी गर्व की बात है जो अपना समय प्रकृति के साथ बिताना पसंद करते हैं।
हर्षिल गांव प्रसिद्ध और पवित्र धाम गंगोत्री के पास बसा हुआ है। हर्षिल वैली की सुंदरता आपका मन मोह लेगी। यहाँ आपको चारों ओर घास के मैदान, दूध की तरह बहने वाले सुंदर झरने, ऊंचे हरे-भरे पहाड़ और बर्फ से भरी चोटियां दिखाई देंगी। इसके अलावा घने देवदार के वृक्ष आपको अपना दीवाना बना देंगे।
हर्षिल, हिमालय की तराई में बसा है यह गांव, जो आपको अपनी ओर बरबस ही खींचता है। यह जगह किसी जन्नत से कम नहीं है। यहाँ जाकर आपको ऐसा एहसास होगा मानो आप सपनों की दुनिया में पहुंच गए हों। यहाँ की फिजाओं में अलग तरह का नशा है।
आपको बता दें कि हर्षिल की खोज ईस्ट इंडिया कंपनी में काम करने वाले अंग्रेज फेड्रिक विल्सन ने की थी। सन 1857 में जब फ्रेडरिक विल्सन ने ईस्ट इंडिया कंपनी को छोड़ दिया था जब वह गढ़वाल आए थे। यहाँ उन्होंने भागीरथी नदी के तट पर एक खूबसूरत गांव देखा, जो उन्हें बहुत पसंद आया और उन्होंने यहीं बसने का निर्णय लिया और यहीं रहने लगे।
यहां पर सेब की एक प्रजाति विल्सन के नाम से ही जानी जाती है। दरअसल विल्सन ने यहां इंग्लैंड से सेब के पौधे मंगवाकर लगाए थे। तभी से यहां पर सेब की खेती और व्यापार होने लगा। यहाँ की सुंदरता से मंत्र मुग्ध होकर विल्सन ने ही हर्षिल को स्विट्जरलैंड की उपाधि दी थी।
भागीरथी नदी के तट पर स्थित हर्षिल घाटी में बर्ड वॉचिंग और ट्रैकिंग के साथ-साथ अन्य कई बेहतरीन जगहें हैं। हर साल यहां हजारों पर्यटक घूमने के लिए आते हैं। यहाँ जाकर आप अपने टूर को हमेशा के लिए एक यादगार लम्हा बना सकते हैं। यहां आप प्रकृति की खूबसूरती को देखते हुए बहती हुई ठंडी हवा की आवाज महसूस कर सकते हैं। यहां बर्फबारी का भी आप मजा ले सकते हैं।
लोग इस जगह को देवी गंगोत्री का घर भी मानते हैं। हर्षिल अपनी मनोरम प्राकृतिक छटा और गंगोत्री नदी के लिए प्रसिद्ध है। बर्डवॉचर्स के लिए के लिए भी यह जगह बहुत फेमस है। हर्षिल में हर साल उत्तरकाशी मेला लगता है, जो बेहद ही फेमस मेला है।
हर साल यहां हजारों पर्यटक घूमने के लिए आते हैं। आइये हर्षिल वैली के कुछ प्रमुख पर्यटन स्थलों के बारे में जानते हैं-
हर्षिल से लगभग 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक छोटा सा गांव, जो बहुत ही खूबसूरत है और खूबसूरती के मामले में यह अद्भुत है। इस गांव के बगल में बहती भागीरथी नदी इसे और भी अधिक आकर्षण का केंद्र बनाती है। सैलानियों के लिए यह एक पसंदीदा जगह है। ऐसा माना जाता है कि धराली वह स्थान है जहां, भागीरथ ने गंगा नदी को धरती पर लाने के लिए तपस्या की थी। हिन्दुओं के लिए यह बेहद पवित्र स्थान भी है।
यदि आपको सनराइज देखना अच्छा लगता है तो आप इस जगह जा सकते हैं। हर्षिल वैली में घूमने वालों के लिए ये जगह किसी स्वर्ग से कम नहीं है। इस सनराइज प्वाइंट से पूरी हर्षिल वैली नजर आती है। इस जगह पर पहुंचने के लिए आपको पहाड़ी पर चढ़ना होगा। लामा टॉप का ट्रैक हर्षिल से शुरू होता है। ये ट्रेक दो किलोमीटर का है। ऊपर पहुंच कर आप सुबह की पहली किरण के साथ पूरे हर्षिल वैली को देख सकते हैं।
उत्तराखंड के चार धामों में से एक है गंगोत्री धाम का यह मंदिर। यह मां गंगा को समर्पित है। यह हर्षिल से सिर्फ 25 किलोमीटर दूर है। यह मंदिर नदी के किनारा बना हुआ है। हिंदू धर्म में इस मंदिर की बहुत मान्यता है। यह मंदिर जितना पवित्र है उतना ही खूबसूरत भी है।
हर्षिल से मुखबा गांव की दूरी लगभग 2 किलोमीटर है। यह गांव अद्भुत नजारों के लिए प्रसिद्ध है। यहां आप प्रकृति की खूबसूरती को देखने के साथ-साथ बहती हुई ठंडी हवा की आवाज़ को भी महसूस कर सकते हैं। इसके साथ ही यहां आप बर्फ़बारी का भी लुत्फ़ ले सकते हैं। देवदार के वृक्ष और कई तरह के पेड़-पौधे और प्राकृतिक माहौल में यहाँ सुकून भरे पल आपको मिलेंगे। इसके अलावा यहां आप ट्रैकिंग का भी आनंद ले सकते हैं।
जहाँ हर्षिल प्राकृतिक खूबसूरती और गंगोत्री नदी के लिए प्रसिद्ध है, तो वहीं बर्डवॉचर्स के लिए के लिए भी यह जगह किसी जन्नत से कम नहीं है। हर्षिल के घने जंगलों में पक्षियों की संख्या बहुत अधिक है। यहां 5 सौ से भी अधिक पक्षियों की प्रजातियां मौजूद हैं। इन पक्षियों की मधुर आवाज आपको मंत्रमुग्ध कर देगी।
यदि आपको बर्फ देखनी हो तो हर्षिल में ठंडियों में जाने का प्लान बनायें। अक्टूबर के अंत में यहां बर्फ पड़नी शुरू हो जाती है। आप हर्षिल वैली नवंबर से लेकर फरवरी तक के महीने में जा सकते हैं। यहाँ प्रकृति की खूबसूरती के साथ-साथ आप बर्फबारी का भी आनंद ले सकते हैं। हर्षिल को उत्तराखंड का स्विट्जरलैंड भी कहते हैं। क्योंकि बर्फबारी के बाद यहाँ की जो खूबसूरती है वह आपको स्विट्जरलैंड की याद दिला देगी।
इस गांव में आपको हर ओर सेब के खेत दिखाई देंगे। हर्षिल में इस गावं को सेब का भंडार कहा जाता है। यदि आपको सेब के बगीचे में घूमने के साथ-साथ टेस्टी सेब का लुत्फ़ लेना है तो बगोरी गांव ज़रूर जायें। यदि आपको नौका विहार का आनंद लेना है तो हर्षिल में मौजूद झील में भी आप जा सकते हैं।
यह एक लकड़ी का पुल है, जिसका हमारे इतिहास से कनेक्शन है। पहाड़ों की चट्टानों के बीच बना ये वुडन का पुल लगभग 150 साल पुराना है। 11 हजार फीट की ऊंचाई पर बनी गरतांग गली की सीढ़ियां इंजीनियरिंग का एक नायाब नमूना है। इस ऐतिहासिक पुल को बनाने का तरीका पर्यटकों को हैरान करता है। आपको बता दें कि इस पुल का इस्तेमाल भारत और तिब्बत के बीच व्यापार के लिए किया जाता था।
"Mata Rani's grace is like a gentle breeze, touching every heart that seeks refuge in her love."