अयोध्या में प्रभु श्री राम जी के प्राण प्रतिष्ठा के उस दिव्य क्षण को हर कोई देखना चाहता था, हर कोई महसूस करना चाहता था, हर कोई इस पल का गवाह बनना चाहता था। यह सच है जिसने भी इस पल को देखा, वो भावुक हुए बिना नहीं रह पाया। जिसने भी गर्भगृह में विराजमान रामलला के विग्रह के चेहरे की पहली तस्वीर को देखा वो बस देखता ही रह गया। इसके बाद हर किसी के मन में यह बात जरूर थी कि आखिर प्रभु श्री राम की मूर्ति का श्यामल रंग क्यों है ? आइए इस आर्टिकल में जानते हैं क्या है भगवान राम की मूर्ति के रंग के पीछे का रहस्य।
करोड़ों राम भक्तों का सपना 22 जनवरी 2024 को पूरा हो चुका है। इसके साथ 22 जनवरी की तारीख इतिहास के पन्नों में भी दर्ज हो गई है। पूरा देश राम नाम के रंग में रंगा हुआ है। हर किसी की जुबां पर सिर्फ और सिर्फ राम नाम है। सोमवार 22 जनवरी के दिन प्रभु श्री राम मूर्ति की प्राण पर प्रतिष्ठा की गयी। श्री राम के बाल स्वरूप में मूर्ति का निर्माण किया गया, यह मूर्ति श्यामल रंग की है। रामलला की आयु 5 वर्ष बताई गई है। गर्भगृह में विराजमान रामलला के चेहरे की जब पहली तस्वीर सामने आई तो यह बेहद ही सुंदर और अद्भुत था। इस पल की ख़ुशी ने हर किसी की आँख नम कर दी। बहुत ही भावुक कर देने वाला दृश्य था यह। मान्यता है कि जन्म भूमि में बाल स्वरूप की पूजा अर्चना की जाती है यही वजह है कि भगवान श्री राम की मूर्ति बाल स्वरूप में बनाई गयी है।
अयोध्या में श्री राम के बाल स्वरूप में मूर्ति का निर्माण किया गया है, जिसमें मूर्ति का रंग श्यामल है। प्रभु श्री राम की मूर्ति का निर्माण श्याम शिला के पत्थर से किया गया है और यह पत्थर अपने आप में बहुत खास माना जाता है। इस पत्थर का रंग काला ही होता है। यही वजह है कि मूर्ति का रंग श्यामल है।
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एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि श्याम शिला की आयु हजारों वर्ष मानी जाती है। इसलिए इसके पीछे यह कारण है कि यह मूर्ति हजारों सालों तक अच्छी अवस्था में रहे और इसमें कोई भी बदलाव न हो। इसके अलावा सनातन धर्म में पूजा पाठ के समय मूर्ति का अभिषेक किया जाता है और मूर्ति को धूप, दीप, जल, चंदन, रोली, दूध और पुष्प आदि से अभिषेक किया जाता है। इन सभी चीजों से भी प्रभु श्री राम की मूर्ति को कुछ भी न हो इसका ध्यान रखा गया। इसके अलावा महर्षि वाल्मीकि रामायण में भगवान श्री राम के श्यामल रूप का वर्णन किया गया है। इसलिए प्रभु को श्यामल रूप में पूजा जाता है।
प्राण प्रतिष्ठा हिंदू धर्म का प्रमुख धार्मिक अनुष्ठान है। प्राण का अर्थ हाेता है जीवन इसलिए प्राण प्रतिष्ठा का अर्थ हुआ किसी भी मूर्ति या प्रतिमा में देवी देवताओं को आने का आह्वान करना। प्राण प्रतिष्ठा प्रक्रिया का मतलब है मूर्ति में प्राण डालना। महंत श्री पारस भाई जी ने बताया कि इसलिए जब भी कोई मंदिर बनता है तो उसमें देवी-देवताओं की मूर्ति स्थापित की जाती है और उनकी पूजा से पहले उनमें प्राण प्रतिष्ठा की जाती है। बिना प्राण प्रतिष्ठा के मूर्ति पूजन पूर्ण नहीं माना जाता है। मूर्ति में प्राण डालने के लिए मंत्र उच्चारण के साथ देवों का आवाहन किया जाता है।
महंत श्री पारस भाई जी के अनुसार शास्त्रों में यह वर्णन मिलता है कि प्रभु राम श्याम रंग के हैं। यानि प्रभु राम का बाल रूप, प्रभु राम का जन्म रूप सब श्यामल रंग का ही है। इसलिए यही कारण है कि 500 वर्ष के बहुत ही लंबे संघर्ष के बाद प्रभु श्री राम अपने भव्य महल में विराजमान हुए हैं और उनकी प्रतिमा का रंग श्यामल रखा गया है। इसके साथ ही शास्त्रों के अनुसार, कृष्ण शिला से बनी राम की मूर्ति खास होती है और इसलिए इस मूर्ति को श्याम शिला से बनाया गया है।
राम मंदिर में प्रभु राम बालक राम के रूप में विराजमान हैं। 5 वर्ष के बालक के रूप में रामलला की प्रतिमा बनाई गई है। प्रतिमा का निर्माण मूर्तिकार अरुण योगीराज ने किया है। मूर्तिकार अरुण योगीराज कर्नाटक के मैसूर के रहने वाले हैं। अरुण योगीराज की कई पीढियां इसी काम से जुड़ी हुई हैं। उनके पिता योगीराज शिल्पी एक बेहतरीन मूर्तिकार हैं। अरुण योगीराज का कहना है कि मैं पृथ्वी पर सबसे भाग्यशाली व्यक्ति हूँ और यह मेरे लिए सबसे बड़ा दिन है। भगवान रामलला का आशीर्वाद हमेशा मेरे साथ रहा है और कभी-कभी मुझे लगता है जैसे मैं सपनों की दुनिया में हूँ।
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प्रतिमा में कमल दल पर प्रभु राम विराजमान हैं। वहीं प्रतिमा के सबसे ऊपर स्वास्तिक और आभामंडल भी बनाया गया है। अरुण योगीराज ने सिर्फ रामलला की ही मूर्ति नहीं बनाई है, इसके अलावा भी उन्होंने कई और भी मूर्तियां बनाई हैं। अरुण योगीराज ने इंडिया गेट के पास स्थापित सुभाष चंद्र बोस की 30 फीट की मूर्ति बनाई है। अरुण योगीराज ने भगवान आदि शंकराचार्य की 12 फीट की मूर्ति बनाई है, जो कि केदारनाथ में है। अरुण योगीराज ने बताया कि वह अयोध्या मंदिर के लिए सबसे सुंदर और उत्तम प्रतिमा बनाना चाहते थे। इस दौरान वो 6 महीने तक अपने परिवार वालों तक से नहीं मिले।
अरुण योगीराज ने रामलला की बेहद खूबसूरत मूर्ति का निर्माण किया है। रामलला की मूर्ति में बालत्व, देवत्व और एक राजकुमार तीनों की छवि दिखाई दे रही है। भगवान राम की मूर्ति की मुख्य विशेषताओं को देखें तो इसमें अनेक खूबियां हैं। प्रभु श्री राम की जो मूर्ति है उसका वजन करीब 200 किलोग्राम है। भगवान राम की मूर्ति कृष्ण शैली में बनाई गई है। मूर्ति में भगवान राम के कई अवतारों को तराशा गया है।
रामलला की प्रतिमा में बालसुलभ मुस्कान ने लोगों को आकर्षित किया। हर कोई उनकी मुस्कान को बस निहारे जा रहा था। दरअसल भगवान राम की मूर्ति का निर्माण चेहरे की कोमलता, आंखों की सुंदरता, मुस्कुराहट और शरीर सहित अन्य कई चीजों को ध्यान में रखते हुए किया गया है। मूर्ति बेहद ही भव्य और सुन्दर है। यह प्रतिमा 51 इंच ऊंची है, जो बहुत ही आकर्षक ढंग से बनाई गई है।
इसके अलावा भगवान श्रीराम की मूर्ति की लंबाई और ऊंचाई भारत के प्रतिष्ठित अंतरिक्ष वैज्ञानिकों की सलाह पर इस तरह से डिजाइन की गई है कि हर साल चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि राम नवमी को स्वयं भगवान सूर्य श्री राम जी का अभिषेक करेंगे। रामनवमी के दिन दोपहर 12 बजे सूर्य की किरणें सीधे उनके माथे पर पड़ेंगी और वह चमक उठेगा।
"Mata Rani's grace is like a gentle breeze, touching every heart that seeks refuge in her love."