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हिमाचल प्रदेश के सबसे प्रसिद्ध और सुंदर मंदिर

Blog, 19/02/2024

हिमाचल प्रदेश जिसे देवताओं की भूमि भी कहा जाता है, यह कई महत्वपूर्ण मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है। हिमाचल प्रदेश भारत के सबसे सुंदर राज्यों में से एक बहुत ही खूबसूरत राज्य है। यह अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए विख्यात है। यहाँ की ख़ूबसूरत वादियां आपका मन मोह लेंगी। इसलिए यह मन को मोहने वाले नज़ारों के लिए तो जाना ही जाता है। साथ ही धर्म और आध्यात्मिकता के लिए भी मशहूर है। यहाँ के पवित्र मंदिरों की सुन्दरता देखते ही बनती है। ये मंदिर न सिर्फ भारत बल्कि दुनिया भर के तीर्थयात्रियों को भी आकर्षित करते हैं। महंत श्री पारस भाई जी ने कहा कि हिमाचल प्रदेश, देव भूमि के रूप में प्रसिद्ध, स्वर्ग का एक छोटा सा टुकड़ा है जहाँ देवता वास करते हैं। हिमाचल प्रदेश में कई धार्मिक स्थल हैं जो देश और विदेश से आने वाले लोगों को प्रभावित करते हैं। यहां पर आपको बड़ी संख्या में अलग-अलग देवी-देवताओं के मंदिर मिल जाएँगे। यहां कई सारे देवी मंदिर भी हैं। तो आइये आज इसी कड़ी में हम आपको हिमाचल प्रदेश के सबसे सुंदर और प्रसिद्ध मंदिरों के बारे में बताते हैं।

 

 

ज्वाला देवी मंदिर

 

ज्वाला देवी मंदिर हिमाचल प्रदेश में बहुत ही लोकप्रिय देवी मंदिर है। मां भगवती के 51 शक्तिपीठों में से एक ज्वाला देवी मंदिर काफी प्रसिद्ध है। इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां कोई मूर्ति नहीं है। यहाँ पृथ्वी के गर्भ से निकल रहीं 9 ज्वालाओं की पूजा की जाती है। यानि इस मंदिर की सबसे आकर्षक विशेषता हजारों वर्षों से एक खोखली चट्टान में जलती हुई लौ है। ज्वाला देवी मंदिर में बिना तेल और बाती के नौ ज्वालाएं निरंतर जल रही हैं और महंत श्री पारस भाई जी ने बताया कि यह माता के 9 स्वरूपों का प्रतीक मानी जाती हैं। 

 

इस मंदिर में जो सबसे बड़ी ज्वाला जल रही है, वह ज्वाला माता हैं।  नवरात्रि के समय इस मंदिर में माँ का आशीर्वाद लेने के लिए भक्तों की बहुत लंबी भीड़ रहती है। अनवरत जलती माँ ज्वाला के इस रहस्य को आज तक कोई भी जान नहीं पाया है कि यह ज्वाला कैसे निकल रही है। इसके अलावा आज तक कोई भी इस ज्वाला को बुझा भी नहीं पाया है। मान्यताओं के अनुसार, इस स्थान पर माता सती की जीभ गिरी थी और यहां माता ज्वाला के रूप में विराजमान हैं। मंदिर कांगड़ा से लगभग 35 किमी और धर्मशाला से 55 किमी दूर है।


 

चामुंडा देवी मंदिर

 

चामुंडा देवी मंदिर कांगड़ा ज़िला, हिमाचल प्रदेश के हिल स्टेशन पालमपुर में स्थित है। यह मंदिर हिन्दू देवी चामुंडा, जिनका दूसरा नाम देवी दुर्गा भी है, को समर्पित है। चामुंडा देवी दुर्गा के सबसे क्रूर रूपों में से एक माना जाता है। यह मंदिर एक शक्ति पीठ मंदिर है। यानि इस मंदिर को देवी के शक्तिपीठों में गिना जाता है। महंत श्री पारस भाई जी ने कहा कि इस मंदिर में आने वाले भक्तों की सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। माता चमुंडा मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है। 

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पौराणिक कथा के अनुसार, चामुंडा देवी दुर्गा की एक भौं से उभरी थीं, जब राक्षस शुंभ और निशुंभ ने उन्हें पकड़ने की कोशिश की थी। वह इतनी गुस्से में आ गयी कि उन्होंने दोनों राक्षसों को इसी जगह पर मार डाला जहां मंदिर बनाया गया था। उन्होंने एक भीषण युद्ध में चण्ड-मुण्ड को भी मार डाला। देवी दुर्गा ने प्रसन्न होकर उन्हें वर दिया कि तुमने चण्ड-मुण्ड का वध किया है, अतः आज से तुम संसार में 'चामुंडा' के नाम से विख्यात हो जाओगी। इसलिए लोग देवी के इस स्वरूप को चामुंडा रूप में पूजते हैं। इस मंदिर से धौलाधार की विशाल पर्वत श्रंखला बहुत ही मनोरम लगती है। माँ चामुंडा का यह मंदिर घने जंगलों और बानेर नदी के पास स्थित है। 

 

 

नैना देवी मंदिर

 

हिमाचल प्रदेश में माँ नैना देवी जी का मंदिर बहुत ही पवित्र पूजा स्थलों में से एक माना जाता है। यह मंदिर माँ नैना देवी को समर्पित है जिन्हें देवी दुर्गा का ही अवतार माना जाता है। इस क्षेत्र पर शासन करने वाले राजा बीर चंद ने 8वीं शताब्दी के दौरान इस मंदिर का निर्माण किया था। यह मंदिर बिलासपुर में एक बहुत ही लोकप्रिय मंदिर है। यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है। यह मंदिर एक पहाड़ी पर स्थित है और ऊपर से आप शानदार नजारों  को देख सकते हैं। इसके चारों तरफ घने जंगल हैं और नैना देवी मंदिर के आसपास कई चोटियां हैं जो कि पर्यटकों के लिए काफी आकर्षक माने जाते हैं। 

 

महंत श्री पारस भाई जी ने जानकारी दी कि इस पवित्र मंदिर का निर्माण उसी स्थान पर किया गया है जहाँ सती देवी की एक आँख गिरी थी जब भगवान विष्णु ने क्रोधित भगवान शिव को शांत करने के लिए उनके शरीर को 51 टुकड़ों में चीर दिया था। इस मंदिर में वैसे तो साल भर भक्तों की भीड़ रहती है लेकिन विशेष रूप से श्रावण अष्टमी और चैत्र और आश्विन की नवरात्रि के दौरान बड़ी संख्या में भक्त माता का आशीर्वाद लेने यहाँ आते हैं। महान ज्योतिष महंत श्री पारस भाई जी यहाँ के बारे में कहते हैं कि घर में 100 हवन करने के बराबर इस हवन कुंड में एक हवन की मान्यता है। नैना देवी मंदिर में चमत्कार के बारे में कहा जाता है कि यहाँ हवन कुंड में जितना मर्जी हवन करते जाओ शेष कभी नहीं उठाना पड़ता। सारी राख भभूति इसी के अंदर समा जाती है। भक्त अपनी आंखों की सलामती के लिए श्री नैना देवी के मंदिर में चांदी के नेत्र अर्पित करते हैं।


 

बगलामुखी मंदिर

 

हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा स्थित बगलामुखी माता का मंदिर बहुत ही प्रसिद्ध और सिद्ध पीठ माना जाता है। यह कांगड़ा जिले से लगभग 30 किमी दूर स्थित है और बड़ी संख्या में हिंदू भक्तों को आकर्षित करता है। इस मंदिर में बगलामुखी मां की पूजा की जाती है। बगलामुखी मंदिर में देश विदेश के भक्तों की बहुत आस्था है। इस मंदिर के आसपास स्थित दो अन्य मंदिर चिंतापूर्णी मंदिर और ज्वाला जी मंदिर हैं। बगलामुखी देवी को दस महाविद्याओं में से एक माना जाता है, जो दुष्टों का नाश करने वाली देवी हैं। मां बगलामुखी का पौराणिक कथाओं में दस महाविद्याओं में आठवां स्थान है। पीला रंग बगलामुखी देवी का सबसे प्रिय रंग है इसलिए मंदिर को पीले रंग में रंगा गया है। 

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इस मंदिर का अनूठा पहलू इसका पीले रंग का अग्रभाग है। यहाँ तक कि मां के वस्त्र, प्रसाद, मौली और आसन से लेकर सब कुछ पीला ही होता है। वैसे भी यह रंग बहुत शुभ माना जाता है। इस मंदिर में देवी का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए  भक्त पीले वस्त्र पहनते हैं और पीले रंग की मिठाई जैसे बेसन के लड्डू आदि का भोग लगाते हैं। मां बगलामुखी को पीतांबरी भी कहा जाता है। मां की उत्पत्ति ब्रह्मा की आराधना करने के बाद हुई थी। मान्यता है कि सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा का ग्रंथ एक राक्षस ने चुरा लिया और पाताल में छिप गया। उसे वरदान था कि पानी में मानव और देवता उसे नहीं मार सकते। ऐसे में ब्रह्मा ने मां भगवती का जाप किया। माना जाता है कि तब बगलामुखी माँ की उत्पत्ति हुई। मां ने बगुला का रूप धारण कर उस राक्षस का वध किया और बह्मा को उनका ग्रंथ लौटाया। राजनीति या फिर कोर्ट-कचहरी के विवाद के लिए मां के मंदिर में यज्ञ करवाने से हर कोई मन वांछित फल पाता है।

 

 

चिंतपूर्णी मंदिर

 

चिंतपूर्णी मंदिर हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में स्थित है। यह मंदिर माता चिंतपूर्णी को समर्पित है। महंत श्री पारस भाई जी के अनुसार चिंतपूर्णी मंदिर उत्तर भारत में सबसे प्रसिद्ध शक्ति पीठों में से एक है। इस मंदिर के चारों तरफ घने जंगल हैं जो आपका मन मोह लेंगे। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान शिव ने जब सती के शव को उठाया तो तब सती के शरीर के अंग अलग-अलग स्थानों पर गिरे और इन्हीं स्थानों को शक्तिपीठ का नाम दिया गया। ऐसा माना जाता है कि यह वह स्थान था जहां सती के पैर गिरे थे। इसलिए लोग बड़ी संख्या में मां चिंतपूर्णी के चरणों की पूजा करने आते हैं। चिंतपूर्णी मंदिर चारों तरफ से बागवान और झाड़ियों से घिरा हुआ है। मंदिर में प्रवेश करने पर सबसे पहले आप लक्ष्मी नारायण मंदिर के दर्शन करेंगे। इसके बाद आप मुख्य मंदिर में जाते हैं जहां पर माता चिंतपूर्णी की मूर्ति स्थापित है।


हिमाचल प्रदेश देवी देवताओं की भूमि है इसलिए इसके कोने-कोने में बहुत ही प्रसिद्ध तीर्थ स्थल हैं। महंत श्री पारस भाई जी ने बताया कि चिन्तपूर्णी यानि चिन्ता को दूर करने वाली देवी जिसे छिन्नमस्तिका भी कहा जाता है। छिन्नमस्तिका का अर्थ है-एक देवी जो बिना सर के है। मान्यता है कि यहां पर पार्वती के पवित्र पांव गिरे थे। यहां पर वर्ष में तीन बार मेले लगते हैं। पहला चैत्र मास के नवरात्रों में, दूसरा श्रावण मास के नवरात्रों में, तीसरा अश्विन मास के नवरात्रों में। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार सती चंडी की सभी दुष्टों पर विजय के बाद उनके दो शिष्यों अजय और विजय ने सती से अपनी खून की प्यास बुझाने के लिए प्रार्थना की तो तब सती चंडी ने अपना मस्तिष्क छिन्न कर लिया। इसलिए सती का नाम छिन्नमस्तिका पड़ा। मां चिंतापूर्णी आत्म-बलिदान का प्रतीक हैं, क्योंकि उन्होंने अपने प्रिय की सेवा के लिए अपना सिर बलिदान कर दिया था।


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