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दिल्ली में स्थित प्रसिद्ध माता के मंदिर जहाँ से नहीं लौटता कोई खाली हाथ

Blog, 03/04/2024

वैसे तो दिल्ली में माता के कई प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिर हैं। लेकिन कुछ मंदिर ऐसे हैं जिनकी मान्यता बहुत अधिक है। इन माता के मंदिरों में हमेशा भक्तों की भीड़ लगी रहती है। क्योंकि माता के इन प्रसिद्ध मंदिरों में हर कोई एक बार दर्शन जरूर करना चाहता है। ऐसा माना जाता है कि यदि कोई भक्त एक बार माँ के चरणों में अपनी हाजिरी लगा देता है तो माँ अपने भक्तों पर खुश होकर उनकी झोलियाँ भर देती है और कभी भी खाली हाथ नहीं लौटाती है। आप जिस भी कामना के साथ माँ के मंदिर में जाते हैं वो अवश्य पूरी होती है। तो इसी कड़ी में हम आपको आज दिल्ली के कुछ प्रसिद्ध देवी मंदिरों के बारे में बताएंगे।

कालकाजी मंदिर

यह मंदिर भक्तों के बीच काफी लोकप्रिय है। कालकाजी मंदिर दिल्ली के कालकाजी में स्थित है। यह मंदिर दिल्ली के प्रसिद्ध लोटस टेंपल के पास स्थित है। यह मंदिर माँ कालका देवी को समर्पित है। कालकाजी मंदिर देश के प्राचीन सिद्धपीठों में से एक है, यहाँ नवरात्रि के समय भक्तों का तांता लगा रहता है। हजारों की संख्या में भक्त यहाँ माता के दर्शन के लिए पहुँचते हैं। उस दौरान यहाँ भक्तों की बहुत लंबी लाइन होती है। कालकाजी मंदिर के निर्माण की बात करें तो इस मंदिर का निर्माण 18वीं शताब्दी में किया गया था। इसे मनोकामना सिद्धपीठ भी कहा जाता है।

इस मंदिर के बारे में पौराणिक मान्यता है कि इसी जगह आद्यशक्ति माँ भगवती 'महाकाली' के रूप में प्रकट हुई और असुरों का संहार किया, बस तब से यह सिद्धपीठ, मनोकामना सिद्धपीठ के रूप में प्रसिद्ध है। दरअसल असुरों के द्वारा बहुत अधिक परेशान किये जाने पर देवताओं ने इसी स्थान पर शक्ति की अराधना की। तब माँ पार्वती ने अपनी भृकुटी से महाकाली को प्रकट किया, फिर माँ काली ने रक्तबीज का संहार किया। महंत श्री पारस भाई जी बताते हैं कि महाकाली का वो रौद्र अत्यधिक भयानक था। उनके इस रूप को देखकर सब डर गए। सभी देवताओं ने माँ काली की प्रार्थना की। तब से इस स्थान पर जो भी पवित्र मन से जाता है माँ काली उसकी हर मनोकामना पूरी करती है।

 

छतरपुर मंदिर

छतरपुर मंदिर दिल्ली का प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। यह मंदिर मां दुर्गा को समर्पित है। इसे श्री आद्या कात्यायिनी मंदिर भी कहते हैं। क्योंकि यह मंदिर माता के छठे स्वरूप माता कात्यायनी को समर्पित है। इस मंदिर में मां दुर्गा अपने छठे रूप माता कात्यायनी के रौद्र स्वरूप में दिखाई देती हैं। यह मंदिर बहुत ही बड़े क्षेत्र में फैला हुआ है। इस मंदिर की भव्यता को देखने के लिए लोग दूर-दूर से यहां आते हैं और माता के दर्शन करते हैं। छतरपुर मंदिर दिल्ली के सबसे बड़े और सबसे विशाल मंदिरों में एक है। यह मंदिर गुंड़गांव-महरौली मार्ग के निकट छतरपुर में स्थित है। छतरपुर मंदिर की स्थापना 1974 में हुई। पहले इस भव्य मंदिर की जगह एक कुटिया हुआ करती थी, आज इस मंदिर का क्षेत्रफल 70 एकड़ तक फैला हुआ है।

नवरात्रि के समय यहाँ पर देश-विदेश से भक्त आते हैं। श्री आद्या कात्यायनी शक्तिपीठ मंदिर में एक पेड़ है जहां सभी भक्त धागा और चूड़ियां बांधते हैं। इसके पीछे यह मान्यता है कि ऐसा करने से आपकी जो भी इच्छाएं होती हैं वो सभी पूरी हो जाती हैं। इसकी स्थापना कर्नाटक के संत बाबा नागपाल जी द्वारा की गयी थी। यह मंदिर सफेद संगमरमर से बना हुआ है और इसे बेहद ख़ूबसूरती के साथ सजाया गया है। यह मंदिर दक्षिण भारतीय शैली में बना हुआ है। इस मंदिर में बहुत सारे अन्य छोटे-बड़े मंदिर भी हैं। यह मंदिर दिल्ली में दूसरा सबसे बड़ा मंदिर माना जाता है। इस मन्दिर में नक्काशी बहुत ही बेहतरीन तरीके से की गयी है। इसके अलावा इस मंदिर में काफी सुंदर बगीचे भी हैं। महंत श्री पारस भाई जी ने कहा कि नवरात्रों में इस आद्या कात्यायनी शक्तिपीठ मंदिर में माता का अलग ही स्वरूप देखने को मिलता है। मां कात्यायनी के श्रृंगार के लिए यहां रोजाना दक्षिण भारत से विशेष फूलों से बनी माला मंगवाई जाती है। माता का यह भव्य रूप आप नवरात्रि के खास मौके पर ही देख सकते हैं।

 

झंडेवालान मंदिर दिल्ली

झंडेवालान मंदिर झंडेवाली देवी को समर्पित एक प्रसिद्ध सिद्धपीठ है। यह मंदिर देश और दिल्ली के सुप्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। इस मंदिर का धाार्मिक ही नही ऐतिहासिक महत्व भी है। मान्यता है कि इस मंदिर में जाकर आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। यहां हजारों लोग माता रानी के दर्शन करने आते हैं। दिल्ली में यह प्राचीन मंदिर करोलबाग के पास स्थित है। वहीं कनॉट प्लेस से भी यह मंदिर पास में है। यह मंदिर न सिर्फ दिल्ली में बल्कि देश-विदेश के भक्तों के बीच भी प्रसिद्ध है। नवरात्रों में इस मंदिर भक्तों की भीड़ देखते ही बनती है। पूरा मंदिर भक्तों से भरा रहता है।  

झंडेवाला मंदिर का इतिहास लगभग दो सौ साल से भी पहले से माना जाता है। आज जहां यह माता का मंदिर है, वहां पहले घने वन थे। इस जगह पर दिल्ली के लोग सैर करने आते थे। मान्यता के अनुसार इस जगह की खुदाई में माता की मूर्ति के साथ झंडा मिलने से इस मंदिर का नाम झंडेवाला मंदिर पड़ गया। यह मंदिर आज लोगों के बीच काफी प्रसिद्ध हो गया है। इस मंदिर के पीछे की कहानी यह है कि एक बड़े व्यापारी जिनका नाम बद्री दास था, इस जगह पर ध्यान करने आते थे। इसी तरह जब एक दिन बद्री दास जी योग और ध्यान में खोये थे तब उन्हें महसूस हुआ कि इस जगह के नीचे कोई प्राचीन मंदिर है। फिर उन्हें सपने में भी उस जगह मंदिर दिखाई दिया। फिर उन्होंने उस स्थान पर खुदाई की तो गहरी गुफा में देवी की एक मूर्ति और झंडा मिला। लोग दूर-दूर से देवी माता की पूजा अर्चना के लिए यहां आने लगे। इसके बाद बद्री दास जी ने अपना पूरा जीवन देवी मां के चरणों में और उनकी सेवा में ही समर्पित कर दिया।

 

गुफा वाला मंदिर

गुफा वाला मंदिर दिल्ली के प्रीत विहार क्षेत्र में स्थित है। यह पुराने मंदिरों में से एक है। इस मंदिर को लेकर भक्तों में काफी आस्था है। इस मंदिर का नाम गुफा वाला मंदिर, इसके गुफानुमा रास्ते के कारण पड़ा है। माता वैष्णों देवी गुफा की तर्ज पर ही यह गुफा बनाई गई है। इसकी लंबाई 140 फीट है। जहां माता का दर्शन पिंडी के रूप में होता है। इस गुफा से होकर माता के पिंडी दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं को माता वैष्णो देवी की गुफा का अनुभव होता है। यह मंदिर एक बड़ी गुफा के लिए प्रसिद्ध है, गुफा में गंगा जल की एक धारा बहती रहती है। इसका गुफानुमा रास्ता भक्तों के लिए आकर्षण का केंद्र रहता है। यह मंदिर भक्तों को वैष्णो देवी मंदिर में होने का एहसास दिलाता है। गुफा से बाहर निकलते ही भैरों बाबा के दर्शन होते हैं। इसमें एक और छोटी गुफा है जिसमें देवी कात्यायनी, चिंतपूर्णी, संतोषी मां और ज्वाला देवी की मूर्तियां स्थापित हैं। 

इस मंदिर का निर्माण सन 1987 में शुरू हुआ था और 1994 में मंदिर बनकर तैयार हो गया था। यह मंदिर नवरात्रि के दौरान भक्तों को बहुत आकर्षित करता है। यहां सभी 12 ज्योतिर्लिंग के दर्शन एक साथ हो जाते हैं। इस मंदिर में एक मन्नत पूरी करने वाला पेड़ भी है। मन्नत पूरी करने के लिए इस पेड़ में लोग  चुन्नी बांधते हैं और जब मन्नत पूरी हो जाती है उसके बाद उस चुन्नी को खोल देते हैं। यह मंदिर दिल्ली के प्रसिद्ध मंदिरों में शुमार है। इस मंदिर में आज हर दिन भक्तों की भीड़ माता के पिंडी दर्शन के लिए पहुंचती है। नवरात्रि के समय तो यह भक्तों की भीड़ और भी बढ़ जाती है। साल 1996 में यहां एक अखंड ज्योत स्थापित की गई, तब से आज तक यह अखंड ज्योत लगातार जल रही है। यहां आने वाले हर श्रद्धालु की हर इच्छा पूरी होती है।

 

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