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सप्तम नवरात्र की देवी- मां कालरात्रि जी

Blog, 13/04/2024

शक्ति की साधना के लिए नवरात्रि का महापर्व सबसे ज्यादा शुभ और फलदायी माना गया है। चैत्र नवरात्रि से मन में उमंग और उल्लास की वृद्धि होती है। हिंदू धर्म में माँ दुर्गा को ब्रह्मांड की सबसे बड़ी शक्ति माना गया है। मान्यता है कि जो भी व्यक्ति सच्चे मन से नवरात्रि के 9 दिनों तक व्रत रखते हुए 9 देवियों की विधि-विधान से पूजा करता है माँ भगवती दुर्गा पूरे साल उन पर अपनी कृपा बरसाती हैं और अपना आशीर्वाद भक्तों पर बनाये रखती हैं। 15 अप्रैल 2024 नवरात्रि के सातवें दिन सप्तमी तिथि को मां कालरात्रि की पूजा की जाएगी। देवी दुर्गा का सातवांं स्वरूप कालरात्रि जो देखने में भयानक है। माता के इस उग्र रूप की पूजा करने पर भक्तों के सभी शोक दूर होते हैं। 

 

कौन है मां कालरात्रि ?

नवरात्रि के सातवें दिन माँ कालरात्रि की पूजा अर्चना का विधान है। माता का रंग काला होने के कारण इसे मां कालरात्रि कहा गया है। देवी कालरात्रि को व्यापक रूप से माँ काली, महाकाली, भद्रकाली, भैरवी, मृत्यू-रुद्राणी, चामुंडा, चंडी और दुर्गा के कई विनाशकारी रूपों में से एक माना जाता है। माँ कालरात्रि की पूजा से व्यक्ति को सभी पापों से मुक्ति मिलती है और शत्रुओं का नाश हो जाता है।

मां दुर्गा के सातवें स्वरूप मां कालरात्रि को महायोगिनी महायोगिश्वरी भी कहा जाता है। देवी बुरे कर्मों वाले लोगों का नाश करने और तंत्र-मंत्र से परेशान भक्तों का कल्याण करने वाली हैं। देवी की पूजा से रोग का नाश होता है और शत्रुओं पर विजय मिलती है। ग्रह बाधा और भय दूर करने वाली माता की पूजा इस दिन जरूर करनी चाहिए। अपने महा विनाशक गुणों से शत्रु एवं दुष्ट लोगों का संहार करने वाली सातवीं दुर्गा का नाम मां कालरात्रि है। महंत श्री 
पारस भाई जी के अनुसार कालजयी, शत्रुओं का दमन करने वाली, चंड-मुंड का संहार करने वाली और भक्तों को अभय दान देने वाली मां काली के अधीन पूरा संसार है। 

महंत श्री पारस भाई जी आगे कहते हैं कि माँ की आराधना के लिए मन, वचन, काया की पवित्रता रखनी चाहिए। उनकी आराधना से होने वाले अच्छे कार्यों की गिनती नहीं की जा सकती। माता कालरात्रि का नाम लेने से भूत, प्रेत, दानव समेत सभी नकारात्मक शक्तियों का अंत होता है। 

मां कालरात्रि की विधिवत पूजा अर्चना करने से माँ अपने भक्तों को काल से बचाती हैं यानि माँ के भक्त को अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता। माता कालरात्रि से ही सभी सिद्धियां प्राप्त होती हैं इसलिए कई साधक मां कालरात्रि की विशेष रूप से पूजा अर्चना करते हैं।

 

माँ कालरात्रि का स्वरूप

मां के बाल लंबे और बिखरे हुए हैं। माता के गले में माला बिजली की तरह चमकती रहती है। मां के एक हाथ में खड्ग, एक में लौह शस्त्र, एक हाथ में वरमुद्रा और अभय मुद्रा होती है। आकृति और सांसारिक स्वरूप में यह कालिका का अवतार यानी काले रंग रूप की अपनी विशाल केश राशि को फैलाकर चार भुजाओं वाली दुर्गा है। माँ कालरात्रि का स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक तो है लेकिन ये सदैव शुभ फल ही देने वाली हैं। इसी वजह से इनका एक नाम 'शुभंकरी' भी है। इसलिए कहा जाता है कि इनसे भक्तों को किसी भी प्रकार से भयभीत या आतंकित होने की आवश्यकता नहीं है। 

माँ कालरात्रि के उपासकों को जल-भय, अग्नि-भय, जंतु-भय, शत्रु-भय, रात्रि-भय आदि कभी नहीं होते। मां कालरात्रि की आंखों से अग्नि की वर्षा होती है। शंकर जी की ही तरह इनके भी तीन नेत्र हैं। तीसरा नेत्र 'त्रिकाल' का है। माँ कालरात्रि दुष्टों का विनाश करने वाली हैं। माँ कालरात्रि की कृपा से व्यक्ति पूरी तरह से भय-मुक्त हो जाता है। मां कालरात्रि ग्रह बाधाओं को दूर करने वाली हैं। 

देवी कालरात्रि तीन नेत्रों वाली दुर्गा के रूप में मशहूर हैं। उनके श्री अंगों की प्रभा बिजली के समान है। गर्दभ इनका वाहन है। यह दिशाओं का ज्ञाता है। दश दिशाएं हैं। हर दिशा की एक महाशक्ति है। 'दसमहाविद्या' इनका ही स्वरुप है। काली मां को आदि महाविद्या भी कहा गया है। कहते हैं प्राणी जिन-जिन वस्तुओं से दूर भागता है, वह सब मां काली को प्रिय है, जैसे मृत्यु, श्मशान, नरमुंड, रक्त, विष ये सब देवी के कालतत्व हैं। 

 

माँ कालरात्रि का भोग 

माँ कालरात्रि के भोग की बात करें तो मां कालरात्रि को गुड़ या गुड़ से बनी चीजों का भोग लगाना चाहिए। क्योंकि मां कालरात्रि को गुड़ और गुड़ से बनी चीजें पसंद हैं। ऐसा करने से माँ की कृपा आप पर सदैव बनी रहती है। साथ ही धन-धान्य, यश-वैभव की प्राप्ति होती है। सप्तमी तिथि में मां कालरात्रि को गुड़ का भोग लगाने के बाद उस भोग का आधा हिस्सा प्रसाद के रूप में बांट दें। ऐसा करने से शुभ फल प्राप्त होते हैं। इस सप्तमी मां कालरात्रि को प्रसन्न करने के लिए गुड़ का मालपुआ भी बना सकते हैं। 

 

मां कालरात्रि की पूजा का महत्व 

काले वर्ण के कारण मां दुर्गा की इस शक्ति को कालरात्रि कहा जाता है। मां कालरात्रि की पूजा से आरोग्य की प्राप्ति होती है और भूत प्रेत आदि सभी नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है। मां कालरात्रि की कृपा से परिवार में सुख-शांति आती है। मां कालरात्रि शत्रुओं व दुष्टों का संहार करती है। मां अपने भक्तों को आशीष प्रदान करती हैं और अपने भक्तों के सभी दुख दूर करती हैं।

भक्तों पर माँ की असीम कृपा रहती है और हर तरफ से वह रक्षा प्रदान करती हैं। नवरात्रि की सप्तमी तिथि की पूजा सुबह में अन्य दिनों की तरह होती है लेकिन रात्रि में माता की विशेष पूजा भी की जाती है। यानि माता की पूजा रात्रि के समय भी होती है। आप 'ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै ऊं कालरात्रि दैव्ये नम:।' मंत्र का जप करें। यह माता का सिद्ध मंत्र है। महंत श्री पारस भाई जी मां काली को विजय, यश, वैभव, शत्रुदमन, अभय, न्याय और मोक्ष की देवी मानते हैं। कालरात्रि की पूजा का बेहद महत्व माना जाता है। 

माता कालरात्रि की पूजा से सभी कष्ट दूर होते हैं। संसार में कालों का नाश करने वाली माँ कालरात्रि ही हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शनि ग्रह पर माँ कालरात्रि का प्रभाव है। इसलिए जिन लोगों को शनि ग्रह के दोष से कोई कठिनाई हो, उन्हें भक्तिपूर्वक माँ कालरात्रि की आराधना करनी चाहिए।

 

मां कालरात्रि जी मंत्र

  • या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
  • ॐ ऐं ह्रीं क्रीं कालरात्रै नमः।
  • 'ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।
  • 'दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तु ते।

 

माँ कालरात्रि जी कथा 

जब दैत्य शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज ने सभी लोकों में अपने गलत कामों से हाहाकार मचा दिया था। तो तब इनसे हर कोई दुखी हो गया और परेशान रहने लगा। फिर इसके बाद सभी देवी देवता मिलकर महादेव के पास गए और उन्हें पूरी समस्या बताई। सब उनसे रक्षा की प्रार्थना करने लगे। भगवान शिव को पता था कि दानवों का अंत माता पार्वती कर सकती हैं। 

भगवान शिव जी ने माता से अनुरोध किया और पार्वती से कहा कि आप असुरों का अंत कर अपने भक्तों की रक्षा करें। इस तरह महादेव की बात मानकर माता पार्वती ने दुर्गा का रूप धारण किया और शुंभ-निशुंभ का वध किया। इसी तरह जब मां दुर्गा ने दैत्य रक्तबीज को मौत के घाट उतारा, तो उसके शरीर से निकलने वाले रक्त से लाखों रक्तबीज दैत्य उत्पन्न हो गए। 

मां दुर्गा ने जब यह देखा तो माँ को भयंकर क्रोध आ गया। क्रोध के कारण मां का वर्ण श्यामल हो गया था। इसी श्यामल स्वरूप से ही देवी कालरात्रि प्रकट हुई। जब मां दुर्गा ने दैत्य रक्तबीज का अंत किया और उसके शरीर से निकलने वाले रक्त को मां कालरात्रि ने जमीन पर गिरने से पहले ही अपने मुख में भर लिया। तब इस रूप में मां पार्वती कालरात्रि कहलाई। 

महंत श्री पारस भाई जी के अनुसार माँ काली की पूजा का फल भक्तों को जरूर मिलता है। आपके आत्मविश्वास और तेज में वृद्धि होती है। मां काली विजय, यश, वैभव, शत्रुदमन, अभय, न्याय और मोक्ष की देवी हैं।
 

कालरात्रि जय जय महाकाली…

 

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