भारत में धार्मिक त्योहारों की श्रृंखला बहुत लंबी और खुशियों से भरी है। सनातन धर्म के अंतर्गत अलग-अलग त्योहारों को अलग-अलग तरीके से मनाने का रिवाज है। दीपों की चमक से सराबोर दिवाली के बाद छठ पर्व पूर्वांचल क्षेत्र में बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। इस पावन पर्व पर कई श्रद्धालु अपने राज्यों में अपने घर जाते हैं। यह पर्व मुख्य रूप से उत्तर भारत के राज्यों जैसे बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और यहां तक कि नेपाल के कुछ हिस्सों में भी बड़ी श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है। लेकिन समय के बदलाव के साथ यह महान पर्व देश और विदेश में कई अन्य जगहों पर भी लोकप्रिय हो गया है। पारस परिवार की ओर से छठ के इस पावन पर्व की ढेरों शुभकामनाएं। छठ का यह पर्व सिर्फ देवताओं की पूजा तक ही सीमित नहीं है। यह श्रद्धालुओं के संयम, त्याग और भक्ति का भी परिचय देता है।
मुख्य मान्यताओं के अनुसार छठ पर्व सूर्य देव और उनकी बहन छठी मैया की पूजा को समर्पित है। पारस भाई गुरुजी के अनुसार भी इन मान्यताओं को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाती है। यह पर्व मुख्य रूप से सूर्य और प्रकृति की पूजा के रूप में मनाया जाता है। सूर्य इस धरती पर एकमात्र जीवन प्रदाता हैं, उन्हें ऊर्जा के प्रतीक और स्वास्थ्य के रक्षक के रूप में पूजा जाता है। हिंदू धर्म की पौराणिक कथाओं में छठ से जुड़ी कई घटनाएँ हैं। कहा जाता है कि महाभारत काल में कुंती ने भी सूर्य देव की पूजा करके अपने बड़े पुत्र कर्ण को प्राप्त किया था। इसके अलावा राजा प्रियव्रत की कथा भी प्रसिद्ध है, जिन्होंने सूर्य की पूजा करके अपने पुत्र को जीवन वापस दिया था।
यह पवित्र और महान पर्व कुल 4 दिनों तक चलता है। जिसमें दिनों के अनुसार व्रत और सूर्य देव की पूजा एक साथ की जाती है। इस पूरी प्रक्रिया में साफ-सफाई और पवित्रता का ध्यान रखा जाता है। इस व्रत को बहुत कठिन व्रत का दर्जा दिया गया है।
पहला दिन: इस दिन को नहाय खाय कहा जाता है। इस दिन भक्त पवित्र स्नान करते हैं। साथ ही इस दिन अपने भोजन की शुद्धता और पवित्रता का भी ध्यान रखा जाता है।
दूसरा दिन: इस दिन को खरना कहते हैं। यह पूरा दिन कठिन व्रत रखने वालों को समर्पित होता है। शाम को इस दिन गुड़ की खीर का विशेष प्रसाद बनाया जाता है।
तीसरा दिन: इस दिन को छठ का सबसे महत्वपूर्ण दिन कहा जाता है। लोग शाम के सूर्य को शुद्ध अर्घ्य देते हैं। अर्घ्य के समय सूर्यास्त के समय नदी, तालाब आदि जलस्रोत में खड़े होकर सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है।
चौथा दिन: चौथा दिन छठ के समापन का प्रतीक है। इस अंतिम सुबह, भक्त उगते सूर्य को अर्घ्य देते हैं।
यह व्रत कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। छठ पूजा में प्रकृति की पूजा का विशेष विधान है। यह पर्व सभी को संदेश देता है कि प्रकृति की पूजा करके हम उनसे पूरी तरह जुड़ सकते हैं। छठ पर्व के माध्यम से इस पर्व को मनाने वालों के त्याग, संयम और समर्पण को समझा जा सकता है। इस व्रत को करने वाले भक्तों को अपनी आत्मा को शुद्ध करने का सुनहरा अवसर मिलता है। पारस भाई जी के अनुसार, भले ही छठ पूजा की रस्में बहुत सरल हैं, लेकिन इस व्रत का पालन करना बहुत कठिन माना जाता है। सभी माताएँ अपनी संतानों की लंबी और खुशहाल ज़िंदगी के लिए छठी मैया से प्रार्थना करती हैं।
छठ पूजा का पर्यावरण संदेश
छठ पूजा में किसी भी तरह की कृत्रिम सजावट, पूजा सामग्री या पटाखों का इस्तेमाल नहीं किया जाता है, जिससे यह पर्यावरण के अनुकूल है। सभी सामग्रियाँ जैविक होती हैं और हिंदू धर्म प्रकृति के साथ सामंजस्य को दर्शाता है। यह त्योहार हमें प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करने और पृथ्वी के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी निभाने की शिक्षा देता है।
"Mata Rani's grace is like a gentle breeze, touching every heart that seeks refuge in her love."