Back to privious Page


भारत के चार धाम

Blog, 18/01/2024

स्कंद पुराण के तीर्थ प्रकरण के अनुसार चार धाम यात्रा को महत्वपूर्ण माना गया है। महंत श्री पारस भाई जी के अनुसार चार धामों के दर्शन करने से हर तरह के पाप खत्म हो जाते हैं और सकारात्मक ऊर्जा भी बढ़ती है।

भारत के चार धाम आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा परिभाषित चार वैष्णव तीर्थ हैं। जहाँ हर हिंदू को अपने जीवन काल में अवश्य जाना चाहिए, जो हिंदुओं को मोक्ष प्राप्त करने में मदद करेंगे। इसमें उत्तर दिशा में बद्रीनाथ, पश्चिम की ओर द्वारका, पूर्व दिशा में जगन्नाथ पुरी और दक्षिण में रामेश्वरम धाम है।

महंत श्री पारस भाई जी ने बताया कि प्राचीन समय से ही ये चार धाम तीर्थ के रूप मे मान्य थे, लेकिन इनके महत्व का प्रचार जगत गुरु शंकराचार्य जी ने किया था। हर साल बड़ी संख्या में श्रद्धालु चार धाम की धार्मिक यात्रा करते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इन तीर्थों का बहुत अधिक महत्व है। हर धाम की अलग- अलग विशेषताएं हैं। आइए जानते हैं भारत के इन पवित्र धामों के बारे में।
 

द्वारका धाम, द्वारका गुजरात


भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित तीर्थ द्वारका धाम में विधि- विधान से श्रीकृष्ण की पूजा होती है। द्वारका धाम सात मोक्ष पुरी में से एक माना जाता है। द्वारका नाम ‘द्वार’ से लिया गया है और इसे मोक्ष के प्रवेश द्वार के रूप मे माना जाता है। आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा परिभाषित चार धाम, चार वैष्णव तीर्थों मे से एक भारत की पश्चिम दिशा में द्वारका का यह श्री द्वारकाधीश मंदिर भी है। द्वारका धाम में श्रीकृष्ण स्वरूप का पूजन किया जाता है।

भारत के पश्चिम में स्थित द्वारका गुजरात राज्य में स्थित है। वहीं कुछ लोगों का मानना है कि शहर के नाम में ‘द्वार’ शब्द का मतलब संस्कृत भाषा दरवाजे से लिया है, जहां गोमती नदी अरब सागर में विलीन हो जाती है वहां यह संगम स्थित है। द्वारका को भगवान श्री कृष्ण का निवास स्थान माना जाता है। जिसे द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण ने अपने जन्म स्थान मथुरा से आने के बाद बसाया था।

द्वारकाधीश नाम का अर्थ है, द्वारका के राजा यानी भगवान श्री कृष्ण। इतिहासकारों की मानें तो गुजरात के द्वारकाधीश मंदिर का निर्माण भगवान श्रीकृष्ण के पड़पोते ने करवाया है। ऐसा अनुमान है कि यह मंदिर 2500 वर्ष पुराना है। द्वापर युग में द्वारका नगरी थी, जो आज समुद्र में समाहित है। वर्तमान समय में इस पावन स्थल पर द्वारकाधीश मंदिर स्थित है।

मंदिर में दो प्रवेश द्वार हैं उत्तर दिशा में प्रवेश द्वार को मोक्षद्वार तथा दक्षिण प्रवेश द्वार मुख्य स्वर्ग द्वार है, यह द्वार मुख्य बाजार से होते हुए गोमती नदी की ओर जाता है। मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण चांदी स्वरूप में स्थापित हैं।

मंदिर के ऊपर स्थित ध्वज सूर्य और चंद्रमा को दर्शाता है, जो कि इस बात का संकेत है कि पृथ्वी पर सूर्य और चंद्रमा की मौजूदगी तक श्री कृष्ण का राज्य रहेगा। कृष्ण जन्माष्टमी, रुक्मिणी विवाह तथा तुलसी विवाह मंदिर के प्रमुख उत्सव हैं।

महंत श्री पारस भाई जी प्राचीन तीर्थ स्थलों पर जाने के बारे में कहते हैं कि ऐसी जगह पर जाने से पौराणिक ज्ञान बढ़ता है। इसके अलावा देवी-देवताओं से जुड़ी कथाएं और परंपराएं मालूम होती हैं।
 

जगन्नाथ धाम, पुरी, ओडिशा


भारत के ओडिशा राज्य के तटवर्ती शहर पुरी में स्थित श्रीकृष्ण को समर्पित जगन्नाथ मंदिर वैष्णव संप्रदाय का मंदिर है। इस मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण समेत बलराम और बहन सुभद्रा की पूजा उपासना की जाती है। आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष में जगन्नाथ रथ यात्रा निकाली जाती है। पुरी भार्गवी व धोदिया नदी के बीच में बसा हुआ है और बंगाल की खाड़ी में विलीन हो जाती है। पुरी जगन्नाथ रथ यात्रा के लिए विश्‍व प्रसिद्ध है। भगवान जगन्नाथ (भगवान कृष्ण), उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा इस मंदिर के तीन प्रमुख देवता हैं।

भारत के पूर्व दिशा में स्थित जगन्नाथ धाम को चार वैष्णव धामों में से एक माना जाता है। मंदिर का आर्किटेक्चर कलिंग शैली द्वारा चूना पत्थर से बना है। श्री जगन्नाथ मंदिर की चारों दिशाओं में चार प्रवेश द्वार हैं, जो क्रमशः पूर्व मे सिंह द्वार / मोक्ष द्वार, दक्षिण अश्व द्वार / काम द्वार, पश्चिम व्याघ्र द्वार / धर्म द्वार, उत्तर मे हाथी द्वार / कर्म द्वार स्थापित है। मंदिर के सिंह द्वार पर कोणार्क सूर्य मंदिर से लाया अरुण स्तंभ स्थापित किया गया है, तथा कोणार्क मंदिर के मुख्य विग्रह भगवान सूर्य देव को भी यहीं स्थापित कर दिया गया है।

विश्व प्रसिद्ध श्री रथ यात्रा, जगन्नाथ धाम का सबसे प्रमुख त्यौहार या उत्सव है। इस पवित्र यात्रा का आरंभ श्री जगन्नाथ मंदिर से होता है। जहाँ भगवान जगन्नाथ, भ्राता बलभद्र और बहन सुभद्रा दिनभर यात्रा करते हैं। इस रथ यात्रा में मंदिर के तीनों देवता अलग-अलग भव्य और सुसज्जित रथों में विराजमान होकर नगर की यात्रा को निकलते हैं। इस आयोजन में दुनियाभर से भगवान श्रीकृष्ण के भक्त आते हैं। यहां मुख्य रूप से भात का प्रसाद चढ़ाया जाता है।

इस यात्रा में देश-विदेश से बहुत लोग शामिल होते हैं। इस यात्रा में इतनी भीड़ होती है कि ग्रांड रोड पर पैर रखने की जगह मिलना मुश्किल होती है। जगह-जगह लोगों के लिए जल-पान व भोज की व्यवस्था की जाती है। कालांतर से यह पर्व श्रद्धा और भक्ति पूर्वक मनाया जाता है।

महंत श्री पारस भाई जी ने कहा कि इन चार धामों के माध्यम से भगवान के चार रुपों की पूजा तो होती ही है साथ ही चारों दिशाओं की पूजा और राष्ट्र प्रेम की भावना भी जागृत होती है, राष्ट्र की सीमाओं का ज्ञान होता है और एकता की भावना का विकास होता है।
 

रामेश्वरम धाम, रामेश्वरम, तमिलनाडु


रामेश्वरम को भारत में हिंदुओं के लिए सबसे पवित्र स्थानों में से एक माना जाता है और यह चार धाम तीर्थयात्रा का हिस्सा है। यह हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी से चारों ओर से घिरा हुआ एक सुंदर शंख आकार द्वीप है। रामेश्वरम धाम भगवान शिव को समर्पित है। इस पावन धाम में लिंग रूप में शिवजी की पूजा की जाती है।

भगवान शिव को समर्पित रामनाथ स्वामी मंदिर रामेश्वरम के एक प्रमुख क्षेत्र में स्थित है। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर की प्रतिष्ठा श्री राम चंद्र ने की थी। धार्मिक मान्यता है कि भगवान श्रीराम ने लंका जाते समय रामेश्वरम में भगवान शिव जी की प्रतिमा स्थापित कर उनकी पूजा की थी।

यह प्रतिमा रामजी ने स्वंय अपने हाथों से बनाई थी। रामजी ने शिवलिंग का नाम रामेश्वरम रखा था। त्रेता युग से रामेश्वर में शिवजी की पूजा होती है। यहां के इष्टदेव लिंग के रूप में हैं जिनका नाम श्री रामनाथ स्वामी है, यह भी बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है।

इस मंदिर की बात करें तो इसमें प्रवेश करने से पहले भक्त समुद्र में स्नान करते हैं। इतिहास कहता है कि भगवान राम ने रावण के साथ युद्ध के बाद महान संतों के कहने पर “ब्रह्म दोष” से छुटकारा पाने के लिए यहां पवित्र डुबकी लगाई थी। इस स्थान का पानी पवित्र माना जाता है और तीर्थयात्री इस समुद्र तट पर अपने पूर्वजों के सम्मान में पूजा भी करते हैं। वर्तमान समय में रामेश्वरम प्रमुख तीर्थ स्थल है। बड़ी संख्या में श्रद्धालु रामेश्वर तीर्थ यात्रा पर जाते हैं।
 

बद्रीनाथ धाम, उत्तराखण्ड


यह मंदिर चार धामों में से एक है और भारत के प्रमुख तीर्थ स्थलों में शामिल है। भारत के उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में बद्रीनाथ धाम स्थित है, जिसे बद्रीनारायण के नाम से भी जाना जाता है। सर्दी के दिनों में पूरा बद्रीनाथ धाम बर्फ की चादरों से ढका रहता है। हिमालय की गोद में अलकनंदा नदी के तट पर बसा हुआ यह हिंदू धर्म का एक प्राचीन मंदिर है, जो भगवान विष्णु को समर्पित है। यहां पर भगवान विष्णु के एक रूप बद्रीनारायण की पूजा होती है। महंत श्री पारस भाई जी ने बताया कि इस पावन धाम में अचल ज्ञान ज्योति के प्रतीक के रूप में अखंड दीप जलता है।

यहां पर श्रद्धालु तप्तकुण्ड में स्नान करते हैं। यहां पर वनतुलसी की माला, चने की कच्ची दाल, गिरी का गोला और मिश्री आदि का प्रसाद चढ़ाया जाता है। बद्रीनाथ धाम में 6 महीने तक पूजा की विधान है। हर साल अप्रैल के आखिरी या मई में मंदिर के कपाट खोले जाते हैं जो कि नवंबर के दूसरे सप्ताह तक खुले रहते हैं। हर साल श्रद्धालु बड़ी संख्या में यहाँ की यात्रा करते हैं।

उत्तराखंड की इस धरती को भारतीय संतों और महात्माओं ने देवताओं और प्रकृति का मिलन स्थान माना है। ऐसा माना जाता है कि आदि युग में नारायण ने, त्रेतायुग में भगवान राम ने, द्वापर युग में वेदव्यास ने तथा कलयुग में आदि शंकराचार्य ने बद्रीनाथ में धर्म और संस्कृति के सूत्र पिरोए।

महंत श्री पारस भाई जी ने कहा कि यदि आप इन चार धामों की यात्रा करते हो तो आपको प्राचीन संस्कृति को जानने का मौका मिलता है। साथ ही अलग-अलग रीति-रिवाजों को जानने का अवसर मिलता है। भगवान और भक्ति से जुड़ी मान्यताओं की जानकारी मिलती है। यही वजह है कि इन चार धामों को अलग-अलग दिशाओं में स्थापित किया गया है। इन चारों धामों कि यात्रा को चार धाम यात्रा कहा जाता है।


  Back to privious Page

About us

Personalized astrology guidance by Parasparivaar.org team is available in all important areas of life i.e. Business, Career, Education, Fianance, Love & Marriage, Health Matters.

Paras Parivaar

355, 3rd Floor, Aggarwal Millennium Tower-1, Netaji Subhas Place, Pitam Pura, New Delhi - 110034.

   011-42688888
  parasparivaarteam@gmail.com
  +91 8882580006