धार्मिक नगरी उज्जैन पूरी दुनिया में काफी मशहूर है। मध्य प्रदेश की तीर्थ नगरी उज्जैन में शिप्रा तट के निकट 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक बाबा महाकालेश्वर हैं। उज्जैन में महाकालेश्वर मंदिर भारत में भगवान शिव को समर्पित सबसे प्रतिष्ठित और प्राचीन मंदिरों में से एक है। इसके अलावा यहाँ हर 12 साल में कुंभ मेले का भी आयोजन किया जाता है जो सिंहस्थ के नाम से जाना जाता है।
इस मंदिर में किए जाने वाले अनोखे अनुष्ठानों में से एक भस्म आरती है, जो अद्भुत रहस्य से भरी है इसलिए यह भस्म आरती दुनिया भर से भक्तों को आकर्षित करती है। आज इस ब्लॉग में हम उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर के बारे में और महाकाल भस्म आरती के महत्व के बारे में विस्तार से जानेंगे।
मध्यप्रदेश राज्य के उज्जैन नगर में स्थित, महाकालेश्वर भगवान का यह प्रमुख मंदिर है। उज्जैन में भारत के 12 ज्योर्तिलिंगों में से एक महाकाल मंदिर स्थित है। महाकाल की नगरी उज्जैन को सब तीर्थों में श्रेष्ठ माना जाता है। यहां 12 ज्योर्तिलिंगों में से एक महाकाल मंदिर स्थित है।
यह न केवल एक पूजा स्थल है बल्कि अत्यधिक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व का स्थल भी है। मंदिर की उत्पत्ति चौथी शताब्दी ईसा पूर्व की मानी जाती है, जिसका उल्लेख मत्स्य पुराण और अवंती खंड जैसे प्राचीन संस्कृत ग्रंथों में मिलता है।
इस मंदिर में किया जाने वाले सबसे मुख्य अनुष्ठान भस्म आरती है जो हर किसी का ध्यान अपनी ओर बरबस ही खींचती है। पुराणों, महाभारत और कालिदास जैसे महाकवियों की रचनाओं में इस मंदिर का मनोहर वर्णन मिलता है। यह भगवान शिव का सबसे पवित्र निवास स्थान माना जाता है।
महंत श्री पारस भाई जी ने कहा कि बाबा महाकालेश्वर के दर्शन मात्र से ही मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।
यह मंदिर उत्तर भारतीय मंदिर वास्तुकला का एक बेहतरीन उदाहरण है। इसमें पाँच-स्तरीय शिकारा (शिखर), जटिल नक्काशी और एक विशाल प्रवेश द्वार है। इसके साथ ही मंदिर का आध्यात्मिक माहौल, पास में शिप्रा नदी के शांत घाटों के साथ मिलकर, भक्तों और पर्यटकों के लिए एक शांत वातावरण बनाता है। हिंदू धर्म में उज्जैन शहर का अपना अलग महत्व है। यह प्राचीन धार्मिक नगरी देश के 51 शक्तिपीठों और चार कुंभ स्थलों में से एक है।
काल के दो अर्थ होते हैं एक समय और दूसरा मृत्यु। भगवान भोलेनाथ की नगरी उज्जैन हमेशा से ही काल-गणना के लिए बेहद उपयोगी एवं महत्वपूर्ण मानी जाती रही है। देश के नक्शे में यह शहर 23.9 डिग्री उत्तर अक्षांश एवं 74.75 अंश पूर्व रेखांश पर स्थित है।
कर्क रेखा भी इस शहर के ऊपर से गुजरती है। साथ ही उज्जैन ही वह शहर है, जहां कर्क रेखा और भूमध्य रेखा एक-दूसरे को काटती है। इस शहर की इन्हीं विशेषताओं को ध्यान में रख काल-गणना, पंचांग निर्माण और साधना के लिए उज्जैन को सर्वश्रेष्ठ माना गया है।
दरअसल महाकाल को महाकाल इसलिए कहा जाता है क्योंकि प्राचीन समय से ज्योतिषाचार्य यहीं से भारत की काल गणना करते आए हैं और यहीं से प्राचीन काल में पूरे विश्व का मानक समय निर्धारित होता था। इसी काल की गणना के कारण ही यहां भगवान शिव को महाकाल के नाम से जाना जाता है और यही वजह है कि इस ज्योतिर्लिंग का नाम महाकालेश्वर पड़ा।
“महाकाल” शब्द यानि “महान समय” है, जो भगवान शिव की शाश्वत प्रकृति को दर्शाता है। कहते हैं काल भी महाकाल के रौद्र रूप महाकाल के सामने हाथ जोड़कर खड़े हो जाते हैं।
शास्त्रों का एक मंत्र- आकाशे तारकेलिंगम्, पाताले हाटकेश्वरम्। मृत्युलोके च महाकालम्, त्रयलिंगम् नमोस्तुते।। यानि सृष्टि में तीन लोक हैं- आकाश, पाताल और मृत्यु लोक। आकाश लोक के स्वामी हैं तारकलिंग, पाताल के स्वामी हैं हाटकेश्वर और मृत्युलोक के स्वामी हैं महाकाल। मृत्युलोक यानी पूरे संसार के स्वामी महाकाल ही हैं।
कालों के काल महाकाल के यहाँ हर दिन सुबह भस्म आरती होती है। इस आरती की सबसे विशेष बात यह है कि इसमें ताजा मुर्दे की भस्म से भगवान महाकाल का श्रृंगार किया जाता है। यानि महाकालेश्वर मंदिर में सबसे अनोखा अनुष्ठान है भस्म आरती। इस अनुष्ठान में शिव लिंगम पर पवित्र राख, या “भस्म” लगाना शामिल है।
मध्य प्रदेश के शहर उज्जैन का नाम तो हर किसी ने सुना होगा। धार्मिक मान्यताओं के लिए मशहूर यह शहर पूरी दुनिया में दो चीजों के लिए सबसे ज्यादा जाना जाता है। इनमें से पहला है यहां स्थित बाबा महाकाल का मंदिर और दूसरा यहां होने वाला कुंभ।
कालों के काल बाबा महाकाल के इस मंदिर के दर्शन करने दूर-दूर से हर साल लाखों की संख्या में भक्त यहां पहुँचते हैं। महंत श्री पारस भाई जी ने बताया कि यह स्थल अत्यन्त पुण्यदायी है। भगवान शिव के इस स्वरूप का वर्णन शिव पुराण में भी विस्तार से मिलता है।
भस्म आरती के दर्शन करने के नियम कुछ खास होते हैं, इनका आपको पालन करना होता है। आपको बता दें कि यहां आरती करने का अधिकार सिर्फ यहाँ के पुजारियों को ही दिया जाता है अन्य लोग इसे केवल देख सकते हैं।
इस आरती को देखने के लिए पुरुषों को केवल धोती पहननी पड़ती है और महिलाओं को आरती के समय सिर पर घूंघट रखना पड़ता है। भस्म आरती का समय ऋतु परिवर्तन और सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय के साथ थोड़ा बदल जाता है। विशेष रूप से सुबह की भस्म आरती सबसे लोकप्रिय है और इसमें बहुत भीड़ होती है।
इस पवित्र समारोह को देखने और इसमें भाग लेने के लिए भक्त भोर से पहले ही जाग जाते हैं। भस्म आरती में अनुष्ठानों की एक श्रृंखला शामिल होती है, जिसमें वैदिक मंत्रों का जाप, पवित्र जल (अभिषेकम) की पेशकश और शिव पर विभूति का अनुप्रयोग शामिल है। पुजारी इन अनुष्ठानों को विधि विधान और समर्पण के साथ करते हैं।
उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में भस्म आरती एक दैनिक अनुष्ठान है जो सुबह जल्दी शुरू होती है। भस्म आरती का समय निम्न है-
यह भस्म आरती प्रातः 4:00 बजे से प्रातः 6:00 बजे तक होती है। यह सबसे प्रसिद्ध भस्म आरती है, इस पवित्र भस्म आरती के दर्शन के लिए भक्त बड़ी संख्या में आते हैं।
यह भस्म आरती सुबह 10:30 से 11:00 बजे तक होती है।
इसका समय शाम 7:00 बजे से शाम 7:30 बजे तक है। इसका समय सूर्यास्त के समय के साथ बदलता रहता है।
महंत श्री पारस भाई जी ने बताया कि भस्म आरती देखना और भगवान शिव का आशीर्वाद लेना बेहद शुभ होता है। आरती के बाद, भक्तों को प्रसाद के रूप में पवित्र राख दी जाती है। ऐसा माना जाता है कि इस राख को अपने माथे या शरीर पर लगाने से आध्यात्मिक शुद्धि और सुरक्षा मिलती है।
हम सबने भगवान शिव के इस मंदिर की पौराणिक कथाओं के बारे में सुना है लेकिन इस मंदिर का वैज्ञानिक महत्व शायद आपको पता न हो। खगोल शास्त्री मानते हैं कि मध्य प्रदेश का शहर उज्जैन ही पृथ्वी का केंद्र बिंदु है।
खगोल शास्त्रियों के अनुसार मध्य प्रदेश का यह प्राचीन शहर धरती और आकाश के बीच में स्थित है। इसके अलावा शास्त्रों में भी उज्जैन को देश का नाभि स्थल बताया गया है। यहाँ तक कि वराह पुराण में भी उज्जैन नगरी को शरीर का नाभि स्थल और बाबा महाकालेश्वर को इसका देवता कहा बताया गया है
यहां हर 12 साल में पूर्ण कुंभ तथा हर 6 साल में अर्द्धकुंभ मेला लगता है। उज्जैन में होने वाले कुंभ मेले को सिंहस्थ कहा जाता है। आपको बता दें कि सिंहस्थ का संबंध सिंह राशि से है। जब सिंह राशि में बृहस्पति और मेष राशि में सूर्य का प्रवेश होता है तो तब उज्जैन में कुंभ का आयोजन होता है इसलिए उज्जैन के कुंभ को सिंहस्थ कहा जाता है।
उज्जैन स्थित महाकाल मंदिर का पौराणिक महत्व भी बहुत अधिक है। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव ने यहां दूषण नामक राक्षस का वध कर अपने भक्तों की रक्षा की थी, जिसके बाद भक्तों के आग्रह के बाद भोलेबाबा यहां विराजमान हुए थे। दूषण का वध करने के पश्चात् भगवान शिव को कालों के काल महाकाल या भगवान महाकालेश्वर नाम से पुकारा जाने लगा।
यह मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से तीसरा ज्योतिर्लिंग है। ज्योतिर्लिंगों में सोमनाथ, मल्लिकार्जुन के बाद तीसरे नंबर पर महाकालेश्वर मंदिर आता है। इस मंदिर की खास बात यह है कि यह एक मात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है, जो दक्षिणमुखी है।
इसलिए तंत्र साधना के लिए इसे काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। दरअसल तंत्र साधना के लिए दक्षिणमुखी होना जरूरी है। इस मंदिर को लेकर ये भी मान्यता है कि यहां भगवान शिव स्वयं प्रकट हुए थे।
ज्योतिर्लिंग यानी शिव जी ज्योति स्वरूप में विराजित हैं। देशभर में 12 ज्योतिर्लिंग हैं। इन 12 जगहों पर शिव जी प्रकट हुए थे और भक्तों की इच्छा पूरी करने के लिए इन जगहों पर ज्योति रूप में विराजमान हो गए।
यह मंदिर हिंदुओं के लिए अत्यधिक धार्मिक महत्व रखता है। महंत श्री पारस भाई जी ने कहा कि इस मंदिर की तीर्थयात्रा करने से आपके सभी पाप धुल जाते हैं और आपको जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिल जाती है। महाकाल को उज्जैन का महाराज भी कहते हैं, माना जाता है कि किसी भी शुभ चीज को करने से पहले महाकाल का आशीर्वाद लेना बहुत ही शुभ फल देता है।
शिप्रा, जिसे क्षिप्रा के नाम से भी जाना जाता है यह मध्य भारत के मध्य प्रदेश राज्य की एक नदी है। क्षिप्रा नदी के तट पर बसे होने की वजह से इस शहर को शिप्रा के नाम से भी जाना जाता है। इसके अलावा यह शहर संस्कृत के महान कवि कालिदास की नगरी के नाम से भी काफी प्रचलित है।
यह मध्य प्रदेश के पांचवें सबसे बड़े शहरों में से है, जो अपनी धार्मिक मान्यातों के चलते दुनियाभर में पर्यटन का प्रमुख स्थल है। प्राचीन समय में उज्जैन को अवन्तिका, उज्जयनी, कनकश्रन्गा के नाम से भी जाना जाता था।
"Mata Rani's grace is like a gentle breeze, touching every heart that seeks refuge in her love."