माघ महीने की कृष्ण पक्ष की एकादशी को षटतिला एकादशी के रूप में मनाया जाता है। प्रत्येक एकादशी व्रत का अपना एक विशेष महत्व होता है और इस दिन व्रत करने के साथ दान-पुण्य करना बेहद लाभकारी माना गया है। हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत बहुत ही खास माना जाता है। हर महीने 2 एकादशी और एक साल में कुल 24 एकादशी आती हैं। इस दिन भगवान विष्णु के पूजन का विधान है। आइये जानते हैं क्या है षटतिला एकादशी और क्या है इसका महत्व?
इस साल षटतिला एकादशी 6 फरवरी 2024, मंगलवार को मनाई जाएगी। षटतिला एकादशी के दिन पूजन में व्रत कथा का पाठ करना चाहिए। पूजन के अंत में भगवान विष्णु की आरती कर पारण के समय तिल का दान करें। मान्यता है कि ऐसा करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और सभी मनोकामनाएं पूर्ति होती है। इस व्रत को रखने से मनुष्यों को अपने बुरे पापों से मुक्ति मिलती है। शास्त्रों में यह भी बताया है कि केवल षटतिला एकादशी का व्रत रखने से वर्षों की तपस्या का फल प्राप्त होता है।
षटतिला एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है। महंत श्री पारस भाई जी के अनुसार षटतिला एकादशी के दिन भगवान विष्णु की श्रद्धा पूर्वक पूजा करने से सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है। जीवन में सुख, शांति, समृद्धि और वैभव बना रहता है। षटतिला एकादशी का व्रत रखने से वैवाहिक जीवन सुखमय और खुशहाल बनता है। इसके अलावा इस व्रत की कथा सुनने एवं पढ़ने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। महंत श्री पारस भाई जी ने कहा कि षटतिला एकादशी के दिन अन्न दान करने का बहुत महत्व माना जाता है। इस दिन ब्राह्मण को एक भरा हुआ घड़ा, छतरी, जूतों का जोड़ा, काले तिल और उससे बने व्यंजन और वस्त्र आदि का दान करना चाहिए।
षटतिला एकादशी पर तिल का विशेष महत्व है। इस व्रत में तिल का छः तरीके से इस्तेमाल किया जाता है, इसलिए इसे षटतिला एकादशी कहा जाता है। महंत श्री पारस भाई जी के अनुसार षटतिला एकादशी का व्रत करने से स्वर्ण-दान से मिलने वाले पुण्य के समान ही पुण्य की प्राप्ति होती है। इस दिन तिल का अत्यंत महत्व है। इस दिन तिल के जल से स्नान करते हैं, तिल का उबटन लगाया जाता है, तिल से हवन किया जाता है। इसके अलावा तिल का भोजन में इस्तेमाल करते हैं, तिल से तर्पण करते हैं और तिल का दान करते हैं। महंत श्री पारस जी ने कहा है कि एकादशी तिथि के दिन पूजा-पाठ करने से भक्तों को विशेष लाभ मिलता है और उन्हें सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलती है।
एकादशी के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करें। इसके उपरांत मंदिर की सफाई कर मंदिर में गंगाजल छिड़कें। चौकी पर पूजा स्थल में पीला वस्त्र बिछाएं और इस पर भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करें। भगवान विष्णु को धूप, दीप अर्पित करें।
भगवान विष्णु के सामने तुलसी दल जरूर चढ़ाएं। साथ ही कुमकुम, पीला फूल, पीला चंदन और भोग में पीले रंग की मिठाई और फल के साथ तिल-गुड़ के लड्डू चढ़ाएं। व्रत के दौरान क्रोध, ईर्ष्या आदि जैसे विकारों का त्याग करके फलाहार का सेवन करना चाहिए। साथ ही रात्रि जागरण भी करना चाहिए।
अंत में भगवान विष्णु की आरती उतारें। विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना भी इस दिन शुभ माना जाता है। अंत में पूजा समाप्त करने के पश्चात प्रसाद का वितरण करें।
महंत श्री पारस भाई जी ने कहा कि जो व्यक्ति षटतिला एकादशी के दिन तिल एवं गुड़ का दान करते हैं, उन्हें मोक्ष मिलता है। ऐसी भी मान्यता है कि षटतिला एकादशी के दिन पितरों का तिल-तर्पण करने से उन्हें सद्गति की प्राप्ति होती है। साथ ही ये भी माना जाता है कि षटतिला एकादशी के दिन व्यक्ति जितने तिल का दान करता है, उतने हजार वर्ष तक बैकुंठलोक में सुख पूर्वक रहता है। महंत श्री पारस भाई जी ने आगे बताया कि जो भी इस दिन तिल का छह तरह से उपयोग करता है उसे कभी धन की कमी नहीं होती और आर्थिक तंगी से छुटकारा मिलता है।
प्राचीनकाल में एक ब्राह्मण की विधवा पत्नी थी। वह भगवान विष्णुजी की अनन्य भक्त थी। वह उनकी प्रतिदिन पूजा करती थी। उसने विष्णुजी का आशीर्वाद पाने के लिए एक महीने तक उपवास किया। ऐसा करने पर उसका तन-मन शुद्ध हो गया लेकिन उसने ब्राह्मण को भोजन नहीं खिलाया, न ही कभी देवताओं या ब्राह्मणों के निमित्त अन्न या धन का दान किया। इसलिए ब्राह्मण-भोज का महत्व बताने के लिए षटतिला एकादशी को ब्राह्मण रूप में विष्णुजी महिला के पास गए और उससे भिक्षा मांगी। उसने ब्राह्मण को भोजन नहीं कराया और दान में एक मिट्टी का ढेला दिया।
जब उसकी मृत्यु हुई तो वह बैकुंठधाम तो गई लेकिन वहां उसे एक खाली झोपड़ी मिली। यह सब देखकर उसने सोचा कि वह तो श्रद्धा भाव से विष्णुजी की पूजा करती थी लेकिन उसे खाली झोपड़ी क्यों मिली। इसके बाद विष्णुजी महिला के पास पहुंचे और उसको कारण बताया कि उसने ब्राह्मण को भोजन नहीं कराया था। तब उस दुखी महिला ने भगवान विष्णुजी से इसका हल पूछा। उसकी बात सुनकर विष्णुजी ने उसे षटतिला एकादशी व्रत करने के बारे में बताया। महिला ने विष्णुजी की बात सुनकर श्रद्धा भाव और नियम से व्रत किया। उसकी पूजा से विष्णुजी खुश हुए और उन्होंने कहा कि षटतिला एकादशी के दिन जो भी व्यक्ति इस व्रत को करेगा और ब्राह्मणों को दान देगा तब उसे मोक्ष की प्राप्ति अवश्य होगी एवं जीवन में सुख-शांति का वास होगा। इस दिन तिल का दान करने से रोग, दोष और भय से छुटकारा मिलता है। साथ ही इस दिन तिल का दान करने से अनाज की कभी कमी नहीं होती है और इस व्रत के प्रभाव से दुख-दरिद्रता दूर होती है।
ॐ श्री विष्णवे नम: … “पारस परिवार” की ओर से षटतिला एकादशी की ढेर सारी शुभकामनाएं !!!!
"Mata Rani's grace is like a gentle breeze, touching every heart that seeks refuge in her love."