नवरात्रि की नौ रातों में हर रात एक अलग अवतार या रूप में माँ दुर्गा की पूजा की जाती है। हर रात को एक अलग रूप या स्वरुप में माँ की उपासना करते हुए, भक्तों को शक्ति, सदभावना और दिव्यता की अनुभूति होती है। ये रातें नवरात्रि का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। जिनमें भक्ति और आध्यात्मिकता की भावनाओं को जागृत किया जाता है।
नवरात्रि की नौ रातों में हर रूप का एक अलग अर्थ और महत्व है। महंत श्री पारस भाई जी के अनुसार नवरात्रि के इस समय में माँ के हर रूप से भक्तों को माँ दुर्गा की शक्ति, साहस और दया को जानने का अवसर मिलता है। नवरात्रि में हर रात और हर दिन मंत्रों और भजनों के साथ भक्ति में वृद्धि होती है। जिससे व्यक्ति अपने आंतरिक अस्तित्व को महसूस करता है और उनका धार्मिक एवं मानसिक विकास होता है।
नवरात्रि का पर्व सामान्य रूप से माँ दुर्गा को समर्पित है। नवरात्रि माँ शक्ति की पूजा का महत्वपूर्ण त्यौहार है, जिसमें माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। इस अवसर पर भक्तों का उद्देश्य माँ दुर्गा की पूजा, स्तुति और उनके आशीर्वाद को प्राप्त करना है। नवरात्रि भक्ति के महत्व को समझने और अमल में लाने का भी पर्व है।
नवरात्रि का महत्व ये है कि ये त्यौहार माँ दुर्गा की अद्भुत पराक्रम को जानने का अवसर प्रदान करता है। माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा के माध्यम से भक्तों को समृद्धि की प्राप्ति की प्रेरणा मिलती है। भक्तों का उद्देश्य माँ दुर्गा की कृपा दृष्टि को प्राप्त करना और उनकी शक्ति को प्राप्त करना है। नवरात्रि एक ऐसे समय का प्रतीक है जहाँ पर परिवार और समाज में प्रेम और सद्भावना का संचार होता है।
नवरात्रि माँ दुर्गा को मनाने का अवसर है। नवरात्रि में मन और शरीर शुद्ध हो जाता है। नवरात्रि इस रूप में भी महत्वपूर्ण है कि इस समय बुराई से दूर रहने और अच्छाई को बढ़ावा देने का संकल्प लिया जाता है। इस अवसर पर भक्ति, ध्यान और साधना के माध्यम से आत्मा की शुद्धि और आध्यात्मिक विकास की दिशा में अग्रसर किया जाता है। यह नवरात्रि का त्यौहार एकता और प्रेम का प्रतीक है। जिसमें परिवार और समाज के लोग एक साथ मिलकर माँ दुर्गा की आराधना करते हैं।
देवी दुर्गा ने पार्वती के रुप में हिमालय के घर जन्म लिया। इसी कारण देवी का पहला नाम पड़ा शैलपुत्री अर्थात हिमालय की बेटी। शैल का मतलब है पहाड़ या चट्टान। माँ शैलपुत्री सिखाती है कि जीवन में सफलता और जीत प्राप्त करने के लिए अपने लक्ष्यों को चट्टान की तरह मजबूत बनायें।
माँ शैलपुत्री देवी दुर्गा के नौ रूपों में से पहले स्वरूप में जानी जाती हैं। इस रूप में मां दुर्गा को पर्वतराज हिमालय की बेटी के रूप में पूजा जाता है। इनके दाएं हाथ में त्रिशूल है और बाएं हाथ में इन्होंने कमल धारण किया हुआ है। मां शैलपुत्री की पूजा, धन-दौलत और अच्छे स्वास्थ्य के लिए की जाती है।
इस रूप में मां दुर्गा को तपस्विनी के रूप में पूजा जाता हैं। ब्रह्मचारिणी का अर्थ है, जो ब्रह्मा के द्वारा बताए गए आचरण पर आगे बढ़े। क्योंकि जीवन में कुछ भी प्राप्त करने के लिए अनुशासन सबसे ज्यादा जरूरी है। इनकी पूजा से आपको आगे बढ़ने की शक्ति मिलती हैं।
मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से आपके सभी कार्य पूरे होते हैं और विजय की प्राप्ति होती है। मां ब्रह्माचारिणी के दाहिने हाथ में मंत्र जपने की माला और बाएं में कमंडल है।
ये माँ दुर्गा का तीसरा रूप है, जिनके माथे पर घंटे के आकार का चंद्रमा है, इसलिए इनका नाम चंद्रघंटा पड़ा है। मां चंद्रघंटा के हाथों में त्रिशूल, धनुष, गदा और तलवार है। मां चंद्रघंटा शक्ति का वरदान देती हैं और साथ ही भय को भी दूर करती हैं। माँ के दस हाथों में अस्त्र-शस्त्र सजे हुए हैं। मां युद्ध मुद्रा में सिंह पर विराजमान होती हैं।
कुष्मांडा देवी का चौथा स्वरूप है। ग्रंथों के अनुसार इन्हीं देवी की मंद मुस्कान से अंड यानी ब्रह्मांड की रचना हुई थी। इसी कारण इनका नाम कूष्मांडा पड़ा। ये देवी भय दूर करती हैं। भय यानी डर ही सफलता की राह में सबसे बड़ी मुश्किल होती है। जिसे जीवन में सभी तरह के भय से मुक्त होकर सुख से जीवन बिताना हो, उसे देवी कुष्मांडा की पूजा करनी चाहिए। इनकी साधना करने से जीवन से जुड़े सभी कष्ट दूर होते हैं।
इनके शरीर की कांति सूर्य के समान तेज है। इनके तेज की तुलना इन्हीं से की जा सकती है। इनकीआठ भुजाएं हैं इसलिए ये अष्टभुजादेवी के नाम से भी जानी जाती हैं।
भगवान शिव और पार्वती के पहले पुत्र हैं कार्तिकेय और उन्हीं का ही एक नाम है स्कंद। इसलिए कार्तिकेय या स्कंद की माँ होने के कारण देवी के पांचवें रुप को स्कंद माता के नाम से जाना जाता है। भगवान स्कंद बालरूप में इनकी गोद में विराजित हैं।
स्कंदमाता की चार भुजाएँ हैं। इनका वर्ण पूर्णतः शुभ्र अर्थात श्वेत है। ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। इसी कारण इन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है। इनका वाहन भी सिंह है। इनकी उपासना से साधक को अलौकिक तेज की प्राप्ति होती है।
कात्यायिनी ऋषि कात्यायन की पुत्री हैं। कात्यायन ऋषि ने देवी दुर्गा की बहुत तपस्या की थी और फिर दुर्गा प्रसन्न हुई तब ऋषि ने वरदान में माँगा कि देवी दुर्गा उनके घर में पुत्री के रुप में जन्म लें। कात्यायन की बेटी होने के कारण ही नाम इनका पड़ा कात्यायिनी पड़ा।
यह नवदुर्गाओं में छठवीं देवी हैं। महंत श्री पारस भाई जी ने कहा कि किसी भी व्यक्ति को रोग से मुक्ति पाने के लिए देवी कात्यायिनी की पूजा अर्चना करें। ये स्वास्थ्य की देवी हैं।
इस रूप में मां दुर्गा का भयानक स्वरूप होता हैं। इन्हें काली माँ के रूप में पूजा जाता है। माँ कालरात्रि दुष्टों का विनाश करने वाली हैं। काल यानि समय और रात्रि मतलब रात। इसका अर्थ उन सिद्धियों से है जो रात के समय साधना करने से साधक को मिलती हैं।
इनके नाम से दैत्य, राक्षस, भूत, प्रेत, बाधा आदि सभी भयभीत होकर दूर भाग जाते हैं। माँ कालरात्रि को शुभंकरी, महायोगीश्वरी और महायोगिनी भी कहा जाता है। माँ कालरात्रि की पूजा करने के बाद भक्तों को अकाल मृत्यु का भय भी खत्म हो जाता है।
इस रूप में मां दुर्गा को सुंदर और उज्ज्वल स्वरूप में पूजा जाता हैं। माँ दुर्गा का आठवा स्वरूप है महागौरी। मां महागौरी का रंग अत्यंत गौरा है यही वजह है कि इन्हें महागौरी के नाम से जाना जाता है।
महंत श्री पारस भाई जी के अनुसार अपनी कठिन तपस्या से मां ने गौर वर्ण प्राप्त किया था। इसलिए इन्हें उज्जवला स्वरूपा महागौरी, धन ऐश्वर्य प्रदान करने वाली कहा जाता है। इनका जो स्वरूप है वह अत्यंत सौम्य है। मां गौरी का यह रूप बेहद मोहक है। इनकी चार भुजाएं हैं। महागौरी का वाहन बैल है।
इस रूप में मां दुर्गा सभी सिद्धियों की देने वाली माँ के रूप में पूजा जाता हैं। माँ दुर्गाजी की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री हैं। इस दिन पूरी श्रद्धा भाव के साथ साधना करने वाले व्यक्ति को सभी सिद्धियों की प्राप्ति होती है। मां सिद्धिदात्री चार भुजाओं वाली हैं।
मां सिद्धिदात्री कमल के पुष्प पर आसीन होती हैं। इनकी उपासना से हर तरह की सिद्धि, बुद्धि और विवेक की प्राप्ति होती है। इन्हीं देवी की कृपा से ही महादेव की आधी देह देवी की हो गई थी और वह अर्धनारीश्वर कहलाए।
“पारस परिवार” की ओर से “चैत्र नवरात्रि” की हार्दिक शुभकामनाएं !!
आपका जीवन धन और प्रेम से भरपूर हो
मां दुर्गा आपको सुख और शांति प्रदान करें !!
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"Mata Rani's grace is like a gentle breeze, touching every heart that seeks refuge in her love."