नवरात्रि के नौ दिनों में देवी के अलग-अलग नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है, जिसे नवदुर्गा का स्वरूप कहा जाता है। नवरात्रि पर्व माँ आदिशक्ति भगवती को समर्पित है। नवरात्र के यह नौ दिन और रातें माता के भक्तों के लिए बहुत ख़ास होते हैं। 12 अप्रैल 2024 को नवरात्रि के चौथे दिन यानि चतुर्थी तिथि को मां कुष्मांडा जी की पूजा की जायेगी। माँ के हर स्वरूप से एक अद्भुत आशीर्वाद प्राप्त होता है। पारस परिवार के मुखिया महंत श्री पारस भाई जी ने बताया कि नवरात्रि के वातावरण से तमस का अंत होता है और नकारात्मक माहौल की समाप्ति होती है। आज इस आर्टिकल में जानते हैं नवरात्र के चौथे दिन का क्या है महत्व और पूजा विधि।
नवरात्रि के चौथे दिन माँ दुर्गा के कुष्मांडा स्वरूप की पूजा की जाती है। इस दिन मालपुए का भोग लगाया जाता है और यदि आप मालपुए का भोग नहीं लगा पाते हैं तो तब आप माँ कुष्मांडा को गुड़ का भोग भी लगा सकते हैं।
देवी कुष्मांडा की अष्ट भुजाएं हैं यही वजह है कि उन्हें अष्टभुजा देवी भी कहा जाता है। माँ कुष्मांडा के हाथों में कमंडल, धनुष, बाण, शंख, कमल पुष्प, अमृत पूर्ण कलश, चक्र तथा गदा सुशोभित हैं। देवी कुष्मांडा के आठवें हाथ में सिद्धियों को प्रदान करने वाली जप माला भी धारण है। देवी कुष्मांडा का प्रिय वाहन सिंह है, जो निर्भयता और शक्ति का प्रतीक है।
महंत श्री पारस भाई जी कहते हैं सूर्यमंडल में निवास करने की शक्ति सिर्फ देवी कुष्मांडा के पास है। इस ब्रह्मांड का एक-एक कण देवी कुष्मांडा की शक्ति का प्रतीक माना जाता है। इस ब्रह्मांड का हर प्राणी इन्हीं के तेज से चमकता है। इनका तेज़ सर्वशक्तिमान है।
इनकी दिव्यता संपूर्ण लोकों में फैली हुई है। इनकी कांति और इनका ओज अलौकिक और अद्भुत है। इसलिए स्वच्छ और पवित्र मन से माँ कुष्मांडा की पूजा-अर्चना करने से तेज़, ओज और शक्ति प्राप्त होती है और आपकी सभी मनोकामनायें पूर्ण होती हैं।
शारदीय नवरात्रि का चौथा दिन या चौथा स्वरूप माँ कुष्मांडा जी को समर्पित है। सफलता, समृद्धि और निरोगी रहने के लिए मां कुष्मांडा का आशीष प्राप्त करने के लिए यह दिन बहुत शुभ माना जाता है। जो लोग नियमित रूप से और सच्ची श्रद्धा से उनकी पूजा करते हैं उन्हें शक्ति, भाग्य, सफलता और सौभाग्य प्राप्त होता है।
मां कुष्मांडा को ऊर्जा की देवी कहा जाता है। देवी कुष्मांडा के शरीर की चमक और ऊर्जा सूर्य के समान तेज है। वह ओजस्वी हैं दरसअल देवी कुष्मांडा के पास वो शक्ति है, जिससे वह सूर्य के केंद्र में निवास कर सकती हैं।
मां दुर्गा के इस स्वरुप माता कुष्मांडा का नाम तीन शब्दों से मिलकर बना है- ‘कु’ यानी छोटा सा, ‘उष्मा’ यानी ऊर्जा और ‘अंडा’ यानी एक गोला। यानि मां कुष्मांडा के नाम का अर्थ है- ऊर्जा का एक छोटा सा गोला। पौराणिक कथाओं के अनुसार माना जाता है कि मां कुष्मांडा ने एक छोटे ब्रह्मांडीय अंडे का उत्पादन करके ब्रह्मांड का निर्माण किया, जिससे ब्रह्मांड प्रकट हुआ। जब चारों ओर अंधकार फैला था तब मां दुर्गा इस स्वरूप में प्रकट हुई थी और तब मां ने हर तरफ उजाला कर इस ब्रह्मांड की रचना की थी।
पारस परिवार चाहता है कि मां कुष्मांडा जी आपको सुख-शांति, समृद्धि और बेहतर स्वास्थ्य प्रदान करें। मां कुष्मांडा आप और आपके परिवार पर हमेशा अपना आशीर्वाद बनाए रखें।
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"Mata Rani's grace is like a gentle breeze, touching every heart that seeks refuge in her love."