Back to privious Page


आखिर क्यों किया जाता है नवरात्रि में कन्या पूजन ?

Blog, 16/04/2024

सनातन धर्म में कन्या पूजन का विशेष महत्व है। माना जाता है कि उनके आशीर्वाद से सभी कार्य सफल होते हैं। नवरात्रि में कन्या पूजन करना अत्यंत शुभ माना जाता है और नवरात्रि के दिनों में अष्टमी और नवमी के दिन कन्या पूजन करना सबसे अच्छा होता है। 

इसी के साथ उपवास रखने वाले इन दोनों दिनों में कन्याओं को भोग लगाकर अपने व्रत का पारण भी करते हैं। हिंदू धर्म में किसी भी शुभ कार्य में कन्याओं का पूजन सबसे पहले किया जाता है। आइये जानते हैं आखिर क्यों किया जाता है नवरात्रि में कन्या पूजन और सनातन धर्म में क्या है कन्या पूजन का महत्व ?

कन्या पूजा या इसे कुमारी पूजा भी कहते हैं, यह एक हिंदू पवित्र अनुष्ठान है, जो मुख्य रूप से नवरात्रि उत्सव की अष्टमी और नवमी के दिन किया जाता है। इस पूजन में नौ लड़कियों की पूजा की जाती है, जो देवी दुर्गा के नौ रूपों यानि नवदुर्गा का प्रतिनिधित्व करती हैं।

 

महंत श्री पारस भाई जी ने बताया कि देवराज इंद्र ने जब भगवान ब्रह्मा जी से भगवती को प्रसन्न करने की विधि पूछी तो उन्होंने सर्वोत्तम विधि के रूप में कुमारी पूजन ही बताया था। कुमारी पूजन से सम्मान, लक्ष्मी, विद्या और तेज़ प्राप्त होता है। इससे विघ्न, भय और शत्रुओं का नाश भी होता है।

हमारे हिंदू धर्म में कन्या को मां दुर्गा का प्रतीक मानकर पूजा करते हैं। नवरात्रि में कन्या पूजन करने से मां दुर्गा की कृपा प्राप्त होती है। सभी शुभ कार्यों का फल प्राप्त करने के लिए कन्या पूजन किया जाता है। नवरात्रि में नौ कुमारी कन्याओं और एक छोटे लड़के को घर में बुलाकर और उनके पांव धोकर रोली और तिलक लगाकर पूजा-अर्चना की जाती है। लड़के को हनुमान जी का रूप माना जाता है। जिस तरह मां की पूजा भैरव के बिना पूर्ण नहीं होती, उसी तरह कन्या-पूजन के समय एक बालक को भी भोजन कराना बहुत जरूरी होता है।

वैसे कुछ लोग नवरात्रि के दौरान हर दिन ही कन्या पूजन करते हैं लेकिन दुर्गा अष्टमी और नवमी के दिन इसका विशेष महत्व होता है। ऐसी मान्यता है कि इन दिनों के दौरान कन्याओं को भोजन कराने से माँ खुश होती हैं और यह भोजन माता रानी तक जरूर पहुँचता है।

कन्या पूजन से परिवार में खुशहाली आती है। नवरात्रि में व्रत रखने के बाद कन्या पूजन करने से माँ आपके दुखों को दूर करती हैं। माँ सुख-समृद्धि, धन-संपदा का आशीर्वाद देती हैं। इसके साथ ही कन्या पूजन करने से कुंडली में नौ ग्रहों की स्थिति मजबूत होती है। कन्या पूजन से लाभ और पुण्य की प्राप्ति होती है। नौ कन्याओं को नौ देवियों के रूप में पूजा करने से आपका व्रत और पूजन पूरा होता है।

 

माँ दुर्गा के दुलारे, महंत श्री पारस भाई जी कहते हैं नवरात्रि में व्रत रखने के बाद कन्या पूजन करने से माता रानी आपको आशीर्वाद देती हैं और छोटी कन्याओं को मां का साक्षात स्वरूप माना जाता है।

9 वर्ष तक की कन्याएं देवी मानी जाती हैं। वैसे तो हिंदू धर्म में समस्त नारियाें काे पूजनीय माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि जहाँ नारी की पूजा हाेती है वहाँ देवताओं का निवास हाेता है। जप और दान से देवी इतनी प्रसन्न नहीं होती जितनी कन्या पूजन से होती हैं। भक्त अपने सामर्थ्य के मुताबिक कन्याओं को भोग लगाकर दक्षिणा देते हैं। इससे माता अंधेरे को मिटाकर आपके जीवन में उजाला करती हैं। कन्या पूजन में कम से कम 9 बच्चियों की पूजा जरूर की जाती है।

नवरात्रि के दौरान कन्‍याओं को घर बुलाकर उनकी आवभगत की जाती है। कन्याओं का देवियों की तरह आदर सत्कार और भोज कराने से मां दुर्गा सुख की वर्षा करती हैं और भक्तों को सुख का वरदान देती हैं। अपने सामर्थ्य के अनुसार कन्याओं को दक्षिणा देने से ही माँ प्रसन्न हो जाती हैं। नौ कन्याओं को नौ देवियों के प्रतिबिंब के रूप में पूजने के बाद ही भक्तों का व्रत पूरा होता है।

 

महंत श्री पारस भाई जी ने बताया कि पूरे विश्व में “सनातन धर्म एक ऐसा धर्म है जिसमें कन्याओं को देवी मानकर पूजा जाता है। यह हमारे धर्म की एक महान संस्कृति का उदाहरण है। नवरात्रि में अन्य सभी तिथियों को एक-एक और अष्टमी या नवमी को नौ कन्याओं की पूजा होती है। माना जाता है कि आयु के अनुसार कन्या पूजन के फल भी अलग अलग होते हैं। 

जैसे दो वर्ष की कन्या के पूजन से दुख और दरिद्रता को मां दूर करती हैं। तीन वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति रूप में मानी जाती है और इस आयु की कन्या के पूजन से घर धन-धान्य से भर जाता है। चार वर्ष की कन्या को कल्याणी माना जाता है, इनके पूजन से घर-परिवार का कल्याण होता है। वहीं पांच वर्ष की कन्या रोहिणी कहलाती है। इनकी पूजा से व्यक्ति को कोई रोग नहीं घेर पाता है। यानि अगर किसी पर रोहिणी की कृपा हो तो वह व्यक्ति रोगों से दूर रहता हैं। 

छह वर्ष की कन्या को कालिका का रूप कहा गया है, जो विजय का प्रतीक होती है। सात वर्ष की कन्या का रूप माँ चंडिका का है, माँ चंडिका रूप की पूजा करने से धन और ऐश्वर्य प्राप्त होता है। आठ वर्ष की कन्या शाम्भवी कहलाती है और इनकी पूजा से करने से वाद-विवाद में सफलता प्राप्त होती है।

नौ वर्ष की कन्या दुर्गा माँ कहलाती है। इनकी पूजा से शत्रुओं का नाश होता है और लम्बे समय से यदि कोई काम अटका है तो वह भी जल्दी पूरा हो जाता है। दस वर्ष की कन्या सुभद्रा कहलाती है, इनकी पूजा से आपकी हर मनोकामना पूरी होती है।

 

महंत श्री पारस भाई जी कहते हैं कि सिर्फ 9 दिन ही नहीं बल्कि जीवन भर कन्याओं का सम्मान करें। क्योंकि इनका आदर करना ईश्वर की पूजा के ही बराबर पुण्य देता है। शास्त्रों में भी लिखा है कि जिस घर में कन्या या नारी का सम्मान किया जाता है वहां भगवान खुद वास करते हैं।

 

Also Read :- 


  Back to privious Page

About us

Personalized astrology guidance by Parasparivaar.org team is available in all important areas of life i.e. Business, Career, Education, Fianance, Love & Marriage, Health Matters.

Paras Parivaar

355, 3rd Floor, Aggarwal Millennium Tower-1, Netaji Subhas Place, Pitam Pura, New Delhi - 110034.

   011-42688888
  parasparivaarteam@gmail.com
  +91 8882580006